उत्तर प्रदेश में अब चुनावी बेला है और राजनीति दिनों दिन तेज होती जा रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच वैचारिक रेखाएं स्पष्ट होती जा रही हैं। कहने के लिए कांग्रेस प्रियांका गांधी के नेतृत्व में पूरे जोश से चुनाव लड़ रही है, परन्तु राजनीतिक विश्लेषकों का यही मानना है कि यह लडाई मात्र देखने की लड़ाई है, भीतर खाने हर विपक्षी दल मात्र भाजपा को दूर रखने के लिए लड़ाई लड़ रहा है।
इसी बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक बार फिर से जिन्ना का जिन्न जीवित कर दिया है। उन्होंने एक चुनावी सभा में जिन्ना का नाम महात्मा गांधी, सरदार पटेल के साथ लेते हुए आजादी दिलाने वाला बता दिया था। बाद में लोगों ने कहा कि जिन्ना को नहीं सरदार पटेल को अखिलेश यादव संबोधित कर रहे हैं. यह सत्य है कि अखिलेश यादव इस वीडियो में सरदार पटेल की बात कर रहे हैं, परन्तु यह भी सच है कि वह देश तोड़ने वाले मुहम्मद अली जिन्ना को उसी श्रेणी में रख रहे हैं, जिस श्रेणी में वह आदरणीय सरदार पटेल को रख रहे हैं, जिन्होनें मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा भारत को दिए गए घावों को सीने का कार्य किया!
यह सत्य है कि मुहम्मद अली जिन्ना बैरिस्टर बने थे, पर यह भी उतना ही सच है कि आज जिन्ना और अल्लामा इकबाल का दिया दर्द भारत झेल रहा है। इसलिए देश को एकसूत्र में बाँधने वाले आदरणीय सरदार पटेल और देश तोड़ने वाले मुहम्मद अली जिन्ना को अखिलेश यादव एक ही श्रेणी में कैसे रख सकते हैं?
हालांकि अखिलेश यादव ने यह वक्तव्य सरदार पटेल के उद्धरण के साथ दिया था, मगर उनके सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ने जिन्ना की तारीफ़ करते हुए कहा कि अगर वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री बन गए होते तो बँटवारा नहीं होता।
भारत में यह अत्यंत विचित्र स्थिति है कि देश को तोड़ने वालों का नाम लेकर वोट लेने का नाटक सुनिश्चित किया जाता है। जिन्ना का जिन्न भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का पूरा राजनीतिक कैरियर तबाह कर चुका है। परन्तु ऐसा लगता है कि सेक्युलर वोटों की राजनीति करने वाले नेता जिन्ना को भारतीय मुस्लिमों का नायक मानते हैं। क्या वास्तव में जिन्ना भारतीय मुस्लिमों के नायक हैं? क्या वास्तव में जिन्ना वाली मानसिकता लेकर ही भारतीय मुस्लिम चलते हैं? इसका उत्तर तो गाहे बगाहे वह गजवा ए हिन्द का सपना बुदबुदा कर बताते रहते हैं।
भारतीय मुस्लिमों के लिए नायकों की सीमा राजनेता जिन्ना तक ही सीमित क्यों कर देते हैं? या फिर कट्टरता और अलगाववादी मानसिकता के साथ क्यों जोड़ देते हैं? यह भी अब शोध का विषय होना चाहिए! मुस्लिमों का वोट क्या केवल जिन्ना का नाम लेकर मिल सकता है? अखिलेश यादव से जब यह पूछा गया कि वह इस बयान पर सफाई देंगे? तो उन्होंने इंकार कर दिया। मुद्दा यह नहीं है कि जिन्ना की आजादी की लड़ाई की शुरुआत कैसे हुई? मुद्दा यह है कि जिन्ना और एक समय में “हिंदी है वतन” लिखने वाले अल्लामा इकबाल ने जब कौमी तराना लिखा और “मुस्लिम हैं वतन है सारा जहाँ हमारा” लिखा, तो उन्होंने भारत को मजहब के आधार पर विभाजित कर दिया। उनकी सोच कितनी कट्टर रही होगी जिसने भारत के दो टुकड़े कर दिए।
मगर देश के टुकड़े करने वाले जिन्ना और इकबाल न केवल ऐसे राजनेताओं के बल्कि मुस्लिमों के भी कथित नायक प्रतीत होते हैं, तभी मुस्लिमों की ओर से ऐसी कोई आवाज नहीं आती कि उनका वोट पाने के लिए अब तो जिन्ना का नाम लेना बंद किया जाए!
इसी बीच उत्तर प्रदेश से एक और महत्वपूर्ण समाचार आ रहा है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए यह निर्णय लिया है कि वर्ष 1970 में पूर्वी पाकिस्तान से आए हिन्दू बंगाली परिवारों को बसाया जाएगा। सरकार की ओर से यह घोषणा की गयी कि मंत्री परिषद ने 1970 में पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित 63 हिंदू बंगाली परिवारों के लिए ग्राम भैंसाया, तहसील रसूलाबाद जनपद, कानपुर देहात में पुनर्वास योजना को स्वीकृति दी
सरकार ने यह कहा है कि इन परिवारों को खेती के लिए दो दो एकड़ और घर बनाने के लिए 200 वर्ग मीटर भूमि कानपुर देहात में दी जाएगी और मकान बनाने के लिए मुख्यमंत्री आवास योजना से धनराशि भी प्रदान की जाएगी। यह परिवार कई वर्षों से अपने पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे थे।
योगी सरकार ने उनकी बात सुनी है। और अब वह भी बिना बाधा के रह सकेंगे। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैराना का भी दौरा किया था और एक समय में साम्प्रदायिक तनाव के चलते हिन्दू व्यापारी जो अपना घर छोड़ कर चले गए थे, उनके साथ उन्होंने समय बिताया। अब वह व्यापारी वापस आ चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार जिन्ना को लेकर विपक्षी दल राग अलाप रहे हैं, वह अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट करते जा रहे हैं कि वह भारतीय मुस्लिमों को केवल देश तोड़ने वाला ही समझते हैं और भारतीय मुस्लिमों को साथ लेने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं। वही मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ हिन्दुओं के लिए ऐसे निर्णय लेते जा रहे हैं, जो विगत कई वर्षों से वोट बैंक की राजनीति के चलते नहीं लिए गए थे, जैसे कैराना से असामाजिक तत्वों को हटाना और साथ ही मेरठ में कबाड़ माफिया या कबाड़ जिहाद के सूत्रधार को जेल की सलाखों के पीछे भेजना!