संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत श्री टीएस तिरुमुर्ति ने आतंक के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में हिन्दू, बौद्ध एवं सिख धर्म के खिलाफ धार्मिक घृणा को पहचानने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने पिछले वर्ष आतंक से लड़ने की नवीनतम रणनीति Global Counter-Terrorism Strategy (GCTS) अपनाई है, वह पक्षपात पूर्ण है।
भारत ने पूरे विश्व में गैर अब्राह्मिक रिलिजन जैसे हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के विरुद्ध जिस प्रकार से घृणा बढ़ रही है, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनके प्रति हिंसा को भी स्थान दिया जाना चाहिए। श्री तिरुमुर्ति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने केवल उन्हीं हिंसा के मामलों पर चिंता व्यक्त की है, जो इस्लाम, ईसाई और यहूदी, तीन बड़े अब्राह्मिक रिलिजन के विरुद्ध हुई हैं। श्री तिरुमुर्ति ने यह भी कहा कि पिछले दो वर्षों में कई सदस्य देशों ने अपने राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य कारकों के आधार पर आतंकवाद को कई श्रेणियों में लेबल करने का प्रयास किया है, जैसे नस्लीय और जातीयता आधारित हिंसक चरमवाद, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी चरमपंथ आदि और यह कई कारणों से खतरनाक है।

उन्होंने यह भी कहा कि पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली द्वारा पारित ग्लोबल काउंटर टेररिज्म स्ट्रेटजी में केवल तीन अब्राह्मिक रिलिजन के खिलाफ की गयी हिंसा का नाम लिया गया है,
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से हिन्दुओं, सिखों, और बौद्ध धर्म के अनुयाइयों के विरुद्ध रिलिजियसफोबिया उभर कर आ रहा है, वह संयुक्त राष्ट्र के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए और सभी सदस्य राज्यों को इस चुनौती को हल करना है। तभी हम ऐसे विषयों पर अपनी चर्चाओं में संतुलन ला सकते हैं।
पूरे विश्व में हिन्दुओं और सिखों पर हमलों पर चुप्पी रहती है
अक्टूबर में दुर्गापूजा के दौरान समूचे विश्व ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ हुए नरसंहार को देखा था। यह देखा था कि कैसे कुरआन की प्रति जानबूझकर रखकर हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा को भड़काया गया। बार बार यह कहा जा रहा है बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होते अत्याचारों पर वैश्विक बिरादरी चुप रहती है। यहाँ तक कि कश्मीर में हिन्दुओं को धर्म के आधार पर ही पलायन करना पड़ा था, और यह सभी किसके द्वारा फैलाई गयी हिंसा का शिकार होते हैं, इसमें कुछ भी छिपा नहीं है, फिर भी हिन्दुओं की पीड़ा वैश्विक मंच पर स्थान नहीं पाती है, बल्कि अमेरिका में तो “ग्लोबल हिंदुत्व” को मिटाने तक के लिए आयोजन हुए।
समय समय पर हिन्दुओं के साथ एथिनिक हिंसा के समाचार आते हैं, पंरतु उन्हें वैश्विक मंच पर स्थान नहीं मिलता है।
भारत में इस्लामिक कट्टरता का इतिहास रहा है। इस्लामिक जिहाद अ लेगेसी ऑफ फोर्स्ड कन्वर्शन, इम्पीरियालिज्म, एंड स्लेवरी में एम ए खान भारत पर इस्लामिक अत्याचारों के विषय में लिखते हैं कि मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध में अपने तीन साल के शासन में हजारों हिन्दुओं को मारा और उनकी स्त्रियों एवं बच्चों को गुलाम बनाया। मंदिरों को तोडा गया, उनकी प्रतिमाओं को तोडा गया एवं उनके स्थान पर मस्जिदें बनी गईं।
महमूद गजनवी ने तो इतना लूटा था कि अल उरबी के अनुसार ‘स्थानीय नागरिकों ने या तो इस्लाम अपना लिया था, या फिर जिसने भी हथियार उठाए थे, वह सभी इस्लाम की तलवार का शिकार हो गए। उसने इतना लूट का सामान इकट्ठा किया था, इतने दास बनाए थे और इतनी दौलत लूटी थी कि उन्हें गिनने वालों की उंगलियाँ थक गयी थीं।”
कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर औरंगजेब तक हिन्दुओं के साथ अत्याचार चलता रहा। उन्हें मारा जाता रहा, उनका बलात धर्म परिवर्तन कराया जाता रहा, परन्तु हिन्दुओं ने भी विरोध करना जारी रखा। इतना ही नहीं अंग्रेजों के विरुद्ध स्वंतन्त्रता संग्राम में भी हिन्दुओं ने अपने जीवन का बलिदान किया और अपनी भूमि को स्वतंत्र करने के लिए संघर्ष किया।
परन्तु उस दौरान भी वह इस्लामिक कट्टरता का शिकार होते रहे। 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे पर आयोजित किया गया हिन्दुओं का नरसंहार, जिसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है, जिसका आह्वान मुस्लिम लीग ने किया था, उसमें भी हिन्दुओं का जो संहार हुआ, उसे आज तक लोग भूले नहीं हैं। विभाजन के दौरान हिन्दुओं और सिखों के साथ जो कुछ हुआ, उसकी कहानियाँ अभी तक हवाओं में हैं, उसकी पीड़ा आज तक विस्थापितों के दिल में है।
उसके बाद बांग्लादेश में जिस प्रकार से हिन्दुओं का सुनियोजित नरसंहार किया गया, उस पर भी विश्व मौन था। अफगानिस्तान से जिस प्रकार हिन्दुओं और सिखों को भागना पड़ा, उस पर भी चर्चाएँ नहीं हुईं।
अब समय आ गया है कि हिन्दुओं के साथ जो शताब्दियों से अत्याचार किए जा रहे हैं और जिस प्रकार उन्हें मिटाने का हर स्तर पर प्रयास हो रहा है, फिर चाहे शेष बचे मुट्ठी भर पाकिस्तानी हिन्दू हों या फिर बांग्लादेशी हिन्दू या फिर भारत में अपने ही देश में बार बार इस्लामिक कट्टरता के हाथों मारे जाते हिन्दू और सिख, अपना घर छोड़कर पलायन करते हिन्दू, उनकी पीड़ा को वैश्विक मंच पर स्थान मिलना ही चाहिए।
सरकार के इस कदम की सराहना लोग कर रहे हैं। परन्तु यह भी बात सत्य है कि बाहर हिन्दुफोबिया इसीलिए व्याप्त है क्योंकि भारत में ही एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो बार बार हिन्दुओं को कट्टर ठहराता है, जिसके दिल में हिन्दुओं के प्रति असीम घृणा है।
पहले देश के भीतर ऐसे तत्वों पर नियंत्रण किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यही लोग हैं जो वैश्विक मंच पर हिन्दुओं के प्रति घृणा का विस्तार करते हैं।