मुम्बई में हुए बम धमाकों में एक दो नहीं बल्कि ढाई सौ से अधिक लोग मारे गए थे और इसके लिए आतंकी याकूब मेनन को दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड दिया गया था। उसे वर्ष 2015 में फांसी दे दी गयी थी। हालांकि भारत में ऐसे कई लोग हैं, जिनके लिए उन ढाई सौ लोगों के परिवारों के आंसुओं और पीडाओं का कोई मोल था ही नहीं जिन्हें याकूब मेनन ने अपनी मजहबी क्रूरता के चलते मार डाला था।
1993 में हुए धमाके साधारण नहीं थे, वह पूरे देश के विरुद्ध एक युद्ध था। मगर इस युद्ध में देश को छलनी करने वालों को बचाने के लिए भी कई लोग सामने आए थे। क्या इनमें से किसी ने भी उन लोगों के आंसू पोंछने की एक भी कोशिश की होगी जिन्हें इस मजहबी सनक ने हमेशा रह जाने वाले घाव दिए थे? मगर वह लोग पहुँच गए थे बचाने के लिए याकूब मेनन को! और दया याचिका में वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी, कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी, वरिष्ठ वकील और पूर्व मंत्री प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार एन। राम, आनंद पटवर्धन और महेश भट्ट जैसे लोग सम्मिलित थे।
मीडिया के अनुसार याकूब की माफी की याचिका में हस्ताक्षर करने वाले और लोगों में सम्मिलित थे मणि शंकर अय्यर (कांग्रेस), मजीद मेनन (एनसीपी), सीताराम येचुरी (सीपीएम), डी राजा (सीपीआई), केटी एस तुलसी और एचके दुआ (नॉमिनेटेड सांसद), प्रकाश करात (सीपीएम) आदि शामिल हैं। इसके अलावा, जस्टिस पंचानंद जैन, जस्टिस एचएस बेदी, जस्टिस पीबी सावंत, जस्टिस एच सुरेश, जस्टिस के पी सुब्रमण्यम, जस्टिस एस एन भार्गव, जस्टिस नागमोहन दास, जानीमानी वकील इंदिरा जयसिंह आदि ।
यह बहुत ही दुखद है कि उस समय भी याकूब के पक्ष में कई लोग आए थे, और अभी जो जानकारी आ रही है, उसे देखकर तो पूरे देश का गुस्सा होना स्पष्ट है। पूरे देश को हिलाकर रखने वाले याकूब मेनन की कब्र को मजार में बदला जा रहा था। उसकी कब्र को आलीशान दरगाह में बदला जा रहा था, उसे रोशन किया जा रहा था! सैकड़ों लोगों के जीवन में अन्धेरा करने वाले वाले को मरने के बाद भी रोशनी उपलब्ध कराई जा रही थी।
भारतीय जनता पार्टी के नेता राम कदम ने ट्वीट करते हुए कहा
कि कब्र पहले और बाद में!
यह भी बात सच है कि आज जो कब्र को दरगाह बना रहे थे, आज से कुछ साल बाद आतंकी याकूब मेनन की कहानी किसी ऐसे जुनूनी की कहानी के रूप में दिखा दी जाती जिसने अपने किसी भले काम के लिए यह कदम उठाया था। वैसे यह काम कट्टरपंथ की दृष्टि से बहुत बड़ा और भला कदम ही तो है, जो उसने उठाया था। कुफ्र से बड़ा भी कोई गुनाह है? और काफिरों को मारने से तो जन्नत मिलती ही है।
मगर यही काफ़िर जाकर अपने कातिलों की दरगाहों पर चादर चढ़ाते हैं, यह भी सच है। जैसा कि बहराइच में गाजी मियाँ अर्थात सैय्यद सालार मसूद की दरगाह पर लगने वाले मेले से देखा जा सकता है। अभी यह मामला और भी प्रकाश में इसलिए आया था क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान ओपी राजभर एवं अकबरुद्दीन ओवैसी उस दरगाह पर गए थे।
और उन्होंने चादर चढ़ाई थी। जबकि महाराज सुहेलदेव ने सैय्यद सालार मसूद गाजी को परास्त किया था। मसूद गाजी ने हिन्दुओं का कत्लेआम किया था और साथ ही बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का धर्मांतरण कराया था।
इतना ही नहीं गाजी शब्द का अर्थ ही होता है काफिरों को मारने वाला, तभी बाबर, अकबर आदि ने गाज़ी की उपाधि धारण की थी। ऐसा नहीं है कि सैयद सालार गाजी को ही विमर्श में एक फकीर बना दिया, औरंगजेब को भी जिंदा पीर बनाए जाने की कोशिशे होती रहीं।
और जिस अकबर को इतिहास में सबसे महान शासक बताने की कुचेष्टा तब तक की जाती रही है, वह भी हेमू को मारकर गाजी की उपाधि धारण करके ही गद्दी पर बैठा था
विसेंट स्मिथ द डेथ ऑफ हेमू इन 1556, आफ्टर द बैटल ऑफ पानीपत (The Death of Hemu in 1556, after the Battle of Panipat) में अहमद यादगार को उद्घृत करते हुए लिखते हैं कि “किस्मत से हेमू के माथे में एक तीर आकर लग गया। उसने अपने महावत से कहा कि वह हाथी को युद्ध के मैदान से बाहर ले जाए। मगर वह लोग भाग न पाए और बैरम खान के हाथों में पड़ गए। इस प्रकार बेहोश हेमू को बालक अकबर के पास लाया गया, और फिर उससे बैरम खान ने कहा कि अपने दुश्मन को अपनी तलवार से मारे और गाजी की उपाधि धारण करे। राजकुमार ने ऐसा ही किया, और हेमू के गंदे शरीर से उसका धड़ अलग कर दिया।”
डे लेट (De Laet) की पुस्तक में भी यही विवरण प्राप्त होता है। डच में लिखी गयी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद स्मिथ ने दिया है जो इस प्रकार है “ हेमू के सैनिक अपने राजा को हाथी पर न देखकर भागने लगे और मुगलों ने अधिकार कर लिया। और बैरम खान ने हेमू को पकड़ कर अकबर के सामने प्रस्तुत किया। अकबर ने अली कुली खान के अनुरोध पर अचेत और आत्मसमर्पण किए हुए कैदी का सिर तलवार से काट दिया और फिर उसके सिर को दिल्ली के द्वार पर लटकाने का आदेश दिया।” (Smith, Vincent A। “The Death of Hemu in 1556, after the Battle of Panipat।” Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, 1916, pp। 527–535। JSTOR)
यह जबरन बनाए हुए हर मुस्लिम नायक की कहानी है जिसने हिन्दुओं को मारा उसकी कब्र को दरगाह बनाकर पेश कर दिया गया, अकबर की तो पूरी की पूरी कहानी ही ऐसी बना दी गयी कि जिसमें नकली महानता ही थी। इतना ही नहीं हाल ही में औरंगजेब की कब्र पर भी ओवैसी ने फातिहा पढ़ा था।
सैय्यद सालार मसूद गाजी, अकबर, औरंगजेब आदि सहित न जाने कितने मुस्लिम क्रूर शासक लाखों हिन्दुओं के खून से अपने हाथ रंगे बैठे हैं, क्योंकि इस्लामिक जिहाद, अ लीगेसी ऑफ फोर्स्ड कन्वर्शन, इम्पीरियलिज्म एंड स्लेवरी में (Islamic Jihad A Legacy of Forced Conversion‚ Imperialism‚ and Slavery) में एम ए खान अकबर के विषय में लिखते हैं “बादशाह जहांगीर ने लिखा है कि मेरे पिता और मेरे दोनों के शासन में 500,000 से 6,00,000 लोगों को मारा गया था। (पृष्ठ 200)
क्या याकूब मेनन जिसने ढाई सौ लोगों से अधिक की ह्त्या की, उसकी कब्र को दरगाह बनाकर यही करने की कुचेष्टा की जा रही थी कि हिन्दुओं के हत्यारे को एक महान आदमी में बदल दिया जाए? और वहां पर हिन्दू ही चादर चढाकर मन्नत मांगने जाए जैसा बहराइच में जाता है! जबकि वह कैसा था, उसके विषय में पर्याप्त जानकारी है
याकूब की कब्र के सौन्दर्यीकरण से एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि कहीं न कहीं ऐसा ही होता कि आज से कुछ वर्षों के बाद हिन्दू ही वहां पर जाकर मन्नत मांगते
इस विषय में महाराष्ट्र सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं। और कब्र से लाइटें आदि हटा दी गयी हैं