वह साधारण होते भी असाधारण थीं, जिन्हें आज पूरा देश स्मरण कर रहा है। यद्यपि हिन्दू स्त्रियों की वीरता को दबाने का प्रयास हर संभव तरीके से किया गया, परन्तु फिर भी उनकी वीरता तो इतिहास में है, चेतना में है। लोक में बिखरी हैं और किलों में छिपी हैं। फिर भी यह कहानियां आज भी अपने सम्पूर्ण रूप में आनी शेष हैं। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर ओंके ओबव्वा को स्मरण किया:
उन्होंने कहा कि मैं ओंके ओबव्वा को उनकी जयन्ती पर स्मरण करता हूँ और कोई भी उस साहस को नहीं भूल सकता है जिसके साथ वह अपने लोगों और संस्कृति के लिए लड़ी। वह स्त्री शक्ति के रूप में हमें प्रेरित करती है।
पर वह कौन थीं? लोग उनकी वीरता को कम ही याद कर पाते हैं। वह उस काल में थी, जब सेक्युलर्स के प्रिय टीपू सुलतान के अब्बाजान हैदर अली का शासन था। सभी को मुस्लिम बनाने की अपनी सनक के चलते हैदर ने अपने हिन्दू सरदारों को समाप्त करके उनके राज्य को हड़प लिया था। हैदर अली था कौन? वह मैसूर की सेना में नायक के पद पर काम करता था, बहुत ही शातिर था। और उसने धीरे धीरे अपनी ताकत बढानी शुरू कर दी। साल 1776 में मैसूर के राजा कृष्णराज की मृत्यु के बाद हैदर ने खुद को मैसूर का सुलतान घोषित कर दिया और इस तरह एक मतान्ध व्यक्ति मैसूर का शासक बन गया और हिन्दुओं और ईसाइयों की धर्मांतरण करने के साथ ही उसकी नज़र आसपास के इलाकों पर थी।
और ऐसा ही एक और क्षेत्र था चित्रदुर्ग। जिस पर उस समय मदकरी नायक का शासन था। हालांकि उसके पास सेना नहीं थी, परन्तु फिर भी हैदर की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह अपनी विशाल सेना को कैसे ले जाए, परन्तु उसे अंतत: एक द्वार मिल गया, माध्यम मिल गया। उसे एक छेद दिखा! और फिर हैदर की बांछे खिल गईं, हैदर को लगा कि अबकी बार तो उसे अवसर मिल ही गया है। उसने योजना बनाई कि एक एक करके सैनिक उस छेद से भीतर जाएंगे और फिर वह कज्बा कर लेगा!
उस समय वहां पर मुदडा हनुमा नामक प्रहरी पहरा दे रहा था। दोपहर का समय था और वह अपने घर भोजन करने चला गया। और उसकी पत्नी तालाब पर पानी लेने आई, जो उस छेद के नज़दीक था।
उस स्त्री ने एक मुस्लिम सैनिक को उस छेद से भीतर आते हुए देखा, वह सोच में पड़ गयी और उसके पास समय नहीं था, वह अपने घर जाकर अपने पति को नहीं बुला सकती थी। उसने कई बार सोचा कि क्या करे? यदि वह सही सलामत अन्दर आ जाता तो उसे मार डालता, और उसके पीछे भी सैनिक थे।
फिर उसने युक्ति सोची और धान कूटने वाला मूसल लेकर खड़ी हो गयी। जैसे ही वह सैनिक आगे आया, उसने उसके सिर पर मूसल जिसे ओंके कहते हैं, उससे वार किया। जैसे ही उसने उसे मारा, वैसे ही वह सैनिक मर गया और उसने उस सैनिक की लाश निकाल ली। उसके बाद दुसरे सैनिक के साथ यही किया, और फिर तीसरे।
इधर उसके पति का प्यास के कारण हाल बुरा हो रहा था, और फिर वह अपनी पत्नी को खोजते हुए वहां आया। जब वह वहां पहुंचा तो खून में लथपथ अपनी पत्नी को देखकर हैरान रह गया। और जब उसने मुस्लिम सैनिकों की लाशों के ढेर लगे देखे तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
वह दोनों पति पत्नी मिलकर सैनिकों को ठिकाने लगाने का काम करने लगे।
लाशों के ढेर लग गए परन्तु उसी रात ओबव्वा की निर्जीव देह पाई गयी, वह निर्जीव कैसे हुई, कोई नहीं जान पाया, या तो दिन भर में इतनी लाशें देख लीं थीं कि वह रात में स्वयं से निगाहें नहीं मिला पाई या फिर उसे शत्रुओं ने ही सुला दिया।
होल्यास समुदाय की इस वीर स्त्री ओबव्वा को उस समय के बाद से ओंके ओबव्वा के नाम से जाना जाने लगा । इनका नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है, ओंके ओबव्वा वीरता और अदम्य साहस का प्रतीक है। वह इस बात को प्रदर्शित करती है कि एक साधारण हिन्दू स्त्री में कितनी शक्ति होती है। वह असाधारण थी, और यह असाधारणता इस बात की भी पुष्टि करती हैं कि स्त्रियों में साहस और स्थिति के अनुसार निर्णय लेने की क्षमता हर समय में थी। परन्तु एक विशेष वर्ग यही प्रमाणित करने में सबसे आगे है कि भारत में स्त्री को वेदना में जीवन बिताना पड़ता था और साथ ही स्त्री में चेतना नहीं थी आदि आदि।
परन्तु आज उनकी चेतना पूरे भारत में पल्लवित हो रही है! तभी आज पूरा ट्विटर भरा हुआ है उनकी वीरता से, उनकी चेतना आज भी हिन्दू स्त्रियों का मार्ग प्रदर्शित कर रही है!
उन्हें योद्धा के रूप में स्मरण किया जा रहा है
हिन्दू पोस्ट भी हर हिन्दू स्त्री को नमन करता है