दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर किसान कानूनों के विरोध में धरना दे रहे किसानों के बीच से एक बड़ी और चौंकाने वाली खबर आई है। झज्जर पुलिस के अनुसार पश्चिम बंगाल से किसानों के समर्थन में आई एक कार्यकर्ता के साथ दिल्ली हरियाणा टिकरी बॉर्डर पर बलात्कार की शिकायत उस युवती के पिता ने दर्ज कराई है।
Jhajjar | An activist from West Bengal, who came to participate in farmers' protest at Delhi-Haryana Tikri border was allegedly raped
“As per her father,she was raped. The victim was hospitalised for COVID &succumbed to it on Apr30. Case registered, probe on,”said Police (9.05) pic.twitter.com/IeSsnGWuP6
— ANI (@ANI) May 10, 2021
यह बेहद ही सनसनीखेज मामला इसलिए है क्योंकि इस मामले में केवल किसान नेता एवं आम आदमी पार्टी के नेता ही सम्मिलित नहीं हैं अपितु साथ ही दो महिला वोलंटियर्स को भी आरोपी बनाया गया है। पुलिस ने आईपीसी की धारा 365, 342, 354, 376 और 120 बी के अंतर्गत मामला दर्ज किया है। हालांकि पहले भी एक मई को यह बात सामने आई थी कि एक महिला कार्यकर्त्ता की मृत्यु कोविड के संक्रमण के कारण टिकरी बॉर्डर पर हो गयी है। परन्तु इस बात को किसान नेताओं ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया था कि युवती की मृत्यु कोरोना संक्रमण के कारण हुई है।
जबकि अब यह बात सामने आ रही है कि न केवल उस लड़की की मृत्यु कोरोना से हुई थी बल्कि उसके साथ बलात्कार भी किया गया था। इस बात के सामने आते ही किसान नेता इन सब बातों से पल्ला झाड़ रहे हैं एवं कड़ी कार्यवाही की बात कह रहे हैं। जबकि पुलिस के अनुसार लड़की के पिता का साफ़ कहना है कि उनकी बेटी के साथ बलात्कार हुआ था। अब हरियाणा पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है।
इस लड़की की मृत्यु के बाद जो कुछ विरोध एक स्वर उठे थे, वह भी शांत हो गए। क्या विरोध के यह स्वर किसान आन्दोलन के नेताओं से ही नहीं आने चाहिए थे? क्या ऐसा नहीं होना चाहिए था कि जब उस लड़की की मृत्यु हुई तभी लोग बाहर निकल कर आते? क्या नेताओं को सच्चाई पता नहीं होगी? ऐसे कई प्रश्न इस घटना के बाद उत्पन्न हो रहे हैं, जिनके उत्तर केवल और केवल किसान नेता और नेतृत्व के ही पास हैं।
इससे पहले भी दबे दबे स्वरों में किसान आन्दोलन में महिला पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार के मामले सामने आए थे, मगर वह भी दबा दिए गए थे। पर इस बार मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि युवती की मृत्यु हो गयी है और वह भी कोविड संक्रमण से! मृतक युवती के पिता ने मात्र सामूहिक दुष्कर्म के ही आरोप नहीं लगाए हैं उन्होंने अपहरण, ब्लैक मेलिंग, बंधक बनाने और धमकी देने का भी आरोप लगाया है।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के अनुसार पीड़िता के पिता ने पुलिस को पूरी कहानी बताई थी कि कैसे उनकी बेटी किसान सोशल आर्मी के अनिल मलिक, अंकुर सांगवान और कविता आर्य के संपर्क में आईं। 1 अप्रेल को जब किसान नेताओं की टीम बंगाल पहुँची थी तो उनकी बेटी भी इस आन्दोलन की ओर आकर्षित हुई। उन्होंने कहा कि कुश्ती युनियन की योगिता सुहाग आदि भी बंगाल पहुँची थीं। उनकी बेटी 12 अप्रेल को टिकरी बॉर्डर पहुँची और फिर उसने अपने पिता से अनूप और अनिल की शिकायत की एवं कहा कि ट्रेन में उसके साथ छेड़छाड़ की गयी।
युवती के पिता के अनुसार योगेन्द्र यादव को भी इस मामले की जानकारी थी। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को 21 अप्रेल को बुखार हो गया और उसकी हालत की खबर दिल्ली में डॉ. अमित तक पहुंचाई और डॉक्टर अमित ने योगेन्द्र यादव को जानकारी दी। जब आरोपियों को योगेन्द्र यादव को जानकारी होने पता चला तो उन्होंने टिकरी से दूसरी जगह ले जाने की कोशिश की। युवती के पूछने पर उन्होंने कहा कि वह उसे घर छोड़ने जा रहे हैं, पर आगरा के पास कहीं ले गए। और फिर योगेन्द्र यादव ने कहा कि वह युवती को टिकरी बॉर्डर लाएं, नहीं तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराएंगे।
फिर वह लोग युवती को बॉर्डर पर छोड़कर फरार हो गए। और जब युवती को अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके पिता वहां पहुंचे तो उस युवती ने अपने पिता को बताया कि उसके साथ गलत काम हुआ है और अगले ही दिन अर्थात 30 अप्रेल की सुबह उसकी मृत्यु हो गयी।
हालांकि युवती के पिता ने पुलिस और किसान नेताओं पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। क्योंकि कहीं न कहीं यह प्रश्न उठना ही था कि 30 अप्रेल को उसकी मृत्यु के नौ दिन बाद आखिर मामला क्यों दर्ज हो रहा है? इसका कारण कहीं न कहीं पुलिस एवं किसान नेताओं की उदासीनता है, जिसने उन्हें प्रेरित किया कि वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएं। उनका कहना है कि 30 अप्रेल को इसी शर्त पर पुलिस ने उनकी बेटी का शव उन्हें लेने दिया था जब उन्होंने यह लिखा कि उनकी बेटी की मृत्यु मात्र कोरोना से हुई है। उसके बाद किसानों ने ही उनकी बेटी का अंतिम संस्कार किया। परन्तु जब उन्होंने अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग की तो किसान नेता आँखें चुराने लगे। और फिर युवती के पिता को पुलिस के पास जाना पड़ा।
इन सब बातों से कुछ प्रश्न फिर उभरकर आ रहे हैं कि यदि योगेन्द्र यादव के पास जानकारी थी तो उन्होंने पुलिस को क्यों नहीं दी? क्यों पुलिस ने मृत्यु का कारण केवल कोरोना ही बताया? क्यों बलात्कार का उल्लेख नहीं किया गया और सबसे बड़ा प्रश्न कि जो किसान नेता यह कह रहे हैं कि उन्होंने कड़ी कार्यवाही की और किसान सोशल मीडिया आर्मी के टेंट हटा दिए गए, तो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं की? क्यों आरोपियों को मंच पर बुलाकर प्रश्न नहीं किये? क्यों एक युवती की मृत्यु का लाभ उठाने की कोशिश की?
क्या इसी कारण आज सोशल मीडिया पर आक्रोश दिखाई दे रहा है? मगर एक प्रश्न यह भी उठता है कि कथित ढपली वाले स्त्रीवादी संगठन आज कहाँ हैं? कहाँ वह वह तमाम औरतें जो इस किसान आन्दोलन में क्रांतिकारी बन गयी थीं?
शायद कथित क्रांतिकारी औरतों के लिए भी साधारण औरतें शिकार ही हैं, जिनका वह सही समय पर प्रयोग कर सकें और जिनकी मृत्यु का फायदा अपने फायदे के लिए कर सकें। क्या वह भी गिद्ध का ही एक रूप हैं? क्या प्रगतिशील महिला साहित्यकारों को इस घटना पर भी उसी प्रकार कविताएँ नहीं लिखनी चाहिए, जैसे वह मंदिर के पुजारियों या भाजपा के नेताओं के विरोध में लिखती हैं? या फिर उनकी प्रगतिशीलता एक तरफ़ा है? कई प्रश्न हैं और उत्तर अब आवश्यक है!
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