spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
34.1 C
Sringeri
Tuesday, April 16, 2024

लचित बोरफुकन – अहोम साम्राज्य का वो शूरवीर जिसने मुग़लों से लिया था लोहा, औरंगज़ेब को चटाई थी धूल

असम के महान योद्धा लचित बोरफुकन की दिनांक 24 नवंबर को मनाई गयी। ‘पूर्वोत्तर के शिवाजी‘ नाम से प्रचलित लचित अपनी वीरता के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था। उनका वीरता का प्रताप इतना है कि भारतीय सेना की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक से सम्मानित किया जाता है। इस पदक को वर्ष 1999 में रक्षा कर्मियों हेतु बोरफुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये स्थापित किया गया था।

Picture Source – Wikipedia

17वीं शताब्दी की बात है, जब मुगल पूरे भारत पर कब्ज़ा करने का सपना देख रहे थे। उन्होंने भारत के बड़े भूभाग पर मुगलिया परचम लहरा भी दिया था। 16वीं शताब्दी के अंत तक मुग़लों ने बंगाल पर भी कब्ज़ा कर लिया था, अब उनका अगला लक्ष्य था पूर्वोत्तर का वह भाग जो उनकी पहुंच से अब तक दूर था। इस क्षेत्र में अहोम वंश का राज था, और उन्होंने मुग़लों को हर युद्ध में हराया।

अहोम राज्य के नाम का अर्थ ही है ‘अजेय‘। असम की धरती पर मुगलों की सबसे शर्मनाक हार हुई थी, और सराईघाट के युद्ध के बाद तो मुग़लो का मनोबल टूट गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि असम की धरती पर हुई हार के पश्चात ही मुगलों की जड़ें हिलने लगी थी। उसी अहोम साम्राज्य के महान योद्धा और सेनापति थे लचित बोरफुकन, जिन्होंने मुग़ल शासक औरंगज़ेब को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। लचित ने ‘अहोम’ की धरती पर किसी भी विदेशी को कदम नहीं रखने दिया था।

Picture Source – Twitter

लचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को असम के प्रागज्योतिशपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मोमाई तामुली बोरबरुआ था । बचपन से ही वह बड़े ही निपुण थे और उन्हें बहुत ही जल्दी कूटनीति, अर्थशास्त्र, राजनीति और अस्त्र-शस्त्र सञ्चालन का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। अहोम राजा चक्रध्वज सिंहा ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर उन्हें कई उपाधियां दी, जैसे- सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ, सिमूलगढ़ किले का सेनापति आदि।

1663 ईस्वीं में बंगाल के मुगल सूबेदार मीर जुमला ने अहोम राज्य की सेना को हरा दिया था। इसके पश्चात दोनों राज्यों के मध्य बाद घिलाजारीघाट की संधि हुई थिस, जिसके अनुसार अहोम राजा जयध्वज सिंहा को 90 हाथी, 3 लाख तोला सोना, राज्य का एक बहुत बड़ा भाग और यहां तक कि अपनी एक बेटी मुगल हरम को देनी पड़ी थी। राजा जयध्वज सिंहा यह अपमान सहन नहीं कर पाए और उनकी मृत्यु हो गयी, जिसके पश्चात उनके उत्तराधिकारी चक्रध्वज सिंहा ने इस अपमान का बदला लेने का प्रण लिया था।

ऐसा बताया जाता है कि लचित की वीरता से प्रभावित हो कर राजा चक्रध्वज ने अगस्त 1667 में लचित बोरफुकन को अहोम सेना का सेनापति बनाया था। कुछ ही समय में लचित ने कई युद्ध अभियान चलाये और गुवाहाटी से मुगलों को मार भगाया। ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में स्थित इटाखुली में बोरफुकन ने अपनी सेना का मुख्यालय बनाया था। लाचित ने कुशलतापूर्वक अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया और वर्ष 1667 की गर्मियों के मौसम तक अहोम साम्राज्य की सेना को इतना शक्तिशाली बना दिया कि मुग़ल भी इस सेना से लड़ने में घबराने लगे।

सराईघाट का युद्ध, लचित की असाधारण वीरता

1671 ईस्वी में मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के मध्य हुए युद्ध को ‘सराईघाट का युद्ध‘ कहा जाता है। यह युद्ध इसलिए लड़ा गया था, क्योंकि लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उसपर फिर से अपना अधिकार कर लिया था और उन्हें गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था। इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था।

मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने गुवाहाटी वापस लेने के लिए, आमेर के राजा जय सिंह के बेटे राजा राम सिंह को बड़ी सेना के साथ भेजा था। उनकी सेना में 30,000 पैदल सैनिक, 15,000 तीरंदाज, 18,000 घुड़सवार, 5,000 बंदूकची और 1,000 से अधिक तोपों के अलावा नौकाओं का एक विशाल बेड़ा था, लेकिन इसके बावजूद लचित की रणनीति के आगे उनकी एक न चली और मुग़लों को हार कर पीछे हटना पड़ा।

Picture Source – Wikimedia

इतिहासकार बताते हैं कि इस युद्ध से पहले ही लचित बुरी तरह बीमार पड़ गए थ। युद्ध क्षेत्र में जब अहोम कमज़ोर पड़ने लगे तब लचित बीमार होते हुए भी युद्धभूमि में पहुंचे और उन्हें देखकर सैनिकों में नई ऊर्जा भर गई थी। अहोम सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया और मुगलों को मानस नदी तक पीछे हटने पर विवश कर दिया था।

मुग़ल भी लचित की वीरता से हुए थे भौंचक्के

मुगलों की सेना में 1,000 से अधिक तोपों के अतिरिक्त नौकाओं का एक बड़ा बेड़ा था। लेकिन लचित की रणनीति के आगे उनकी कोई चाल न चली और मुगल लगातार हारते ही रहे। मुगल सैनिक भी अहोम सैनिकों की वीरता से प्रभावित हो गए थे, ऐसा बताया जाता है कि स्वयं राम सिंह ने मुग़ल शासक औरंगज़ेब से अहोम सैनिकों और लचित की असाधारण वीरता के बारे में बताया था।सराईघाट युद्ध जीतने के लगभग एक वर्ष पश्चात, 25 अप्रैल, 1672 को लचित बोरफुकन का निधन हो गया था।

लचित ने काटा डाला था अपने मामा का गला

इतिहासकार बताते हैं कि लचित ने अपने सैनिकों को मात्र एक रात में एक दीवार बनाने का आदेश दिया था। उन्होंने अपने मामा को यह दीवार बनाने का उत्तरदायित्व दिया था, क्योंकि वह स्वयं बीमार थे। कुछ समय पश्चात लचित जब वहां पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि सारे सैनिक हताशा और निराशा से भरे हुए हैं, क्योंकि उन्होंने पहले ही ये मान लिया था कि वो सूर्योदय से पहले दीवार का निर्माण नहीं कर पाएंगे।

यह देखकर लचित को अपने मामा पर बहुत गुस्सा आया कि वो काम करने के लिए अपने सैनिकों का उत्साह भी नहीं बढ़ा सके। इसी गुस्से में उन्होंने अपनी तलवार निकाली और एक झटके में ही अपने मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में उन्होंने स्वयं सैनिकों में इतना जोश भर दिया कि उन्होंने सूर्योदय से पहले ही दीवार खड़ी कर दी। एक सेनापति के रूप में उन्होंने अपने सैनिकों में इसी उत्साह और जोश को बनाए रखा, जिसकी पश्चात उन्होंने यह दुरूह युद्ध जीत लिया था।

जोरहाट से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित लचित मैदान में लचित के अंतिम अवशेष संरक्षित हैं। यह वर्ष 1672 में स्वर्गदेव उदयादित्य सिंह द्वारा हूलुंगपारा में निर्मित कराया गया था। लचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय के स्मरण में ही हर वर्ष 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। हम इस महान सेनापति और हिंदुत्व के रक्षक को नमन करते हैं, हमे पूर्ण विश्वास है कि लचित बोरफुकन सदैव हमारे समाज के लिए एक प्रेरणा पुंज का कार्य करते रहेंगे।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.