असम में गौवध के प्रतिबन्ध को लेकर असम पशु संरक्षण अधिनियम, 2021 पारित हो गया है और इसीके साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि वह ऐतिहासिक असम पशु संरक्षण अधिनियम, 2021 को पारित करने के वादे के पूरा होने के बाद बहुत प्रसन्न और संतुष्ट है।
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि उन्हें यह विश्वास है कि इससे पशुओं के अवैध व्यापार में और अवैध रूप से असम से होकर गुजरने वाले पशुओं के पारगमन पर रोक लगेगी और पशुओं का वही संरक्षण सुनिश्चित हो सकेगा, जैसा युगों से हमारी परम्पराओं में बताया गया है।”
Extremely happy and proud to fulfill our poll promise with the passing of historic Assam Cattle Preservation Act, 2021.
I'm sure this will deal a heavy blow to the illegal cattle trade & transit through Assam, ensuring due care of cattle as practised in our tradition for ages. pic.twitter.com/9RZ4z4iCYd
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 13, 2021
असम में भाजपा का यह चुनावी वादा था कि वह गौ रक्षा के लिए हर कदम उठाएंगे। और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा पहले भी यह कह चुके थे कि गाय हमारी माता है, और हम पश्चिम बंगाल से गायों को नहीं आने देंगे। और उन्होंने कहा था कि जिन स्थानों पर गाय की पूजा की जाती है, उन स्थानों पर गो-मांस नहीं खाया जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि वह यह नहीं कहते कि सभी लोगों को अपनी आदतें अचानक से बदल लेनी चाहिए। परन्तु उन्होंने यह जरूर कहा था कि उन्होंने कई बार लखनऊ के दारुल उलूम के ऐसे बयान सुने हैं कि हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बीफ की खपत पर रोक लगाई जानी चाहिए। और यह मामला क्षेत्र की भावनाओं से जुड़ा हुआ मामला है।
इन्हीं सब तथ्यों के आलोक में कल जब असम पशु संरक्षण अधिनियम, 2021 पारित हुआ तो वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि कानून किसी को भी गोमांस खाने से नहीं रोकता है, मगर जो भी व्यक्ति यह खाता है, उसे दूसरों की धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए। और ऐसा नहीं हो सकता कि साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए केवल हिन्दू ही जिम्मेदार हों, मुसलमानों को भी इसमें सहयोग करना चाहिए।
नए क़ानून के अनुसार अब मंदिरों के पांच किमी के दायरे में गौवध प्रतिबंधित रहेगा। विधायक का विरोध कर रहे विपक्ष का कहना है कि यह मुसलमानों के विरोध में बनाया गया अधिनियम है, मगर वह इस बात का उत्तर देने में असमर्थ है कि क्या हिन्दुओं की कोई भावनाएं नहीं होती हैं? हिन्दू समाज के पास क्या इतना भी अधिकार नहीं है कि मंदिरों के आसपास वह अपनी माता के कटने का विरोध भी कर सके?
भारतीय विपक्षी दलों को हिन्दुओं के मुद्दों से इतनी घृणा क्यों है? हालांकि वह इस मुद्दे पर नहीं बोल रहे हैं कि असम से होकर जो गौ तस्करी होती थी, उसके लिए कौन जिम्मेदार है और उस पर रोक क्यूं नहीं लगनी चाहिए?
इस अधिनियम में यह कहा गया है कि बिना डॉक्टर के प्रमाणपत्र के किसी भी गाय को नहीं काटा जाएगा और चौदह वर्ष से कम आयु की गाय को नहीं काटा जाएगा। इस अधिनियम में यह भी लिखा है, कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वैध परमिट के किसी भी पशु को असम से होकर उस प्रदेश में ले जाने की अनुमति नहीं है जहाँ पर पशुओं का वध कानून से निगमित नहीं है और साथ ही असम से बाहर पशु ले जाने की अनुमति नहीं है।
लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह है बीफ और बीफ से जुड़े उत्पादों पर रोक। इसमें स्पष्ट लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को बीफ या बीफ उत्पादों को तब तक उन स्थानों पर बेचने या खरीदने की अनुमति नहीं है, जिन स्थानों पर सक्षम अधिकारियों ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है।
और जिस बिंदु पर विवाद है और जिसे धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बताया जा रहा है वह पॉइंट संख्या 8 ही है, जिसमें लिखा है कि ऐसी कोई भी स्वतंत्रता उन स्थानों पर नहीं दी जाएगी जहाँ पर हिन्दू, जैन, सिख और अन्य नॉन-बीफ उपयोक्ता (गौ-मांस न खाने वाले) की संख्या अधिक है और साथ ही मंदिर, सतारा या हिन्दू धर्म से सम्बन्धित अन्य धार्मिक संस्थानों या सक्षम अधिकारी/प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किसी अन्य संस्थान या क्षेत्र के पांच मीटर के दायरे में बीफ अर्थात गौ मांस की खरीद बिक्री नहीं की जा सकती है।
इस बात पर बार बार बहस हो सकती है कि खानपान की आदतों पर रोक नहीं लगनी चाहिए, तो इस बात पर भी बहस होनी चाहिए कि आखिर जिस गाय को एक बड़ी संख्या में हिन्दू समाज के लोग अपनी माता मानते हैं, आखिर उनके वध को लेकर क़ानून क्यों नहीं बन सकते? खान पान संस्कृति से ही जुडी हुई होती है, तो क्या हिन्दुओं को अपनी संस्कृति करने का अधिकार नहीं है? ऐसा क्यों होता है कि एजेंडा करने वाले गौ-वध को भी अहिंसा का आवरण पहना देते हैं और हिन्दू धर्म जो सह-अस्तित्व की संस्कृति के साथ साथ गौ-पूजा की संस्कृति की बात करता है, उसे ही कट्टर और हिंसक बता दिया जाता है?
इस बात पर व्यापक विमर्श और चर्चा की आवश्यकता है कि हिन्दू प्रतीकों को जो प्रेम और अहिंसा एवं सर्वकल्याण के प्रतीक थे उन्हें बार बार शोषण का प्रतीक बताते हुए एजेंडाधारियों ने स्थापित कर दिया तो वहीं तलवार से पशुओं का ही नहीं हिन्दुओं का भी गला उड़ाने वाले मजहबी हिंसा को अहिंसा और प्रेम बनाकर प्रस्तुत कर दिया।
परन्तु आम हिन्दू का यही प्रश्न होता है कि “जिस गाय को प्रथम रोटी खिलाते हैं, उसे रोटी में कैसे खाएं?” दुखद है कि एजेंडाधारी इस बात को नहीं समझ पाएंगे!
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