कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और बाहरी हिन्दुओं को निशाना बनाने के बाद अब आतंकी उन लोगों को निशाना बना रहे हैं जो उनकी किताब के अनुसार नहीं चल रहे हैं। कश्मीर में कल एक मुस्लिम युवती की हत्या आतंकियों ने कर दी। उसका अपराध यही था कि वह अभिनेत्री थी और अपने हुनर से चार पैसे कमाती थी।
मगर यह भी आतंकियों को रास नहीं आया। कोई कैसे अपना चेहरा दिखा सकता है? अमरीना भट की instagram प्रोफाइल पर उनके कई वीडियो हैं तो साथ ही ऐसा भी कुछ है जो नहीं होना चाहिए था। अमरीना को गालियाँ दी गयी हैं, उन्हें उनके काम के लिए कोसा गया है और उन्हें धमकियां जैसा भी कुछ था। उन्हें उनके कथित बेपर्दा होने पर गालियाँ दी जाती थीं।
हम उनकी प्रोफाइल से कुछ स्क्रीनशॉट पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं:

उन्होंने जब सोशल मीडिया पर आ रही इन धमकियों और गालियों पर ध्यान नहीं दिया तो उनकी हत्या कर दी गयी। उनकी हत्या के बाद भी लोग उनके instagram पर जाकर यह कह रहे हैं कि सही हुआ। वह इसी की हक़दार थीं।

मीडिया के अनुसार “रात लगभग आठ बजे अमरीन भट (29) चाडूरा इलाके में अपने घर के बाहर भतीजे फुरहान जुबैर के साथ खड़ी थी। इसी दौरान वहां पहुंचे आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। गोलियां लगते ही अमरीन और उसका भतीजा जमीन पर खून से लथपथ होकर गिर पड़े। इसके बाद आतंकी वहां से भाग निकले।“
इसके बाद दोनों को परिजन अस्पताल लेकर गए जहाँ पर अमरीना को मृत घोषित कर दिया, जबकि उनके भतीजे की स्थिति अभी चिंताजनक बनी हुई है।
फेमिनिस्ट लॉबी चुप है
यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि जहां महिलाओं की छोटी छोटी बातों पर फेमिनिस्ट हल्ला करती हैं, आन्दोलन करती हैं, जुलूस निकालती हैं, मार्च निकालती हैं, वहीं अमरीना भट की हत्या के दो दिनों बाद भी उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल पर सन्नाटा पसरा हुआ है। यह वही कश्मीर है जहाँ पर होने वाली हर आतंकी घटना के पक्ष में वह यह कहती हुई खड़ी होती हैं कि भारत सरकार की फासीवादी नीतियों के कारण घाटी में लोग आतंकी हो रहे हैं।
परन्तु वही आतंकी जब कश्मीर के मासूम मुस्लिमों की हत्या मात्र इसलिए करते हैं कि वह उनकी आसमानी किताब के दायरे में नहीं आती हैं, या वह आतंकियों के फतवे नहीं मानते हैं, तो ऐसी सभी फेमिनिस्ट के मुंह सिल जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनके मुख में जुबान नामकी कोई चीज़ है ही नहीं।
अमरीना भट की हत्या पर भी वही सन्नाटा पसरा हुआ है। इतनी जघन्य हत्या हुई है और वह भी मात्र इसलिए क्योंकि अमरीना अपने मन की ज़िन्दगी जी रही थी। अमरीना के पास अपना आसमान था और वह उस आसमान में अपने रंग भरना चाहती थी, परन्तु वह आतंकियों को रास नहीं आया और उसकी उड़ान बस यहीं पर आतंकियों ने रोक दी।
दुर्भाग्य से सीरिया के एलेन कुर्दी पर रोने वाली लेफ्ट फेमिनिस्ट के पास अमरीना के लिए समय नहीं है। यदि अमरीना की मृत्यु के पीछे किसी भी प्रकार से सरकार के किसी भी तंत्र का हाथ होता या फिर उसमें कोई हिन्दू सम्मिलित होने का संदेह होता तो ही केवल यह लेफ्ट और इस्लामिस्ट फेमिनिस्ट अमरीना को न्याय दिलाने के लिए आतीं, परन्तु दुःख की बात यह है कि अमरीना की हत्या उन्होंने की है, जिन्हें “क्रांतिकारी” ठहराने का प्रयास इन्हीं लेफ्ट और इस्लामिस्ट फेमिनिस्ट का माध्यम से होता है।
कश्मीर फाइल्स में राधिका मेनन कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है, बल्कि वह उन हजारों लेफ्ट फेमिनिस्ट का एक घोषित चेहरा है, जो अकादमिक से लेकर साहित्य में छाए हुए हैं, या कहें उन्हें जबरन छाप कर जनता पर थोपा गया है।
चूंकि इन फेमिनिस्ट मादाओं को कट्टर इस्लाम का पक्ष लेने के कारण ही प्रगतिशीलता का ठप्पा मिलता है और जब वह सरकार का हर संभव विरोध करती हैं, तब ही उनकी रचनाओं की स्वीकार्यता मानी जाती है और जब वह आतंकियों के साथ जाकर खड़ी होती हैं तभी उन्हें वास्तविक अर्थ में लेखिका माना जाता है और देश एक अकादमिक वर्ग में क्रांतिकारी की पहचान मिलती है, इसलिए वह न कल गिरिजा टिक्कू के साथ थीं और न ही आज वह अमरीन के साथ हैं!
उनके लिए गिरिजा टिक्कू और अमरीन एक ही हैं, उनके लिए वह काफिर हैं और काफिरों की मौत पर जश्न होता है गम नही, यही कारण है कि लेफ्ट और इस्लामिस्ट हिन्दी फेमिनिस्ट अमरीना भट की जघन्य हत्या पर चुप्पी साधकर बैठी हुई हैं।
The Jihadists know only one thing: killing and genocide.