उत्तर प्रदेश का चुनाव अब तीसरे चरण की ओर अग्रसर है और अब सबसे रोचक चरण है, जिसमें अखिलेश यादव का भविष्य भी दाँव पर है। पाठकों को ज्ञात होगा कि अखिलेश यादव करहल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, और जो सीट सभी राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार सपा की परम्परागत सीट है, उनके मतदाताओं की सीट है। मुलायम सिंह यादव कभी करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाया करते थे और करहल से सटा सैंफई उनका पैतृक गाँव है।
करहल और सैंफई के बीच जो प्रशासनिक भवन बने हैं, वह अपने आप में इस क्षेत्र की महत्ता की कहानी कहते हैं। अखिलेश यादव को इसी सीट पर विश्वास था। परन्तु एक बात ध्यान रखनी होगी कि सैंफई और करहल में जो विकास हुआ है, वह मुलायम सिंह यादव के समय में हुआ था और उसी दौरान वह क्षेत्र अपने सफ़ेद भवनों से जगमगा उठा था।
हालांकि कतिपय अनिच्छा के बाद अखिलेश यादव ने करहल सीट को चुना था, क्योंकि उन्हें वहां पर स्वयं पर विश्वास है। या कहें कैडर पर विश्वास है। लोगों का कहना था कि अखिलेश को तो जाने की भी आवश्यकता नहीं थी, वह बिना प्रचार के जीत सकते हैं क्योंकि वह सपा की सीट है। फिर से यही प्रश्न उभरता है कि क्या वह सपा का गढ़ है या मुलायम सिंह यादव का?
वह शहर मुलायम सिंह यादव द्वारा पार्टी की विरासत बना है, क्या अखिलेश यादव अपने दम पर उस राजनीतिक धरोहर को बचा पाएंगे जो उनके पिता ने उन्हें सौंपी है? क्या वास्तव में अखिलेश यादव ने कथित विरासत को सहेजा है? इसमें तनिक संशय है क्योंकि यदि ऐसा होता तो आज उन मुलायम सिंह यादव को करहल में अपने उस बेटे के लिए मत नहीं मांगने आना पड़ता, जिसके विषय में वह स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि जो अपने पिता का नहीं हुआ, वह और किसी का क्या होगा, और इसी कारण सपा चुनाव हार गयी थी
वर्ष 2017 में वह इस बात को कह चुके हैं कि कोई बाप अपने रहते अपने बेटे को मुख्यमंत्री नही बनाता। मगर मैंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद भी मुझे बड़ा अपमान सहना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी में ये मेरा सबसे बड़ा अपमान था।
समय समय पर मुलायम सिंह यादव का दर्द झलका था, और कई लोगों ने अखिलेश यादव को औरंगजेब की भी संज्ञा दी थी। इसके साथ ही एक और वीडियो बहुत वायरल हुआ था, जिसमें मुलायम सिंह यादव का अपमान अखिलेश यादव करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
करहल में अखिलेश यादव का नाम ही लेना भूल गए?
करहल में मुलायम सिंह यादव आज जब अपने बेटे के लिए वोट मांगने गए। यह बहुत ही हैरान करने वाला तत्व है कि एक ओर अखिलेश यादव का यह आत्मविश्वास था कि वह करहल बिना जाए ही जीत जाएंगे, फिर ऐसा क्या हुआ कि आज मुलायम सिंह यादव को अपने “बेटे” के लिए वोट मांगने के लिए आना पड़ा? यदि मुलायम सिंह यादव किसी और भी प्रत्याशी के लिए जाते, तो यह समझ में आता कि यह एक सहज प्रक्रिया है, जिसमें वह अपने दल के प्रत्याशियों के लिए वोट मांग रहे हैं, परन्तु वह आज पहली बार सामने आए, और वह भी अपने बेटे के लिए।
परन्तु सबसे हैरानी की बात यह हुई कि वह अपने बेटे का नाम ही लेना भूल गए! वह अपने भाषण के अंत में अखिलेश को जिताने की अपील करना भूल गए और भाषण को खत्म करने लगे। तभी पास में खड़े धर्मेंद्र यादव को पर्ची देकर उन्हें याद दिलाना पड़ा।
क्या हार का डर सता रहा है अखिलेश यादव को?
करहल से अखिलेश यादव को भारतीय जनता पार्टी के एसपी बघेल बहुत ही कड़ी टक्कर दे रहे हैं, और कहीं न कहीं अखिलेश यादव और सपा को हार का डर सता रहा है, जिस कारण अखिलेश यादव को आज अपने उन पिता की सहायता लेनी पड़ी, जिन्हें वह बार बार अपमानित कर चुके हैं। एसपी बघेल का कहना है कि इस बार वह सपा के इस गढ़ को ढहाएंगे और कमल खिलाएंगे
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि करहल में हारते ही सपा साफ़ हो जाएगी
आज जहाँ मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के लिए वोट मांगे तो वहीं अमित शाह ने भी करहल में एसपी बघेल के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव पर निशाना साधा, उन्होंने कहा कि “’अखिलेश ने कहा था कि मैं पर्चा दाखिल करने के बाद सीधे 10 मार्च को आऊंगा, लेकिन हार के डर से उन्हें पहले ही आना पड़ा। यूपी में इन्होंने इतने साल तक सरकार चलाई, लेकिन करहल में गरीबों के लिए कोई काम नही किया। सिर्फ करहल में कमल खिला दो, पूरे यूपी से सपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा।“
सोशलमीडिया पर भी इस बात का मजाक उड़ा कि मुलायम सिंह यादव अपने बेटे का नाम भूल गए
इस बात को लोगों ने भी संज्ञान में लिया कि अखिलेश यादव फंस गए हैं
किरण रिजीजू ने भी कहा कि अब अपनी हार की डर से बुजुर्ग पिता से रैली करा रहे अखिलेश, रैली के दौरान देखा गया सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव करहल से चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव का नाम ही भूल गए, फिर पड़ोस में खड़े मुलायम के भतीजे और पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव ने अखिलेश का नाम याद कराया!
पिछले दिनों एसपी बघेल पर हमला भी हुआ था
पिछले दिनों भाजपा प्रत्याशी एसपी बघेल पर हमला भी हुआ था, और जिस का आरोप सपा कार्यकर्ताओं पर लगाया गया था।
राजनीति में प्रतीकों का बहुत मोल होता है
राजनीति में प्रतीकों का बहुत मोल होता है और एक छोटा सा वाक्य भी चुनाव पर प्रभाव डाल सकता है, जैसा हमने पहले भी कई चुनावों में देखा है। और इसी बात को आज कई लोगों ने इंगित किया कि जब मुलायम सिंह अपने बेटे का ही नाम लेना भूल गए।
यह बात सत्य है कि मुलायम सिंह यादव के प्रचार में उतरने पर कहीं न कहीं यह सन्देश गया है कि यह सीट खतरे में है तभी अखिलेश यादव को अपने उन पिता को सामने लाना पड़ा और भावुक अपील करवानी पड़ी, जो अब ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं!
यह भी देखना होगा कि क्या मुलायम सिंह यादव का यह भाषण अखिलेश यादव की उन तमाम अभद्रताओं पर भारी पड़ेगा जो वह आजकल कर रहे हैं? जैसे कन्नौज की रैली में अखिलेश यादव की पुलिस को यह धमकी
अखिलेश यादव नई सपा की बात जरूर कर रहे हैं, परन्तु यह बात सही है कि सपा का चाल चरित्र और चेहरा पूरी तरह से वही है क्योंकि सपा के समर्थकों की गुंडागर्दी वही है, और साथ ही जिस प्रकार से सरकार आने पर उसके नेता धमकी दे रहे हैं, वह कहीं न कहीं लोगों के मस्तिष्क में उन्हीं पांच सालों की स्मृति ताजा कर रहा है, जिसमें अपराध अपने चरम पर था, जिसमें माफिया राज था और जब आजम खान आदि के इशारे पर दंगाइयों के खिलाफ भी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती थी!
अखिलेश यादव को संभवतया इस बात का संज्ञान है, तभी उन्होंने अपने वृद्ध पिता को आज इस जंग में धकेल दिया!