अभी बहुत दिन नहीं हुए जब वामपंथी नेता कन्हैया कुमार “वंशवाद से आज़ादी” गाते थे और अब कल वह उसी पार्टी में चले गए, जो वंशवाद और भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी प्रतीक है। भारत में जो भी भ्रष्टाचार होता है, उसकी जड़ें कहीं न कहीं जाकर कांग्रेस पार्टी से मिलती हैं और यह अभी तक मिलती रहेंगी। परन्तु वंशवाद, और भ्रष्टाचार से आज़ादी की बात करने वाले कन्हैया कुमार, अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ बैठेंगे।
यह देखना अत्यंत रोचक होगा कि पूर्व में वामपंथी रहे कन्हैया कुमार, अब कांग्रेस के साथ कैसे कार्य करेंगे? परन्तु यदि इतिहास में जाएं तो पता चलेगा कि कांग्रेस और वामपंथ दोनों का नाता बहुत पुराना है, और दोनों एक दूसरे को अस्पर्श्य नहीं मानते हैं।
पत्रकार संदीप देव की पुस्तक “कहानी कम्युनिस्टों की” में वाम और कांग्रेस के खट्टे मीठे सम्बन्धों को विस्तार से सप्रमाण बताया गया है, तथा यह स्थापित किया है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू समाजवादी थे और वह सोवियत संघ से बहुत प्रभावित थे। हालांकि यही वामपंथी भारत की स्वतंत्रता को पूर्ण स्वतंत्रता तब तक नहीं मानेंगे जब तक यहाँ पर लाल क्रान्ति न हो जाए। यह उनका एक पुराना सपना रहा है और कैसे भी करके, सत्ता में बने रहना ही उनका उद्देश्य रहा है।
यही कारण है कि वामपंथियों ने सत्ता में न रहते हुए सत्ता में रहने के नए नए मार्ग चुने। भारत का लोक वामपंथ को ठुकरा चुका है और उसने यह बार बार चुनावों में किया है। परन्तु फिर भी यह बात एकदम से समझ नहीं आती है कि कांग्रेस के साथ बाहर से सत्ता पाने वाले और कांग्रेस को कभी लोकतंत्र का सबसे बड़ा खतरा बताने वाले लोग पार्टी में कैसे रहेंगे? पर ऐसे लोग पूर्व में आकर दल की सेवा कर रहे हैं। कल ऐसा ही एक ट्वीट छत्तीसगढ़ महिला कांग्रेस प्रभारी से दिखा, जिसमें उनके परिचय में लिखा है कि वह 11 वर्षों तक नक्सली रही हैं और अब वह कांग्रेस में हैं, उन्होंने कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने को लेकर लिखा
“मुझे नहीं मालूम है कि पीएम मोदी अमेरिका से आने के बाद क्वारंटीन हैं या नहीं, पर मेरे भाई जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार के मेरे नेता श्री राहुल गांधी के नेतृत्व के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद जरूर मोदी जी कुछ दिनों के लिए अकेले कमरे में बंद हो जाएंगे बधाई भाइयों
लेकिन कांग्रेस के साथ जुड़ने वाले कन्हैया कुमार के लिए आलोचना एक दूसरे वर्ग से आ रही है और वह देखना रोचक होगा कि कैसे कांग्रेस और कन्हैया कुमार और कन्हैया कुमार को लोकतांत्रिक और सेक्युलर नेता कहने वाले इस प्रश्न का उत्तर देते हैं। वह है उमर खालिद का मुसलमान होने के कारण जेल में होना और कन्हैया कुमार का हिन्दू होने के कारण बाहर होना। जब से कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थामा, तभी से कन्हैया कुमार को धोखेबाज़ की उपाधि दी जाने लगी। एक यूजर ने लिखा कि “कन्हैया कुमार ने उमर को धोखा दिया, और खुद को उमर से दूर कर लिया और वह एक अवसरवादी है, जिसने अपने राजनीतिक फायदे के लिए मुस्लिमों के लिए आवाज़ नहीं उठाई!”
जबकि पूर्व में कन्हैया कुमार ने बाबरी मस्जिद के पक्ष में रहकर हिन्दुओं को खूब कोसा था और कहा था कि राम मंदिर बनाने के लिए नहीं, सरकार बनाने के लिए बाबरी मस्जिद गिराई गई थी क्योंकि नाथूराम के भक्तों को मालूम है कि वोट मस्जिद गिराने से मिलता है, मन्दिर बनाने से नहीं।
परन्तु कन्हैया कुमार ने यह नहीं बताया था कि मस्जिद गिराने के इतने वर्षों के बाद सरकार बनी थी। और वह मस्जिद थी ही नहीं केवल ढांचा था, हर स्थान पर उसे ढांचा के रूप में ही बताया गया है। इतना ही नहीं कन्हैया कुमार इस्लाम को बराबरी का मजहब बता चुके हैं और यही झूठ दोहरा चुके हैं कि इस्लाम में कोई जातिगत भेदभाव नहीं है।
वहीं आरफा खानम शेरवानी भी कन्हैया कुमार के इस प्रकार कांग्रेस में जाने से परेशान हैं और वह भी कह रही है कि कन्हैया कुमार तो ठीक है, वर्ष 2014 के बाद उभरे ब्रिलिएंट नेताओं में से एक है, परन्तु जिस दिन वह कांग्रेस के साथ जा रहे हैं, उस दिन मैं उमर खालिद के बारे में सोच रही हूँ, जो सबसे चमकदार सितारों में से एक है, और क्रांतिकारी आदमी, जो जेल में पड़ा हुआ है। क्या वह केवल मुस्लिम होने के कारण ही जेल में है?
वहीं जाकिर अली त्यागी ने कन्हैया को जेएनयू से जनेऊ तक कहा है!
वहीं कन्हैया कुमार के कांग्रेस में जाने से वह गुप्त समझौता अब सबके सम्मुख आ गया है, जिसके अंतर्गत वामपंथियों और कांग्रेसियों की यह नूराकुश्ती सामने आ गयी है जो अभी तक परदे के पीछे से हो रही थी। वामपंथी साहित्यकारों ने हमेशा ही कांग्रेस को कवर फायर दिया था। वह हमेशा ही कांग्रेस के साथ रहे, नहीं तो कभी ऐसा हो ही नहीं सकता था कि वह सरकार का विरोध करे और सरकार उन्हें ही प्रोफेसर शिप आदि से सम्मनित करे।
कथित बौद्धिक संपदा पर वामपंथी नियंत्रण को कांग्रेस ने सदा ही मान्यता दी, यही कारण था कि ऐसे ऐसे विमर्श भारतीय परिप्रेक्ष्य में पैदा ही नहीं, बल्कि पल्ल्ववित एवं पुष्पवित होते रहे, और सनातन को ही सब परेशानियों की जड़ बताते रहे। यहाँ तक कि रोमिला थापर और रामचंद्र गुहा जैसे इतिहासकार भी सनातनी इतिहास नकारते रहे।
खैर, अभी तो कांग्रेस उस कन्हैया कुमार का स्वागत खुले दिल से कर रही है, जिसने कभी कहा था कि एक ही कांग्रेस काफी है, बर्बादे गुलिस्तान करने को
और आज कन्हैया उसी बर्बाद करने वाली कांग्रेस को बचाने के लिए उसी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, जैसा कन्हैया कुमार ने खुद कहा कि देश बचाने के लिए कांग्रेस का बचना जरूरी है इसलिए वह आए कांग्रेस में आए हैं। मगर वह यह नहीं बता पा रहे कि यदि वह इतने ही जरूरी हैं तो क्यों वह अपनी संसदीय सीट नहीं जीत पाए?
और समय यह भी बताएगा कि वामपंथी और कांग्रेसी गठजोड़ का क्या परिणाम निकलेगा?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तो इस के विरोध में हैं ही वहीं भाजपा ने भी इस विषय पर कांग्रेस को घेर लिया है!