आगरा में वर्षा नामक लड़की की असामान्य स्थिति में मृत्यु हो गयी शुक्रवार को आगरा में फईम उर्फ़ अरमान से निकाह करने वाली युवती वर्षा का शव असामान्य स्थिति में मृत मिला। जहां इस घटना के कारण परिवारवाले क्रोधित हैं तो वहीं फईम अभी तक फरार है। हिन्दू संगठनों ने इस घटना को लेकर प्रदर्शन किया, और उस पूरे इलाके में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल नियुक्त कर दिया गया था।
रिपोर्ट्स के अनुसार वर्षा रघुवंशी ने एक वर्ष पहले अरमान के साथ निकाह किया था। घरवाले इस निकाह से खुश नहीं थे और वह घर छोड़कर वहीं रहने लगी थी। जब वह फांसी पर लटकी मिली तो घरवाले आक्रोश से भर गए। मीडिया के अनुसार वर्षा के घर वाले उसका अंतिम संस्कार हिन्दू विधि विधान से करना चाहते थे और ससुराल वाले मुस्लिम रीतिरिवाज से। इसके कारण हंगामा हुआ।
हालांकि वर्षा के भाई दुष्यंत ने वर्षा के ससुरालवालों पर हत्या का आरोप लगाया है और फईम के घरवाले कह रहे है कि उसने आत्महत्या की। यद्यपि पुलिस को उसका शव फर्श पर पड़ा। मीडिया के अनुसार पंखे से फंदा लटका था और फंदा कटा हुआ था।
दुष्यंत का यह भी कहना है कि उनके घरवालों को यह नहीं पता चल पाया था कि कब वह फईम को पसंद करने लगी थी और फिर उसकी शादी के बाद वह कम ही मतलब रखते थे। परन्तु फिर भी बहन जब परेशान रहने लगी थी तो वह उसका तलाक कराने का सोच रहे थे कि इसी बीच यह हो गया। उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारियों को बुला लिया था।
दैनिक भास्कर के पत्रकार सचिन गुप्ता के अनुसार जब पुलिस और भाजपा वाले वहां पर पहुंचे थे, तो अरमान पक्ष ने उन पर पत्थर बरसा दिए थे। और अब अरमान पर हत्या और हमले के दो मामले दर्ज करने की तैयारी थी। अब अरमान समेत 5 लोगों पर दहेज़ हत्या और हंगामे का मुकदमा दर्ज हुआ है।
ऐसा नहीं है कि आगरा की वर्षा की यह कहानी पहली है और ऐसा भी नहीं है कि यह आख़िरी है। रोज ही घटनाएं ऐसी आती रहती हैं। जिन्हें सामान्य अपराध की घटना कहकरटाल दिया जाता है। परन्तु यह सामान्य या साधारण अपराध से बढ़कर कहीं अधिक होती है। यह होती है पहचान की हत्या।
एक जो सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है वह अनदेखा हो रहा है, कि इस प्रकार की शादियों का शिकार लड़कियों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए? कुछ दिन पहले एक और घटना ऐसी ही आई थी। जिसमें पिता ने अपनी मृत लड़की के लिए अंतिम संस्कार की लड़ाई लड़ी थी।
मध्यप्रदेश के छतरपुर की रहने वाली नीलम की छह जुलाई को संदिग्ध स्थितियों में मृत्यु हो गयी थी। फिर बिना उसके मायकेवालों को बताए, ससुराल वालों ने मुस्लिम रीतिरिवाज के अनुसार उसे दफना दिया था। जब यह बात उसके पिता को पता चली थी, तो उन्होंने पुलिस से संपर्क किया था और कहा था कि उनकी बेटी का अपहरण तालिब खान ने वर्ष 2015 में कर लिया था। पुलिस ने लड़की को बरामद तो किया था, पर परिवार के हवाले न करके आश्रय गृह में सौंप दिया था। उसके बाद तालिब खान ने नीलम से शादी कर ली थी।

परन्तु उसकी मौत से कुछ दिन पहले उसके मायके वालों के पास फोन आने लगे थे कि वह लोग उसे परेशान करते हैं और कलमा पढ़ने के लिए दबाव डालते हैं। और नीलम के पिता के अनुसार उसने अपनी हत्या की भी आशंका व्यक्त की थी। फिर उसकी मृत्यु के बाद वह गए और उन्होंने अपनी बेटी का शव लेने का अनुरोध किया। और उसके बाद उन्होंने अपनी बेटी का शव कब्रिस्तान से निकलवाया और हिन्दू विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार किया।
इन दोनों मामलों में समानता है। दोनों में ही लडकियां हिन्दू हैं और हत्यारोपी मुस्लिम पति और ससुरालवाले हैं। और जिस विषय पर दोनों ही लड़कियों के परिवार की पीड़ा है, वह भी समान है अर्थात अंतिम संस्कार का अधिकार।
हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के की शादी मात्र शादी ही नहीं होती है, बल्कि एक लड़की की पूरी धार्मिक स्वतंत्रता का नष्ट होना होता है और संविधान में प्रदत्त उसके मौलिक अधिकार अर्थात धर्म पालन का नष्ट होना होता है। उसकी धार्मिक पहचान एकदम से नष्ट हो जाती है। न जाने कितनी कहानियाँ सामने आती हैं, जिनमें यही कहानी होती है कि लड़की का नाम बदल दिया गया और फिर उसे उसके धर्म की पूजा करने से रोका गया। कभी मानसिक दबाव डालकर तो कभी हिंसा करके!
परन्तु यह होता ही है। निकाह के लिए नाम बदलना अनिवार्य होता ही है, ऐसे में धार्मिक पहचान का प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है और यह भी कि ऐसी शादियों में यदि ससुराल पक्ष द्वारा हत्या होती है, जो स्पष्ट है कि विवाद के चलते ही होती तो अंतत: अंतिम संस्कार कैसे होगा?