वर्ष 1960 में एक फिल्म आती है “मुगले-आजम”। के. आसिफ के भव्य निर्देशन में, और इसका संगीत देखते ही देखते सबकी जुबां पर चढ़ जाता है। यह एक ऐसी फिल्म थी, जिसे आज भी उतनी ही शिद्दत से देखा जाता है, जितनी दीवानगी से उस समय देखा गया था। क्या उस समय इतिहास की पुस्तकें नहीं थीं या फिर इतिहास से परिचय नहीं था? स्पष्ट है दोनों थे और आज भी हैं, परन्तु फिर भी यदि किसी चैनल पर यह फिल्म आती है तो उसे देखा जाता है, उसका विरोध नहीं होता, और न ही किसी चैनल को आज तक यह भेजा गया कि हमें ऐसी झूठी फ़िल्में नहीं देखनी है।
हमें प्यार के आदर्श के रूप में वह व्यक्ति नहीं चाहिए, जो नशे में डूबा रहता था, जिसे बहुसंख्यक समाज से कोई मतलब नहीं था, जो मंदिरों को तोड़ता था। (पिछले लेख में बताया है कि उसने वराहअवतार की प्रतिमा तुड़वाई थी) और जिसने एक नहीं कई निकाह किये थे, जिसमें एक निकाह जो सबसे ताकतवर माना गया, वह निकाह किसी दूसरे की बीवी से था और कहते हैं कि शौहर का क़त्ल करवाया गया था।
और फिल्म में सलीम का स्वागत करते हुए दिखाया गया है, पर वह किसे हराकर आ रहा था कि उसका हिन्दू माँ स्वागत कर रही है? जबकि जहांगीर अपनी आत्मकथा में बिलकुल भी अपने अम्मी को हिन्दू नाम से संबोधित नहीं करता है। फिर ऐसा झूठ दिखाने पर विरोध के स्वर क्यों नहीं फूटे? और तब विरोध के स्वर नहीं फूटे, इसके साथ पीढ़ियों में मीठा जहर जो प्रवेश कर गया है, उसका दोषी कौन है?
जहाँगीर ने बार बार अपने पिता से विद्रोह किया। जबकि उसके विद्रोह के कोई कारण नहीं थे। उसके दो भाई थे, मुराद और दानियाल! दोनों ही ऐसे नहीं थे, जो इसका विरोध करते क्योंकि मुराद की मृत्यु सन 1599 के आसपास और दानियाल की मृत्यु 1604 के लगभग हो गई थी। तो फिर बार बार अपने पिता से विद्रोह क्यों, जबकि उसे गद्दी मिलनी ही थी। एक अय्याश जिसे पीने की लत थी, जैसा उसने खुद स्वीकार किया है कि उसे इतनी पीने की लत थी कि वह प्रतिदिन बीस या उससे भी अधिक प्याले शराब के पीता था।
जब जहांगीर अपने शासनकाल और अपने बचपन का वर्णन कर रहा है तब उसमें अनारकली या फिर कहा जाए कि उस अमर कहानी का उल्लेख कहीं नहीं हैं, जिसका वर्णन कर यह फिल्म बनाई गयी और फिर उसके बाद हिन्दू लड़कियों को “प्यार किया तो डरना क्या” पर नचवाया गया।
इसके उलट जहांगीर अपने तमाम निकाहों और बच्चों का वर्णन देता है। वह लिखता है कि उसका निकाह भगवानदास की पुत्री से हुआ, जिससे खुसरो का जन्म हुआ। और यह खुसरो वही खुसरो था, जिससे अकबर प्रेम करता था और जहाँगीर चिढ़! जहांगीर के असंयमित स्वभाव के कारण अकबर अपने पोते खुसरो से विशेष स्नेह करने लगा था और जैसे ही जहाँगीर को ऐसा लगा कि यह गद्दी उसके पास से खुसरो के पास जा सकती है तो उसने उसका मानसिक शोषण किया, यहाँ तक कि बाद में खुसरो ने कहा जाता है कि आत्महत्या कर ली थी।
खुसरू के बाद उसके एक और बेटा हुआ, जो सईद खां काश्गरी की बेटी से हुआ था। उसके बाद एक लड़की हुई, जिसका नाम इफ्फत बानू था, वह तीन साल की उम्र में मर गई। उसके बाद परवेज पैदा हुआ। इसके बाद दरिया कौम की बेटी से, जो बड़े राजाओं में से थे और पर्वत की तराई में रहते थे, एक बेटी हुई जो मर गयी उसके बाद करमेती से जो राणा सूर के वंश से थी, एक बेटी हुई, जिसका नाम बहारबानू बेगम रखा, पर दो महीने की होकर वह मर गयी।
इसके बाद जगत गुसाईं, जो राजा उदय सिंह की बेटी थी, उसे एक बेटी हुई जिसका नाम बेगम सुलतान रखा था पर तीन वर्ष की होकर वह मर गयी। उसके बाद राजा केशो की बेटी साहिब जमाल से एक लड़की हुई जो सात दिन जिंदा रही। इसके बाद मोटा राजा की बेटी से खुर्रम हुआ।
इसके बाद कश्मीर के शासक की लड़की से एक बेटी हुई, जो एक साल जिंदा रही। उसके बाद कामरान मिर्ज़ा के दौहित्रों में से एक इब्राहिम हुसैन मिर्जा की पुत्री निसा बेगम से आठ महीने की एक बेटी हुई, वह उसी दिन मर गयी। उसके बाद परवेज की माँ साहेब जमाल से एक और लड़की हुई, जो पांचवें महीने में मर गयी। और उसके बाद खुर्रम की माता जगत गोसाईं से एक और बेटी हुई, जो पांच साल की होकर मर गयी। उसके बाद साहब जमाल से एक और बेटा राजगद्दी के समय पैदा हुआ, खुर्रम के बाद एक और बेटा हुआ, इसका नाम शहरयार रखा। (नागरी प्रचारणी सभा द्वारा जहांगीर नामा के हिंदी अनुवाद से)
यह तो केवल उनके नाम है, जो शायद राजगद्दी पर बैठने से पहले पैदा हुए थे। उसके बाद इतने निकाह और बच्चे करने के बाद थकान उतारने के लिए शायद मेहरुन्निसा से निकाह किया और वह भी उसके शौहर शेर-अफगन का खून करवाकर और फिर पहले उसे नूर-महल और फिर नूर जहाँ का खिताब दे दिया। इसी नूर जहाँ ने बाद में उत्तराधिकार के खूनी खेल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई!
और हमारी पीढ़ी के लड़के और लड़कियों के सामने इसी जहांगीर को प्यार का मसीहा बनाकर पेश किया गया, उनके दिमाग में यह सॉफ्टनेस किसने भरी? और जब यह जहर मान लीजिये बन ही गया था, तो क्या उसे पीना और बच्चों के कोमल दिमाग में डालना आवश्यक था?
मुद्दा यह नहीं कि के आसिफ ने एजेंडा फिल्म बनाई, मुद्दा यह है कि एजेंडा फिल्म सफल और कालजयी सफल किसने बनाई?
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