कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद के बाद एक बार फिर से एक और कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी की पुस्तक चर्चा में है। कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने अपनी पुस्तक “10 फ्लैश पॉइंट्स; 20 इयर्स- नेशनल सेक्युरिटी सिचुएशन दैट इम्पेक्क्टेड इंडिया” की घोषणा की। इस पुस्तक के कुछ अंश उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किये। जैसे ही यह घोषणा हुई, वैसे ही इस पर राजनीतिक शोर आरम्भ हो गया और भारतीय जनता पार्टी हमलावर हो गयी।
दरअसल मनीष तिवारी ने अपनी पुस्तक में सुरक्षा स्थितियों के विषय में लिखा है। मगर एक बिंदु पर विवाद आरम्भ हो गया है। उन्होंने 26 नवम्बर को हुए भारत पर सबसे बड़े आतंकी हमले के विषय में लिखा है कि उस समय यूपीए को जो भी कदम उठाने चाहिए थे, वह नहीं उठाए गए हैं। और उन्होंने यह भी लिखा कि उस समय तेजी से कदम उठाए जाने की आवश्यकता थी। वह लिखते हैं कि
“एक ऐसे देश, जिसमें सैकड़ों लोगों को क्रूरता से मारे जाने को लेकर कोई अफ़सोस नहीं था, और ऐसे में संयम या धैर्य किसी शक्ति का नहीं बल्कि दुर्बलता का प्रतीक माना जाता है। कई बार ऐसा समय आया जब बोली से अधिक जरूरी थे कि कदम उठाए जाएं, ऐसा ही एक अवसर था 26/11 का, जब ऐसा होना चाहिए था। यह मेरा मानना है कि भारत को वैसे ही कदम उठाए जाने चाहिए थे, जैसे 9/11 के बाद अमेरिका ने उठाए थे।
26/11 को हुए पाकिस्तानी आतंकी हमले को आरएसएस का षड्यंत्र बताकर हिन्दुओं को बदनाम करने की थी चाल
भारत में 26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी में जो आतंकी हमला हुआ था, उसे कोई भी भारतीय नहीं भूल सकता है। दस आतंकी लगातार गोलियां बरसाते रहे थे। और देश देख रहा था आतंक को, आतंकी चेहरों को और फिर उसके बाद जो हुआ, वह भयावह था।
पाकिस्तान के आतंकी कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था और फिर धीरे धीरे पाकिस्तान की साजिश पता चलने लगी थी,। परन्तु एक वर्ग भारत में ऐसा भी था, जो इस बात से दुखी था कि जो मारने आया है वह पाकिस्तानी क्यों है?
पाठकों को याद होगा कि यह वही समय था जब हिन्दू आतंकवाद का शोर चरम पर था और कई सेक्युलर पत्रकार और लेखक हिन्दू साधुओं और साध्वियों के लिए जहर उगल रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब तक के हुए सारे आतंकी हमले हिन्दुओं ने ही कराए थे। और सारा परिदृश्य हिन्दू आतंकवाद से भर गया था। ऐसे में कलावा बांधे हुए कुछ आतंकियों ने भारत की आर्थिक राजधानी पर हमला कर दिया था। इस हमले से पूरा भारत और विश्व थर्रा गया था और आतंक के इस चेहरे से सहम गया था, तो वहीं हिन्दुओं को ही दोषी ठहराने की पूरी योजना बन गयी थी।
वह तो मात्र एक लाठी के सहारे तुकाराम ओंबले ने कसाब को जिंदा पकड़ कर ऐसे सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया था और हिन्दुओं को आतंकी घोषित करने की सारी योजना धरी की धरी रह गयी थी। ऐसे ही एक पत्रकार थे खुशवंत सिंह, जो अपने कॉलम “बुरा मानो या भला” में हिन्दू संत-महात्माओं तथा साध्वियों के विरुध्द खुलकर दुष्प्रचार में लगे हुए थे। वह यहाँ तक लिखते थे कि “इस्लामिक आतंकवाद” और कुछ नहीं है, बस दुष्प्रचार है।
खुशवंत सिंह 26 नवम्बर की रात को अब दिल्ली में बैठे हुए मुम्बई में हुए हमले को टीवी में देख रहे थे, तो ऐसा लग रहा था जैसे वह दुखी हैं। वह इस बात से बहुत निराश थे कि जिन्होनें हमला किया है वह हिन्दू न होकर मुसलमान हैं! इसी निराशा में उन्होंने 13 दिसंबर को प्रकाशित स्तंभ ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ में लिखा था- ‘टीवी पर यह भी बताया गया कि एक हमलावर को मार गिराया गया है। मैंने उम्मीद की और प्रार्थना की कि उसके शव की जांच से यह पता न चले कि वह मुसलमान था। अफसोस कि वह मुसलमान था। और इसी तरह बाकी गैंग के सदस्य भी मुसलमान थे-पाकिस्तानी थे।’
ऐसा नहीं था कि यह अफ़सोस केवल खुशवंत सिंह को ही था, यह अफ़सोस कई और लोगों को भी था। लिबरल जमात तो जैसे सदमे में आ गयी थी। हालांकि हेमंत करकरे की मृत्यु के लिए भी अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दुओं को दोषी ठहराने की कोशिश की थी, परन्तु वह सफल नहीं हो पाया था।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुर्रहमान अंतुले ने महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे की मृत्यु पर संदेह व्यक्त करते हुए 18 दिसंबर, 2008 को लोकसभा के। बाहर कहा था कि, ”आंखों को जो कुछ दिखता है, उससे अलग कहीं कुछ और बात है।’
हालांकि उसके बाद पाठकों को याद होगा कि कैसे भारत में उर्दू मीडिया के बड़े वर्ग ने उस हमले के लिए आरएसएस को उत्तरदायी ठहरा दिया था। और यह थ्योरी तैरने लगी थी कि यह संघ परिवार और मोसाद का संयुक्त आतंकी अभियान है। फिर अजीज बर्नी ने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम था आरएसएस की साज़िश 26/11, और जिसका विमोचन 6 दिसंबर 2010 को आल इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया था।
हालांकि आतंकी कसाब के इकबालिया बयान के कारण कांग्रेस और सेक्युलर बुद्धिजीवियों का यह षड्यंत्र फलीभूत नहीं हो सका था।
फिर से कठघरे में कांग्रेस
कांग्रेस पर इस आतंकी हमले में पाकिस्तान के प्रति नरमी बरतने की आरोप लगते रहे थे। परन्तु एक बार फिर से कांग्रेस कठघरे में है और इस बार अपने ही नेता के माध्यम से!
देखना होगा कि सुरक्षा के मामलों में नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने वाले राहुल गांधी इस विषय में क्या करते हैं?