आज कहानी केरल की श्रुति की, कि कैसे वह इस्लाम के जाल में फंसी और उसमें परिवार और समाज से क्या चूकें हुईं और हो रही हैं एवं क्या भूमिका थी आधुनिक शिक्षा की, हिन्दुओं में धार्मिक शिक्षा के अभाव की और कैसे वह इस जाल से बाहर आ सकी!
केरल में रहने वाली श्रुति किसी प्यार के जाल में नहीं फंसी थी। बल्कि उसकी कहानी तो और भी अधिक हैरान करने वाली है। यह इसलिए हैरान करने वाली है क्योंकि वह आम हिन्दुओं के जीवन और जीवन मूल्यों से जुडी है, कि जो आध्यात्मिक दिशा चाहने वाले हिन्दू बच्चे होते हैं, वह कहाँ जाएं। वह कहाँ जाएं क्योंकि आधुनिक जीवन में उन्हें आध्यात्मिक शांति देने वाला कोई भी तत्व उनके जीवन में विद्यमान नहीं है। श्रुति भी ऐसी ही एक लड़की है जो बस कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहती है, परन्तु श्रुति को उत्तर नहीं मिलते क्योंकि उत्तर देने के लिए कोई है ही नहीं। श्रुति पढ़ना चाहती है, पर कोर्स की पुस्तकें नहीं बल्कि वह धार्मिक पुस्तकें पढ़ना चाहती थी। वह अपना इतिहास जानना चाहती थी, परन्तु दुर्भाग्य से उसे वह नहीं मिला क्योंकि आज के हिन्दू समाज में इतनी भागदौड़ है कि अपना इतिहास किसे याद करने की फुर्सत है।
यह फुर्सत न होना ही विधर्मियों के लिए वरदान है!
हिन्दू अभिभावकों के पास फुर्सत न होना ही धर्म परिवर्तन कराने वालों के लिए वरदान है। श्रुति के मन में प्रश्नों के बवंडर थे परन्तु प्रश्नों के उत्तर देने के लिए अध्ययन की फुर्सत कहाँ थी। श्रुति का कहना था कि बच्चों से कहा जाता है कि भगवान की प्रार्थना करें, परन्तु भगवान कौन हैं? भगवान कैसे हैं भगवान हैं क्या, जिनके सामने पूजा करनी है।
बच्चों के सामने भगवान मानव रूप में भी होते हैं और फिर वह गुस्सा भी होते हैं, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई मानव दूसरे मानव पर गुस्सा हो, क्रोधित हो! फिर भगवान क्या हैं?
श्रुति इन प्रश्नों के जाल में फंसकर बड़ी हो रही थी, परन्तु श्रुति के इन प्रश्नों का उत्तर कहीं नहीं था। श्रुति का कहना है कि समय के साथ उन्होंने इन सभी तमाम प्रश्नों के उत्तर समय पर छोड़ दिए और पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित कर दिया।
कॉलेज में मुस्लिम सहपाठिनों के साथ संपर्क
श्रुति के अनुसार जब वह कॉलेज पहुँचीं तो वह मुस्लिमों के संपर्क में आईं और उनकी कक्षा में अधिकतर मुस्लिम लडकियाँ ही थीं, जो अधिकतर अपने रमजान, रोजे आदि की बातें करती थीं। श्रुति कहती हैं कि जहाँ हिन्दू अपने धार्मिक रीतिरिवाजों को आत्म उत्थान और विकास में प्रयोग करते हैं तो वहीं मुस्लिम अपनी मजहबी पहचान दिखाने में हिचकती नहीं हैं। और वह अपने हाथों में मजहबी ब्रेसलेट पहनती हैं, जो उनकी महजबी प्रार्थना को गिनने के लिए होता है और जब कोई इससे आकर्षित होकर पूछता है तो वह अपने मजहब की ओर खींचती हैं।
वह पूछती हैं कि “क्या आपके यहाँ भी ऐसे ही रोजे रखते हैं, कैसे आप लोग व्रत करते हैं? आप लोग जानवरों की और नदियों की पूजा करते हैं?
हम लोग एक महीने रोजे रखते हैं, क्या आप लोगों में इतना सब्र है आदि आदि! इतने सारे भगवान की पूजा आप लोग करते हैं।
श्रुति इन सवालों के जाल में फंस जाती थीं, और चूंकि उन्हें इस विषय में पता नहीं था, तो वह और जाल में फंसती चली गईं। श्रुति आध्यात्मिक शान्ति की तलाश में वहां खिंचती गईं, जो उन्हें काले बुर्के की कैद में ले गया।
श्रुति कहती हैं कि हमें बच्चों को यह बताया ही नहीं जाता है कि आखिर क्यों हमारे हनुमान वानर मुख के हैं? और हम उनकी पूजा आखिर क्यों करते हैं? वह कहती हैं कि उनके भी दिल में तमाम तरह के भ्रम उत्पन्न होने लगे थे और यही संशय धीरे धीरे अविश्वास के कुटिल सर्प में बदल गया।
श्रुति कहती हैं कि चूंकि उनका अपने धर्म से संपर्क नहीं था, तो वह इस्लाम की ओर आकर्षित होने लगीं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो श्रुति धार्मिक स्तर पर एक कोरी स्लेट थीं, उन पर कोई भी कुछ लिख सकता था और देखते ही देखते ही उनके जीवन पर हरारंग छा गया। वह अब अच्छी मुस्लिम ही होना चाहती थीं। अपने मातापिता से भी उन्हें चिढ होने लगी थी।
वह कहती हैं कि उनकी कक्षा में मुस्लिम लड़के बुर्के वाली लड़कियों को छोड़ देते थे और हिन्दू लड़कियों के साथ फ्लर्ट करते थे। क्योंकि बुर्का औरत की इज्जत की रक्षा के लिए थी। श्रुति को भी लगा कि हाँ यही सही है, सुरक्षित रहने के लिए। वह बदलना चाहती थी, हर कीमत पर!
श्रुति को अपनी माँ के हाथों से बने खाने से चिढ होने लगी। वह कहती हैं कि कई बार उन्हें लगता था कि वह अपनी माँ को पीट डालें, अपने पिता से अभद्रता से बातें करने लगी थी। महादेव को गानी देने लगी थी और बस काफिरों से भाग जाना चाहती थी।
श्रुति के मातापिता उसे अर्श विद्या समाजम में ले गए। तब तक वह कट्टर मुस्लिम बन चुकी थी और श्रुति कहती हैं कि वह जीवन की अंतिम सांस तक केवल और केवल इस्लाम की सेवा करना चाहती थी, यहाँ तक कि वह किसी को मार भी सकती थी,
इस हद तक श्रुति का ब्रेनवाश हो गया था। मगर अर्श विद्या समाजम में के आर मनोज मिले और उन्होंने श्रुति की समस्या को समझा तथा उन्हें सनातन धर्म के मुख्य सिद्धांतों के विषय में बताया। उन्होंने श्रुति को ही नहीं बल्कि न जाने कितने लोगों को धर्म का अर्थ समझाने में सहायता की एवं श्रुति तो वापस आई ही श्रुति कहती हैं कि उनके साथ अथिरा भी वापस हिन्दू धर्म में आई। वर्ष 2017 में इन्हें धमकाने का बहुत प्रयास हुआ था, परन्तु श्रुति ने हार नहीं मानी थी।
यह संगठन मुस्लिम बने लोगों को ही नहीं बल्कि ईसाई और नास्तिकता के जाल में फंसे हिन्दुओं को भी वापस लाता है। श्रुति को धीरे धीरे शांति मिली और श्रुति उस जाल से वापस आ पाईं, जो उनके आसपास बुन दिया गया था और यह जाल कहीं से भी ऐसा नहीं था जिसका अनुमान लाया जा सके!
हिन्दू धर्म की पहचान को डाय्ल्युट किया जा रहा है और मनचाहे अकादमिक विमर्श थोपे जा रहे हैं
श्रुति उस भ्रम का शिकार हुई थी, जो आरम्भ किया था मिशनरी ने और फिर उसे आगे लेकर गए वामपंथी, एवं कथित सामाजिक अध्य्येता! इन लोगों ने मिशनरी के ही बताए सिद्धांतों के आधार पर हिन्दू धर्म को आंका जाना आरम्भ किया तथा हिन्दू धर्म के प्रति अनादर तथा भ्रम उत्पन्न किया। जो सिद्धांत न ही हिन्दू धर्म के थे और न ही हिन्दू उनका पालन करते थे, उन्हें हिन्दू धर्म के साथ जोड़ा गया और फिर यह कहा गया कि हिन्दू धर्म बेकार धर्म है!
क्योंकि सेमेटिक दृष्टि में जानवर इंसानों से नीचे हैं, जबकि हिन्दू धर्म सभी में परमात्मा के अंश की बात करता है। वह लोग गाय को रोटी में लपेट कर खाते हैं और हिन्दू धर्म में पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती है। मगर गाय को मात्र पशु मानने वाले लोग हिन्दू धर्म का उपहास उड़ाते हैं और चूंकि हिन्दू बच्चों को यह पता ही नहीं होता है कि आखिर क्यों गाय इतनी महत्वपूर्ण है या फिर क्यों कृष्ण जी गाय चराते थे तो वह उत्तर नहीं दे पाते हैं।
एक मजहब जहाँ पर संगीत हराम है वहां पर यह कल्पना ही बेकार है कि कृष्ण भगवान बांसुरी बजाते थे। मगर चूंकि हिन्दुओं में बच्चों को इतने विमर्श के बाद ऐसा भ्रमित कर देते हैं कि वह भी गाय को मात्र पशु मानने लगते हैं, उनके लिए नाग लपेटने वाले महादेव भी सहज नहीं रह पाते हैं और ir ऐसे में वह उस षड्यंत्र का शिकर बन जाते हैं, जो बाहरी दुनिया में पग पग पर है।
श्रुति भी इन्हीं सब का शिकार हुई, और अब श्रुति उसी संगठन के साथ मिलकर कार्य करती हैं एवं ऐसी हे फंसी लडकियों को वापस लाने का कार्य करती हैं और उन्होंने स्टोरी ऑफ अ रिवर्शन नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें उन्होंने अपनी इस यात्रा को लिखा है। arshworld की वेबसाईट के अनुसार श्रुति अपने जैसी हजारों लड़कियों को वापस ला चुकी हैं और वह अर्श विद्या समाज के साथ पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रही हैं। अपनी इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने धर्मांतरण एवं उनके समाधानों के विषय में बताया है।
श्रुति का एक ही लक्ष्य है कि जैसी पीड़ा और अपमान का अनुभव उनके मातापिता को हुआ, वैसा किसी को भी न झेलना पड़े और कोई भी गलत अवधारणाओं के आधार पर धर्मांतरण गिरोह का शिकार न बने!
श्रुति को पीएफआई के विरोध का भी सामना करना पड़ा था क्योंकि पीएफआई ही धर्मातरण में सबसे अधिक सक्रिय है। परन्तु श्रुति ने हार नहीं मानी एवं अब वह संगठन के साथ मिलकर धरातल पर कार्य कर रही हैं!
बच्चों को धार्मिक शिक्षा देना अनिवार्य है
बच्चों को अपने धर्म के विषय में शिक्षा देना अनिवार्य है एवं भगवान की अवधारणा समझान अत्यंत आवश्यक है कि किसी भी संकट की स्थिति में वह शक्ति अवश्य ही उसका मनोबल बढ़ाने के लिए आएगी। जिस प्रकार अकादमिक जगत भगवान को साधारण मानव मानकर विमर्श करता है, वह भगवान की अवधारणा को सीमित कर देता है, तो वहीं गॉड एवं अल्लाह की अवधारणा को कोई भी विमर्श छूने का प्रयास भी नहीं करता है, तो वह हर प्रकार की आध्यात्मिक तलाश को शांत कर सकते है, ऐसा लालच धर्मांतरण के लिए दिया जाता है।
परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि वैकल्पिक अध्ययन एवं विमर्श के नाम पर हिन्दुओं के भगवानों का जो मानवीकरण वामपंथ एवं अब आकर कथित बुद्धिजीवियों ने किया है, वह अंतत: धर्मांतरण के लिए टूल ही प्रमाणित हो रहा है।
श्रुति के उदाहरण से स्पष्ट है कि बच्चों के समक्ष भगवान की अवधारणा स्पष्ट करना अत्यावश्यक है एवं वह भी शास्त्रों के आधार पर, न कि किसीकथित बुद्धिजीवी की किसी एजेंडे वाली पुस्तक पढ़कर!
*स्रोत- लव जिहाद पुस्तक – लेखिका मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर, श्रुति मिश्रा एवं मोनिका अग्रवाल तथा इन्टरनेट