मध्यप्रदेश में गुना में जो शिकार का मामला सामने आया है, वह बहुत ही दिल दहला देने वाला है। परन्तु उससे अधिक दिल दहला देने वाला है उसका कारण कि आखिर हिरणों का शिकार किया किसलिए गया? क्या आवश्यकता थी? क्या जीवन बचाने के लिए किसी औषधि आदि के लिए आवश्यकता थी या फिर क्या? और फिर ऐसी क्या आवश्यकता कि हिरणों के साथ साथ मानव रक्त की भी भक्षक बन जाए?
जो कार्य प्रतिबंधित है, उसे करने की अंतत: क्या बाध्यता हो जाती है? वह कौन सी भावना है जो इस सीमा तक इन्हें दुस्साहसी बनाती है? हालांकि इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कई बड़े कदम उठाए जा चुके हैं और शिकारियों का एनकाउंटर किया जा चुका है। फिर भी यह मामला अपने आप में कई प्रश्न उठाता है।
मध्यप्रदेश के आरोन क्षेत्र में शिकारी काला हिरण का शिकार करने गए थे। पर काला हिरण चाहिए क्यों था? काला हिरण चाहिए था, जिससे कि भतीजी के निकाह को और भी लज्जतदार बनाया जा सके! मगर जहां एक ओर भतीजी के निकाह को लज्जतदार बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाकर हर मूल्य पर प्रतिबंधित पशुओं का शिकार करने वाले नौशाद खान और शहजाद खान सहित कई कथित शान्तिप्रिय और डरी हुई कौम के लोग थे, तो वहीं क़ानून का पालन करने वाले सब इंस्पेक्टर राजकुमार जाटव, आरक्षक नीरज भार्गव और आरक्षक संतराम थे, जिन्होनें शिकार की सूचना पाते ही अपने दायित्व को पूर्ण करने के लिए कदम उठाया था।
जब उनका सामना इन शिकारियों से हुआ तो इन शिकारियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलते हुए इन तीनों की हत्या कर दी थी। जरा कल्पना करें कि कोई समुदाय आखिर स्वाद के लालच में ऐसा हो सकता है कि वह मानवों तक को कुछ न माने? उनके लिए अपने स्वाद से बढ़कर किसी का कोई मूल्य नहीं है और स्वाद और सरकार के बीच इस युद्ध में स्वाद ने सरकार को चुनैती दी थी।
सरकार ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए घोषणा कर दी थी कि ऐसा दंड दिया जाएगा कि जनता याद रखेगी।
उन्होंने कहा कि “गुना में शिकारियों का मुकाबला करते हुए हमारे पुलिस के जवानों ने शहादत दी है। अपराधियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई होगी, जो इतिहास में उदाहरण बनेगी।
अपराधियों की लगभग पहचान हो गई। जांच चल रही है। पुलिस फोर्स को भेजा गया है। अपराधी किसी भी कीमत पर नहीं बचेंगे।“
उन्होंने यह भी कहा था कि
पुलिस के साथी श्री राजकुमार जाटव, श्री नीरज भार्गव, श्री संतराम को शहीद का दर्जा देकर इनके परिवार को एक-एक करोड़ रुपये सम्मान निधि दी जायेगी।
परिवार के एक सदस्य को शासकीय सेवा में लिया जायेगा। पूरे सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार होगा।“
घटना के आरोपियों के घर पर प्रशासन द्वारा बुलडोजर चला दिया गया है।
हालांकि दंड मिल रहा है और जहाँ पर शहनाई बजनी चाहिए थी, वहां पर अब सन्नाटा पसरा हुआ है। गाँव वाले या तो अपने घर छोड़कर चले गए हैं या फिर दुबके हुए हैं। यह सनक थी कि भतीजी के निकाह में बारातियों का स्वागत काले हिरण और मोर के मांस से ही किया जाएगा?
जो प्रश्न रह रहकर उठता है वह यही है कि आखिर क्या कारण है कि एक बड़ा वर्ग क़ानून का पालन नहीं करता है। उसके लिए भारतीय क़ानून मायने नहीं रखते?
क्या हर पार्टी द्वारा किया जा रहा तुष्टिकरण इसका कारण है?
जिस प्रकार से देश के कानूनों के प्रति एक दुराग्रह दिखाई देता है, क्या इसका कारण इस वर्ग का हर पार्टी द्वारा किया जा रहा अतिशय तुष्टिकरण है? यह प्रश्न इसलिए खड़ा होता है क्योंकि इनके अपराधों को मुस्लिमों पर अत्याचार कहकर प्रसारित किया जाता है। यह प्रश्न इसलिए उठता है कि अधिकांश लाभार्थी योजनाओं का लाभ लेने पर भी बार बार कहा जाता है कि इस वर्ग को सरकारी योजनाओं में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
यह प्रश्न इसलिए बार बार उठता है क्योंकि इन्हीं के लिए यह कहा जा चुका है कि “देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है!”
इनके हिजाब के अधिकार के तले गिरिजा टिक्कू को ज़िंदा चीरा जाना दब जाता है! हिजाब का अधिकार मौलिक अधिकार बन जाता है और हिन्दू लड़कियों के जीवन का अधिकार बेकार हो जाता है!
यह दुस्साहस इनमें कहाँ से आता है कि एक ओर हिन्दू लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं और दूसरी ओर यदि उनकी बहन किसी हिन्दू से शादी कर ले तो वह उसे मार डालते हैं?
यह अत्यंत प्रशंसनीय है कि अब इस दुस्साहस को दण्डित किया जा रहा है!