मुनव्वर राना ने दो दिन पहले कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार दोबारा आती है, तो वह प्रदेश छोड़ देंगे और कलकत्ते चले जाएंगे। यह बेहद ही गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण बयान है। इसका अर्थ है कि जम्हूरियत की बात करने वाले मुनव्वर राना को लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, उनके लिए लोकतंत्र का अर्थ केवल और केवल वह सरकार है, जो उनके मन के अनुसार हो। मुनव्वर राना की शायरी को हिन्दू और मुसलमान दोनों ही पसंद किया करते थे और मुनव्वर को अपना मानते थे। फिर अचानक से क्या हुआ है कि मुनव्वर राना एकदम से उस सरकार के खिलाफ ही नहीं हुए हैं, जिसे इस प्रदेश की जनता ने बहुमत से चुना है, बल्कि आतंक के पक्ष में भी जाकर खड़े हो गए हैं।
ऐसा नहीं है कि मुनव्वर राना ने अपनी मुस्लिम पहचान को दिखाया है, वह पहले भी यह दिखा चुके हैं और इस्लाम के नाम पर खून खराबे को अपनी स्वीकृति दे चुके हैं। फ्रांस में जब एक शिक्षक की गला रेत कर हत्या इसलिए कर दी थी कि उस पर यह आरोप लगाया था कि उस शिक्षक ने पैगम्बर का कार्टून दिखाया था, तो मुनव्वर राना ने यह कहा था कि यह सही हुआ। यदि वह होते थे यही करते। उन्होंने कहा था कि यदि कोई शख्स मेरे पिता मां का कार्टून गंदा बना दे, तो हम उसे मार देंगे। मुनव्वर ने कहा कि यदि ऐसा हिंदुस्तान में हो कि कोई देवी देवता का कार्टून बना दे जो गंदा हो, जिसमें बेहयाई हो, तो हम उसे मार देंगे।
जब आलोचना हुई थी तो उन्होंने सफाई दी थी। मगर उस दौरान उत्तर प्रदेश के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा था कि शायर की आड़ में एक आतंकी बहरूपिया आज देश में दिखा, लेकिन सवाल यह है कि आतंक का समर्थन करने वाले इस शायर का महिमामंडन कौन करता था और किसने हौसला बढ़ाया।
यही प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आखिर इतना हौसला किसने बढ़ाया? उन्हें इस देश में सभी ने प्यार दिया। मगर जैसा मुनव्वर राना ने कहा था कि अगर कोई देवी देवता का गन्दा कार्टून बनाए तो वह उसे मार देंगे, मगर एक भी वक्तव्य मुनव्वर राना का एम एफ हुसैन पर नहीं दिखता, जिन्होंने हिन्दू देवियों को नंगा दिखाया था। और न ही मुनव्वर राना उन सब स्टैंडअप कॉमेडियन के खिलाफ कुछ बोलते हैं, जिनका काम ही हिन्दू भगवानों पर कीचड़ उछालकर अपना धंधा चलाना है।
इतना ही नहीं किसान आन्दोलन के दौरान संसद गिराने की बात करने वाले मुनव्वर राना ने किसान आन्दोलन के दौरान हिन्दू विरोधी बयानों पर कुछ नहीं कहा। मंदिरों पर हमला करने वाले राकेश टिकैत के बयान पर कुछ नहीं कहा, और न ही उन्होंने शायद कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा पर कुछ लिखा है।
क्या उन्होंने उन मंदिरों के बारे में लिखा, जिन्हें उनके ही पूर्वजों ने तोडा था? नहीं! या फिर जो अभी भी तोड़े जा रहे हैं? वह नहीं लिखते, वह सुविधाजनक रूप से केवल उतना ही सोचते हैं, जो उनके मजहबी एजेंडे के अनुकूल हो।
प्रश्न यही बार बार निकल कर आ रहा है कि आखिर उन्हें योगी सरकार से समस्या क्या है? क्या उनके बेटे की चोरी पकड़ी गयी, उससे उन्हें समस्या है या फिर उनके एजेंडे पूरे नहीं हो पा रहे हैं? जब वह कलकत्ते लौट जाएंगे तो क्या वह कलकत्ते में उन हिन्दुओं के लिए अपनी आवाज़ उठाएंगे जिन्हें ममता बनर्जी के गुंडे मार रहे हैं।
क्या वह चुनावी हिंसा के खिलाफ कुछ कहेंगे? नहीं! वह कुछ नहीं कहेंगे! और क्या औरतों के बारे में इतना संवेदनशील होकर लिखने वाले अपने ही मजहब के एक बार में बोले जाने वाले तीन तलाक और हलाला जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ लिखेंगे? नहीं! फिर यह झूठ क्यों मुनव्वर जी?
केवल मुस्लिम ही पहचान बनाकर रहनी है तो शायरी का ढोंग क्यों? केवल आपको अपने बेटे की गुंडागर्दी के लिए रेड कारपेट चाहिए तो शायरी का सहारा क्यों लेना? जो आपने लिखा है, उसपर तो चलने की कोशिश कीजिये!
मगर आप तो इस सरकार के विरोध में इस तरह आ गए हैं कि आपको छब्बीस जनवरी को लालकिले पर हुई हिंसा में मार खाते हुए पुलिस वाले भी नहीं दिखे! और आप ने बहुत आराम से कह दिया कि सरकार ही हिंसा चाहती थी।
और यदि आप वाकई में अपनी कौम की भलाई चाहते तो आप उन्हें बरगलाते नहीं और यह नहीं कहते कि मुस्लिम इसलिए ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं कि कुछ एनकाउन्टर में मारे जाते हैं और कुछ कोरोना में मर जाते हैं और कुछ एक्सीडेंट में। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों को मुर्गी के बच्चों की संज्ञा देते हुए कहा कि जैसे कोई मुर्गी के बच्चे खरीदता है तो 8-10 बच्चे खरीदता है। उसमें से एक दो बच जाएं तो बच जाएं। ठीक इसी तरह बच्चे पैदा किए जाते हैं।
मगर हमारे लिए बच्चे हमारा अस्तित्व होते हैं, मुनव्वर साहब, मुर्गी की तरह हलाल करने के लिए नहीं! मुर्गे और मुर्गी की तरह आप उन्हें हलाल करने के लिए खरीदते होंगे, हम नहीं!
काश आपने एक भारतीय होकर सोचा होता, और काश आप भारतीय हुए होते!
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