spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
21.8 C
Sringeri
Thursday, March 28, 2024

मुम्बई की रजा अकादमी द्वारा मदीना में सिनेमा घर के विरोध के मायने क्या हैं?

पिछले दिनों मुम्बई की रजा अकादमी, जिसका गठन भारतीय सुन्नी मुस्लिमों के मजहबी हितों के लिए किया गया था और जिसका उद्देश्य इस्लाम से जुड़े विचारों को शोध और कई प्रकाशनों के माध्यम से फैलाना है, ने एक अत्यंत चौंकाने वाला प्रदर्शन किया। वैसे तो वह पूर्व में भी ऐसे कई प्रदर्शन कर चुकी है, जो चौंकाने वाले थे या ऐसे थे जिन पर हंसा जा सकता था, परन्तु यह प्रदर्शन हास्यास्पता से भी एक कदम आगे है।

सऊदी अरब में सरकार अब अपने वर्ष 2030 की योजना पर आगे बढ़ते हुए मदीना शहर में भी सिनेमा हॉल और एंटरटेनमेंट सेंटर बनाने की योजना बना रही रही है। इस बात पर भारत और पाकिस्तान के मुसलमान भड़के हुए हैं और वह इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह इस्लाम विरोधी कदम है।

यह विवाद तब आरम्भ हुआ, जब पाकिस्तानी इस्लामिक विद्वान और पूर्व जज एवं दारुल उलूम करांची में वाइस प्रेसिडेंट और प्रोफ़ेसर मुफ्ती मुहम्मद ताकी उस्मानी ने अलमदीना अल मुनव्वर का नवम्बर का ट्वीट कोट करते हुए विरोध किया। उसके बाद से ही भारत और पाकिस्तान में मुस्लिम विरोध करने लगे और अचानक से ही उसके विरोध में मुम्बई से रजा अकादमी कूद पड़ी और ट्वीट किया कि

सऊदी हुकूमत ने मदीना शरीफ मैं सिनेमा घर

खोलने का ऐलान किया है

इसके खिलाफ 23 सितम्बर 2021 को मुंबई मैं उलमाये अहले सुन्नत का एहतेजाज होगा

आप भी टवीटर पर #BanCinemaInMadinaShareef के साथ टवीट करके इस एहतेजाज मैं शामिल हो

और उसके बाद रजा अकादमी ने सऊदी सरकार के नवंबर में किए गए निर्णय का अब आकर विरोध किया और प्रदर्शन किया।

रजा अकादमी वैसे तो विवादों से परे नाम नहीं है। ऐसे मुद्दों पर विरोध करना रजा अकादमी की आदत है, जिससे देश की शान्ति भंग हो या फिर मुस्लिम समाज में अस्थिरता आए। या फिर व्यवस्था पर प्रश्न हों। रजा अकादमी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से ही यह सवाल कर लिया था कि क्या कोविड की वैक्सीन हलाल है?

वैसे भी रजा अकादमी तब चर्चा में आई थी जब इसने सलमान रश्दी की सैटेनिक वर्सिस का विरोध किया था। यह रजा अकादमी ही है जिसने तसलीमा नसरीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

पाठकों को मुम्बई के आजाद मैदान की वह घटना याद होगी जिसमें असम और म्यांमार में मुसलमानों पर हुए कथित हमलों का मुद्दा बनाकर मुम्बई में दो और संगठनों के साथ मिलकर हंगामा किया गया और साथ ही प्रदर्शन के हिंसक हो जाने पर आजाद मैदान में दंगाइयों ने अमर ज्योति स्मारक को क्षति ग्रस्त कर दिया था।

इतना ही नहीं, नागरिक आन्दोलन का विरोध करने के लिए यह अकादमी आगे आई थी। उसके बाद भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मुस्लिमों ठेकेदार साबित करने के लिए इस अकादमी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां को पत्र लिखा था कि वह मुस्लिमों के प्रति घृणा को एक नए स्तर पर ले जा रहे हैं और रजा अकादमी ने कहा था कि सभी को फ्रांस के बनाए उत्पादों को प्रयोग करना बंद कर देना चाहिए और भी कई ऐसी ही कट्टरपंथी बातें की गयी थीं।

परन्तु रजा अकादमी की इन बातों का क्या प्रभाव हो सकता है, मात्र इन पर हंसा जा ही जा सकता है। क्योंकि हर देश को अपने देश को इस्लाम के कट्टर स्वरुप से बचाने का अधिकार है। यह रजा अकादमी मुस्लिमों की कितनी बड़ी हितैषी है यह इसी बात से पता चल जाता है कि चीन में मुस्लिमों के साथ होने वाले अत्याचारों पर रजा अकादमी नहीं बोलती है, कोई आवाज़ नहीं उठाती है। अपने ही समुदाय में औरतों पर होने वाले जुल्मों पर रजा अकादमी आवाज़ नहीं उठाती है, पर हाँ, तसलीमा नसरीन के खिलाफ जरूर विरोध प्रदर्शन करती है।

रजा अकादमी से एक प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए कि यदि इस्लाम में नाच गाना आदि गुनाह है, यदि इस्लाम में सिनेमा हॉल आदि गुनाह हैं तो ऐसा क्यों है कि हिंदी फिल्म उद्योग में केवल खान-कलाकारों का ही बोलबाला है और हिंदी फिल्मों में काला धन लगाने वाला भी दाऊद है! अगर इस्लाम में यह गुनाह है तो क्या कभी रजा अकादमी ने इन खानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया?

इस संगठन की स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी, इसके बाद भी सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, तथा फरदीन खान सहित फरहा सहित कई मुस्लिम कलाकार इस फिल्म उद्योग का हिस्सा बने रहे और आज तक हैं।  क्या इन कलाकारों के खिलाफ इसलिए रजा अकादमी ने इस लिए कदम नहीं उठाए थे क्योंकि यह सभी कलाकार कहीं न कहीं भारत के इस्लामीकरण में सहायक थे?

क्या इन लोगों का विरोध इसलिए नहीं किया जा रहा था क्योंकि वह मुस्लिमों की असली समस्या से ध्यान हटाकर उन्हें मात्र एक मॉडल के रूप में प्रदर्शित कर रहे थे?  रजा अकादमी की ओर से कभी भी यह प्रदर्शन नहीं हुए कि मजहब के नाम पर आतंकी निर्दोष नागरिकों का खून न बहाएं?

रजा अकादमी ने कभी भी आधुनिक शिक्षा के पक्ष में प्रदर्शन नहीं किया होगा? और न ही जिस प्रकार वह सऊदी के विरोध में आवाज़ उठा रही है, उसने कभी यह आवाज़ उठाई हो कि पड़ोसी देश पकिस्तान अपने हिन्दू नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करे?

रजा अकादमी एक ओर तो सऊदी में सिनेमा हॉल न खुले इस पर विरोध प्रदर्शन करती है, और उसके साथ ही कई मुस्लिम भी सऊदी सरकार का विरोध कर रहे हैं, परन्तु यह वही लोग हैं, जो इस बात के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा हिन्दुओं के लिए पवित्र और पूजनीय मथुरा में मांस एवं शराब की बिक्री प्रतिबंधित होने के विरोध में फासीवाद का रोना रोते हैं।

जब आप अपने मजहबी स्थान के प्रति इतने जज्बाती हैं कि सऊदी सरकार के इस सुधारात्मक कदम तक का विरोध कर सकते हैं, तो क्या हिन्दुओं के धार्मिक स्थानों पर हिन्दुओं का यह धार्मिक अधिकार नहीं है कि वह अपने धर्म के अनुसार नियम बना सकें? कुछ लोगों का कहना यह है कि हिन्दू ही मांस खाते हैं, तो ऐसा नहीं करना चाहिए, वह लोग मांस खाने की इच्छा होने पर क्या करेंगे? तो क्या मदीना में रहने वालों का मन नहीं होता होगा सिनेमा देखने का? यदि पवित्रता की बात आप करते हैं तो हिन्दुओं को भी यह अधिकार है कि वह अपने धर्म स्थानों की पवित्रता के विषय में बात कर सकें!

यदि भारत में रहने वाला मुसलमान सऊदी सरकार का इस बात के लिए विरोध कर सकता है कि वह पवित्र मदीना शहर में सिनेमा हॉल क्यों खोलने जा रही है, इससे पाप बढ़ेगा तो वही मुस्लिम समुदाय असम में हिन्दू मंदिरों की पांच किलोमीटर की सीमा में गौ-वध प्रतिबन्ध का विरोध भी कैसे कर सकता है? हिन्दू धर्म में गौ सबसे पवित्र मानी गयी है, तो क्या हिन्दू मंदिरों के आसपास गौ वध को सहन किया जा सकता है? नहीं!

सबसे हटकर, प्रश्न रजा अकादमी से यही है कि जब इस्लाम में नाच गाना और सिनेमा अनुमत नहीं है तो आज तक उन मुस्लिम कलाकारों का विरोध क्यों नहीं किया और उनके विषय में shame का ट्रेंड क्यों नहीं चलाया? क्या इसलिए क्योंकि आमिर खान पीके जैसी फिल्म बनाकर हिन्दुओं को अपमानित कर रहा था?

या बजरंगी भाई जान जैसी फिल्मों के माध्यम से हिन्दुओं की आस्था पर प्रहार हो रहे थे? या फिर “भगवान की नियत ठीक नहीं” जैसे गाने बनाकर भगवान को मात्र वासना तक सीमित किया जा रहा था? काफिर शब्द को ऐसा बनाया जा रहा था कि बिना किसी आक्रोश के वह हिन्दुओं तक पहुँच जाए!

रजा अकादमी ने मुम्बई में ही रहते हुए, फिल्म उद्योग का विरोध क्यों नहीं किया? और क्यों नहीं कहा कि इस्लाम में यह सब हराम है? क्या इसलिए क्योंकि काफिरों का पैसा ही घूमफिर कर उनके मुस्लिम कलाकारों के पास आ रहा था?

या फिर फिल्म उद्योग “गजवा ए हिन्द” के लिए सॉफ्ट जमीन तैयार कर रहा था? प्रश्न तो है ही!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.