हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ कैसा व्यवहार होता है? जो हिन्दू अपनी जान बचाकर भारत भागकर आए हैं, वह अपनी कहानी बताते हैं। और उनकी कहानी सुनकर आंसू भी निकल आते हैं। कई कहानियां डर और खौफ पैदा करती हैं। लड़कियों का अपहरण होता है, धमकी दी जाती है, और व्यापारियों की हत्या होती है:
परन्तु पाकिस्तान में शियाओं के साथ भी दुर्व्यवहार होता है। बीबीसी हिंदी में आज एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई कि पाकिस्तान में शिया मुसलमान होना कितना मुश्किल है और क्या-क्या सुनना पड़ता है?
इस रिपोर्ट में कई लड़कियों के साथ बातचीत की गयी है और जैसे पहले हिन्दुओं ने अपनी कहानी बताई थी कि कैसे पाकिस्तान में स्कूली किताबें हिन्दुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत सिखा रही हैं? तो इस में शियाओं ने अपने साथ होने वाले भेदभावों पर बात की है।
भेदभाव कैसे होता है:
“क्या शिया घोड़े की पूजा करते हैं?”
“क्या हलीम में सुन्नी बच्चों का मांस मिलाया जाता है?”
“क्या आप सबील के पानी में थूकते हैं?”
“यार, बुरा मत मानना, लेकिन टीचर कह रही हैं कि आपको पहला कलमा पूरा नहीं आता है, ज़रा सुना सकती हो?”
ऐसा शिया समुदाय की पाकिस्तानी महिलाओं ने बीबीसी को बताया।
हम सभी को याद होगा कि कैसे पिछले वर्ष पाकिस्तान में शियाओं को इस्लाम से निष्कासित करने के लिए कराची में कुछ बड़े सुन्नी संगठनों ने शिया विरोधी रैली निकाली थी। गौरतलब है कि पाकिस्तान में शिया समुदाय हमेशा से ही निशाने पर रहा है। बीबीसी की ही रिपोर्ट में पत्रकार खालिद अहमद ने कहा कि 1947 के बाद पाकिस्तान के नेता जिन व्यक्तित्वों को आदर्श मानते रहे, वो न केवल हिंदू विरोधी थे, बल्कि शिया विरोधी भी थे।
ऐसा नहीं है कि केवल शिया ही पाकिस्तान में निशाने पर हैं, अहमदिया समुदाय तो पहले से ही निशाने पर है। हिन्दुओं के साथ क्या किया जाता है, वह पूरा विश्व देखता ही है, लड़कियों के जबरन अपहरण कर लिए जाते हैं और इस्लाम कुबूल करवाकर निकाह करा दिया जाता है। इन कहानियों से पूरा विश्व परिचित है।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मानवाधिकार संगठनों के एक अनुमान के अनुसार, 2001 से अब तक पाकिस्तान में विभिन्न हमलों और टारगेट किलिंग में 2,600 शिया मारे गए हैं। मानवाधिकार संगठनों का यह भी कहना है कि हमलों का एक मुख्य कारण समाज के एक वर्ग में इस समुदाय के ख़िलाफ़ प्रचलित नफ़रती कंटेंट और रूढ़िवादिता है।
हालांकि मार्च में ही शिया समुदाय द्वारा न केवल पाकिस्तान में प्रदर्शन किया गया था, बल्कि यह भी सरकार पर आरोप लगाया गया था कि शिया मुसलमानों को जबरिया गायब कर लिया जाता है।
भारत ने भी फरवरी 2021 में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को जमकर खरी खोटी सुनाई थीं और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन की द्वितीय सचिव सीमा पुजानी ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा था कि पाकिस्तान में ईसाइयों, सिखों और हिन्दुओं समेत कई अल्पसंख्यक समुदायों को हिंसा, संस्थागत भेदभाव और उत्पीडन का सामना करना पड़ता है।
परन्तु यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि इस्लाम में कट्टरता केवल उन्हीं की दुश्मन नहीं है जो इस्लाम को नहीं मानते, बल्कि वह उनकी भी दुश्मन है जो इस्लाम को मानते हैं। बीबीसी की इस रिपोर्ट में खालिद अहमद के हवाले से लिखा है कि पाकिस्तानी अपने देश में चल रही सांप्रदायिक हिंसा की वास्तविकता को स्वीकार करने से इनकार करते हैं
अहमदिया समुदाय के विषय में भी डीडब्ल्यू में एक दिल दहला देने वाली रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी कि पाकिस्तान में मौत अहमदिया लोगों का इंतजार कर रही है?
वहीं पाकिस्तान में हिन्दुओं के विषय में क्या क्या किताबों में पढाया जाता है, उसके विषय में भी बीबीसी में एक बहुत अच्छा साक्षात्कार आया था:
इसमें लिखा था पाकिस्तान की 3.5 प्रतिशत आबादी गैर-मुस्लिम है। एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 1.5 प्रतिशत है।
अमेरिकी सरकार की तरफ से 2011 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, पाकिस्तान के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकें हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पूर्वाग्रह और घृणा को बढ़ाती हैं।
अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के इस शोध के लिए, देश भर में पहली से दसवीं कक्षा तक पढ़ाई जाने वाली सौ पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा की गई। इसके अलावा स्कूलों का दौरा करके छात्रों और शिक्षकों से भी बात की गई।
शोध के अनुसार, स्कूल की किताबें पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की वफादारी को पड़ोसी देश भारत से जोड़ने का प्रयास करती हैं। इस तरह, छात्रों में यह धारणा बनती है कि गैर-मुस्लिमों के अंदर पाकिस्तान के लिए देशभक्ति नहीं है।”
परन्तु पकिस्तान से प्रेम करने वाला एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे यह सब दिखाई नहीं देता है, और एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो भारत में बार बार यह पूछता है कि “क्या होगा यदि भारत में मुस्लिम अधिक हो जाएंगे तो?” तो उन्हें बीबीसी की यह रिपोर्ट पढनी चाहिए कि यदि वह लोग अधिक हो जाएँगे तो पराए तो पराए अपने ही अपनी जान बचाने के लिए गुहार लगाएंगे!
पकिस्तान का पक्ष लेने वाले वह सभी लोग हिन्दुओं की लड़कियों, हिन्दू व्यापारियों की हत्याओं, हिन्दुओं के साथ सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाओं के विषय में आँखें मूँद लेते हैं, वह बस एक फेल्ड स्टेट को किसी तरह भारत के बराबर में खड़ा करना चाहते हैं तभी इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर यहाँ पर ढोलकें बजती हैं, परन्तु वह सभी लोग न ही हिन्दू और न ही और समुदायों के साथ होने वाले अत्याचारों पर मुंह खोलते है!
काश कि जब मजहबी कट्टरता हिन्दुओं को अपना शिकार बना रही थी तब पाकिस्तान से ही आवाज़ उठी होती तो शायद आज स्थिति कुछ और होती! हिन्दुओं का खून पीने के बाद शायद कट्टरता का खंजर उन्हीं की अपनी ओर घूम रहा है!
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