बार बार हिन्दुओं या भारतीय जनता पार्टी को असहिष्णु कहने वाले लोग महाराष्ट्र में एक ऐसी घटना पर चुप हैं, जिस घटना पर शोर मचना चाहिए था। यह देखना क्षोभ और दुःख से भरता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ गयी यह, यह कहने वाले लोग उन सरकारों द्वारा उठाए गए क़दमों पर एकदम चुप रहते हैं, जो गैर-भाजपा सरकारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मिटाने के लिए उठाती हैं। महाराष्ट्र भी ऐसा ही एक प्रदेश है, जहाँ पर दिनों दिन ऐसे लोगों को जेल भेजे जाने के कई समाचार आ रहे हैं, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंताजनक हैं।
पहला समाचार है कि महाराष्ट्र में एक अभिनेत्री ने एक ऐसी पोस्ट साझा कर दी थी, जिसमें कथित रूप से शरद पवार की झलकी मिल रही थी, और कुछ नहीं। चिताले पिछले एक महीने से जेल में है। जी हाँ, पिछले एक महीने से! और किस कारण से, मात्र एक ऐसा पोस्ट साझा किए जाने को लेकर जिसमें मात्र शरद पवार होने का संकेत मात्र मिला था और ब्राहमण विरोधी होने पर नरक में जाने की बात थी।
इस पोस्ट को लेकर उसे पुलिस ने हिरासत में लिया, और अब एक महीना हो गया है, परन्तु वह अभी तक जेल में है। वह क्यों जेल में है? उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ भी नहीं है? और क्या अब महाराष्ट्र में शरद पवार के विरुद्ध बोलना इतना बड़ा अपराध है कि उसके लिए जेल में डाल दिया जाएगा? एक माह? 30 दिन! और अभी तक उसके छूटने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है।
उसके पक्ष में किसी भी फेमिनिस्ट ने कोई ट्वीट नहीं किया है, कोई कविता नहीं लिखी है। बुलबुलों की तरह उछलने वाली फेमिनिस्ट, जिन्हें इस बात का बहुत दुःख है और वह उत्तर प्रदेश सरकार को कोस रही हैं कि वह कैसे एक अपराधी जावेद पम्प का घर गिरा सकती हैं, वह चिताले पर नहीं बोल रही हैं। चिताले का पक्ष रखने के लिए कोई भी मानवाधिकार कार्यकर्त्ता नहीं आगे नहीं आया है, यही प्रश्न आनंद रंगनाथन ने भी किये:
उसने मात्र इतना लिखा साझा किया कि नरक आपका इंतज़ार कर रहा है और उसे हिरासत में ले लिया गया। हर छद्म धर्मनिरपेक्ष लोगों पर अब आम जनता प्रश्न उठा रही है:
मुम्बई उच्च न्यायालय ने एक ऐसे ही दूसरे मामले में सरकार को फटकार लगाई है। जैसे चिताले पर शरद पवार के अपमान का आरोप था, वैसे ही एक विद्यार्थी निखिल भामरे पर भी यह आरोप था कि उसने एक ऐसी पोस्ट की थी, जिसमें कथित रूप से शरद पवार का अपमान था। इस बात को लेकर 13 जून को मुम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हर दिन सैकड़ों और हजारों ट्वीट्स होते हैं, क्या आप हर ट्वीट का संज्ञान लेंगे? हमें ऐसी एफआईआर नहीं चाहिए, नहीं सुना कि किसी विद्यार्थी को इस प्रकार से कस्टडी में रखा गया हो!”
निखिल भामरे के मामले में तो न्यायालय ने यह कह दिया है कि गृह सचिव से बात करें और यह स्टेटमेंट दें कि आप कस्टडी से इसकी रिहाई का विरोध नहीं करेंगे। परन्तु चिताले के मामले में अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
कल जब एक महीना उसे जेल में पूरा हो गया है, तब लोग यह स्वाभाविक प्रश्न कर रहे हैं कि चिताले को जमानत क्यों नहीं मिल सकती है?
ऐसा नहीं है कि मामले केवल यही दो हैं। यह श्रृंखला है। इसमें नया नाम है साद अशफाक अंसारी का, जो महाराष्ट्र के भिवंडी में एक इंजीनियरिंग का विद्यार्थी है और उसे उसके समुदाय के कट्टरपंथी लोगों ने इसलिए निशाना बनाया क्योंकि उसने भारतीय जनता पार्टी की निलंबित नेता नुपुर शर्मा के पक्ष में पोस्ट लिख दी थी।
भीड़ ने उसे मारा और उसे कलमा पढने पर मजबूर किया। और बाद में अंसारी को हिरासत में ले लिया
हालांकि इस मामले को जब मीडिया में उठाया गया तो महाराष्ट्र में उन सौ लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखी गयी जिन्होनें साद के साथ हिंसा की थी
कुछ यूज़र्स ने ट्वीट किया कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 120 से अधिक एसटी कामगारों को शरद पवार के बंगले के बाहर प्रदर्शन करने के कारण हिरासत में ले लिया गया है।
यह बहुत ही क्षोभ का विषय है कि इस विषय में वह पत्रकार भी मौन हैं, जिन्हें कथित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता रहती है और जिनके लिए भारत के टुकड़े टुकड़े होना कहना स्वतंत्रता है और हिन्दुओं को अपशब्द कहना रचनात्मक स्वतंत्रता!
परन्तु महाराष्ट्र में क्या हो रहा है उन्होंने दृष्टि फेर रखी है, क्योंकि जब महाराष्ट्र सरकार का विरोध करने पर कंगना रनाउत का बँगला तोडा जा रहा था, तो वही वर्ग जो आज जावेद पम्प के बंगले पर बुलडोजर चलाए जाने को लेकर आन्दोलन कर रहा है, वह प्रसन्न था और उसे कानून का राज बता रहा, वह अर्नब के हिरासत में लिए जाने को “आइसक्रीम खाकर इंजॉय” करने की बात कर रहा था!
परन्तु वही वर्ग महाराष्ट्र में आम लोगों के भी साथ नहीं है, यह क्षोभ एवं दुःख का विषय है तथा उनके दोगलेपन पर प्रश्न उठाता है!