आज के दिन अर्थात 26 मार्च वर्ष 1907 में हिन्दी साहित्य की ऐसी रचनाकार का जन्म हुआ था, जिन्होंने स्त्री मन का अनूठा चित्रण अपनी रचनाओं में किया। महादेवी वर्मा, जिनका साहित्यिक कद इतना ऊंचा है कि सहज कोई भी कल्पना नहीं कर सकता। उन्होंने हर विद्या में लिखा। कविता, कहानी, निबंध, संस्मरण आदि सभी उन्होंने लिखा। यह उस समय की बात है, जिस समय के विषय में यह धारणा बनाई जाती है कि हिन्दू स्त्रियों का दमन था, शोषण था, उन्हें पढने नहीं दिया जाता था आदि आदि!
यदि उन्हें पढने नहीं दिया जाता था तो महादेवी वर्मा को कैसे पढने दिया गया? यदि समाज इतना ही पिछड़ा था तो उनकी माँ को कैसे गीता कंठस्थ थी? कुछ कहते हैं कि उनकी माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं। और उनके नाना ब्रज भाषा में कविता लिखा करते थे। उनका विवाह बाल्यकाल में हुआ, परन्तु वह कभी अपनी ससुराल नहीं गईं। उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।
उन्होंने अपने बचपन के दिनों के विषय में अपने जो अनुभव लिखे हैं, वह उस समय उनके परिवार के विषय में बहुत कुछ वर्णन करते हैं। इसे एनसीईआरटी में कक्षा 9 की हिंदी की पुस्तक में सम्मिलित किया गया है। इसमें वह लिखती हैं कि अपने परिवार में कई पीदियों के बाद उनका जन्म हुआ था। ————— उनके बाबा ने बहुत दुर्गा पूजा की क्योंकि उनकी कुल देवी दुर्गा थीं। जब उनका जन्म हुआ तो उनकी बहुत खातिर हुई और उन्हें वह कुछ भी नहीं सहना पड़ा था, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।
फिर लिखती हैं कि उनकी माता जी ने उन्हें पंचतंत्र पढ़ना सिखाया।
अर्थात उनकी माता भी शिक्षित थीं।
परन्तु डॉ. भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में उनके जीवन परिचय में लिखा है कि उस समय स्त्रियों की स्थिति बुरी थी। ऐसी स्थिति में जब कोई स्त्री समाज के बनाए नियमों को तोडती है तो उसे समाज और परिवार की अवमानना और आक्रोश का सामना करना पड़ता है। महादेवी ने नारी के घर के बंधन को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने समाज के रूढ़ बंधनों को रोड़ा और इन सभी बंधनों से मुक्त होकर कर्म क्षेत्र में कूद पड़ीं!
फिर उसके बाद महादेवी जी जीवन परिचय में लिखा है कि
“अपने बचपन को यद् करती हुई वह लिखती हैं कि एक व्यापक विकृति के समय, निर्जीव संस्कारों के बोध से जड़ीभूत वर्ग में मुझे जन्म मिला है, परन्तु एक ओर साधनाभूत आस्तिक और भावुक माता और दूसरी ओर सब प्रकार की साम्प्रदायिकता से दूर कर्मनिष्ठ पिता ने अपने अपने संस्कार देकर मेरे जीवन को जैसा रूप दिया उससे भावुकता बुद्धि के कठोर धरातल पर साधना एक व्यापक दार्शनिकता पर और आस्तिकता एक सक्रिय पर किसी वर्ग या सम्प्रदाय में न बांधने वाली चेतना पर स्थित हो सकती थी।”
अर्थात उनके परिवार में उन्हें स्नेह मिला, चेतना मिली और जब उन्होंने अपने ससुराल न जाने का निर्णय लिया, तब भी उनके उसी परिवार और उसी हिन्दू समाज ने कुछ नहीं कहा, जिसके विषय में यह कहा जाता है कि वह पिछड़ा है, वह स्त्रियों को आगे नहीं बढ़ने देता आदि अदि!
किसी भी कथित पिछड़े हिन्दू व्यक्ति ने उनके चरित्र को लेकर कुछ नहीं कहा होगा, क्योंकि ऐसा अभिलेख मेरी दृष्टि में नहीं आए हैं! बल्कि उनकी रचनाओं में जो विरह था, जो प्रेम था, उसे देखकर उन्हें आधुनिक काल की महादेवी की संज्ञा दी।
परन्तु जिन्हें प्रगतिशील कहा जाता है, जिन्हें कथित रूप से यह कहा जाता है कि इनमें कला है, साहित्य है, और विमर्श है, उन्होंने अवश्य यह पाप किया और महादेवी वर्मा के चरित्र पर दाग लगाने का असफल प्रयास किया। उस वर्ग ने यह भी प्रमाणित किया कि उनके लिए एक सफल स्त्री मात्र इसी लिए सफल है क्योंकि या तो उसका किसी सफल व्यक्ति के साथ सम्बन्ध रहा होगा, या फिर उसका कोई मुस्लिम प्रेमी रहा होगा? इस कल्पना के घोड़े को वह बांधकर नहीं रखते, वह खोले रखते हैं।
डेढ़ वर्ष पूर्व सितम्बर में पुस्तकनामा नामक ब्लॉग पर एक लेख था और उस लेख का शीर्षक था
हिंदी की दीप शिखा महादेवी क्या एक मुस्लिम से प्रेम करती थीं?
“क्या महादेवी वर्मा किसी मुस्लिम युवक से प्रेम करती थीं और उससे वह शादी करना चाहती थीं? क्या इसके लिए उनके पिता ने धर्म परिवर्तन की बात कही थी? क्या इस घटना का असर महादवी वर्मा पर पड़ा था और उसकी गहरी पीड़ा उनकी कविता में कई वर्षों तक छाई रही? इस बारे में यहां बहुत कुछ निश्चित और दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है लेकिन हिंदी के प्रख्यात कथाकार आलोचक दूधनाथ सिंह ने सन 2009 में महादेवी वर्मा पर अपनी पुस्तक ‘महादेवी’ में इस बात के संकेत दिए हैं हालांकि उन्होंने भी इस घटना के बारे में कोई ठोस सबूत भी नहीं दिए हैं लेकिन हिंदी के चर्चित कवि राजेश जोशी के मामा के हवाले से इस बात की तरफ इशारा किया है।
इस बात का कोई भी प्रमाण न ही लेख में है और न ही दूधनाथ सिंह की पुस्तक में। इसी लेख में आगे लिखा गया है
लेकिन क्या महादेवी के किसी मुसलमान युवक से प्रेम करने की कहानी लोगों को दूधनाथ सिंह की मनगढ़ंत कहानी लगती है या एक सनसनीखेज खुलासा-सा लगता है। दूधनाथ के सहपाठी नित्यानन्द तिवारी को इस घटना में सनसनीखेज तत्व दिखता है और महादेवी वर्मा पर पुस्तक लिखनेवाले विजयबहादुर सिंह को भी दूधनाथ सिंह के इस रहस्योद्घटन पर विश्वास नही है।
परन्तु इस ब्लॉग ने एक प्रकार से यह प्रमाणित ही कर दिया है कि महादेवी वर्मा का कोई मुस्लिम प्रेमी था और जिसके वियोग में ही उन्होंने कविताएँ लिखीं और शायद वह अपने ससुराल इसलिए नहीं गईं क्योंकि उन्हें एक मुस्लिम युवक मुल्ला अब्दुर कादिर से प्रेम था और वह उनसे विवाह करना चाहती थी।
यह पूरा लेख संभावनाओं के आधार पर लिखा गया था। कोई भी व्यक्ति किसी से प्रेम करने के लिए स्वतंत्र है, और यदि महादेवी वर्मा जी का किसी से प्रेम सम्बन्ध था भी तो यह रहस्योद्घाटन और किसी ने भी किया होता! सुभद्रा कुमारी चौहान उनकी मित्र थीं, उन्हें वह बता सकती थीं, परन्तु ऐसा कोई उल्लेख नहीं प्राप्त होता है और जिस हिन्दू समाज को पिछड़ा घोषित किया जाता है, उसने महादेवी जी की कविताओं से ही मतलब रखा, उसे बस उनकी कविता कविता कभी रुलाती थी तो कभी उनके संस्मरण हंसाते थे, भावुक करते थे।
कभी शायद ही उसके चित्त में यह ध्यान आया हो कि महादेवी वर्मा अपनी ससुराल क्यों नहीं गईं?
परन्तु उन पर उनके साहित्य जगत ने ही संदेह किया और उनके चरित्र हनन का प्रयास किया। क्योंकि वामपंथ जब रचनाओं को नहीं हरा सकता है तो वह यौन हमला करता है और कहीं न कहीं यह महादेवी जी के साथ करने का कुप्रयास किया गया एवं साथ ही आजकल वही फेमिनिज्म और हिन्दी का कथित प्रगतिशील वर्ग मीराबाई के साथ कर रहा है, उन्हें कृष्ण के बहाने किसी और पुरुष की दैहिक प्रेमिका के रूप में!
यह हमारी धरोहरों पर वामपंथी आक्रमण है!