spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
20.8 C
Sringeri
Friday, March 29, 2024

अकबर के हरम में औरतें पालकी में आती थीं और अर्थी में जाती थी

हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए प्राय: यह कहावत प्रयोग की जाती है कि स्त्री ससुराल जाती है डोली में तो अर्थी में ही आती है। जबकि मौर्यकाल तक ऐसी स्थिति स्त्रियों की नहीं थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कई नियम स्त्रियों के पुनर्विवाह के दिए गए हैं, जिनमें यह बताया गया है कि स्त्री कब पति के जीवित रहते हुए भी और कब पति के देहांत के बाद पुनर्विवाह कर सकती है। फिर ऐसी कहावतें कैसे समाज में आईं कि औरत डोली में बैठकर जाएगी और अर्थी में आएगी!

यह स्थिति तब आई जब औरत मानने वाले लोग भारत में आए और अपनी हवस में भारत की स्त्रियों को भी गुलाम बनाने लगे। मौर्यकाल में स्त्रियों की स्वतंत्रता की बात इंडिका में मेगास्थनीज़ ने भी लिखी है। परन्तु जब से हरम को संस्थागत रूप देने वाले लोग आए।

हरम का अर्थ

हरम का अर्थ ऐसे स्थान से है जहाँ पर मुग़लों की बीवियां, रखैलें रहा करती थीं। क्योंकि इस्लाम में औरतों का शौहर और उन पुरुषों के अतिरिक्त किसी अन्य आदमी से बात करना या सम्बन्ध रखना सही नहीं माना जाता है, जिनसे नज़दीकी के चलते शादी नहीं हो सकती है। इन सभी प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए,, शायद मुस्लिम परिवारों में औरतों के लिए अकेले में रहने के लिए और बाउंड्री से घिरे हुए निवास होते हैं।  इन्हीं घिरे हुए निवासों को हरम कहा गया।

आर नाथ “प्राइवेट लाइफ ऑफ द मुगल्स ऑफ इंडिया” में मुगल की हरम व्यवस्था को विस्तार से लिखते हैं। उन्होंने लिखा है कि हालांकि हरम शब्द अरबी शब्द हराम (कुछ पवित्र या निषिद्ध) या पारसी शब्द : हरेम (अभ्यारण्य) से लिया गया है, परन्तु उन्होंने यहाँ पर संस्कृत शब्द हर्म्य का भी उल्लेख किया है। जिसका अर्थ होता है महल।

इसीमें सबसे अकेला या सुरक्षित स्थान होता था रनिवास! जहाँ पर बाहर के किसी भी व्यक्ति का आना वर्जित था।  यहाँ पर केवल मर्द में बादशाह ही आ सकता था। यहाँ तक कि बड़े होते बेटे भी वहां  पर नहीं आ सकते थे। अर्थात शहजादों का हरम में आना मना था।

अकबर ने बनाए थे नियम

बाबर और हुमायूं के हालांकि चार चार से अधिक बीवियां थीं, और कई रखैलें भी थीं, परन्तु उनके जीवन में स्थायित्व का अभाव था, इसलिए वह एक स्थान पर हरम नहीं बना पाए थे। एक संस्थान के रूप में हरम की स्थापना अकबर के समय में हुई थी और उसीके अधीन यह ऐसे काम करता था जैसे कोई सरकारी विभाग करता है।

इस पुस्तक में लिखा है कि “सबसे रोचक बात यह है कि अकबर एक औरत से जीवन भर के लिए निकाह करता था, जैसे हिन्दू जीवन भर साथ का वचन देते हैं और उसने कभी तलाक नहीं दिया था। उसके हरम में आने वाली औरत हमेशा के लिए हरम में आती थी। और यहाँ तक कि बादशाह की विधवाओं को भी दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी और बादशाह के मरने के बाद उन्हें विधवा के रूप में शेष जीवन सोहागपुर नामक महल में बितानी होती थी।”

अकबर को नई नई लडकियां चाहिए थीं

इसी में वह आगे लिखते हैं कि अकबर को नई नई लडकियां चाहिए होती थीं और वह हर औरत, जिसपर उसका दिल आ जाता था, जिसमें अब्दुल वासी की खूबसूरत बीवी भी शामिल थी, जिसका तलाक अकबर ने करवा दिया था।

फिर इसमें हैं कि गुलाम बाज़ार से गुलाम औरतों को खरीदा जाता था। जबकि हिन्दू भारत में अर्थात मौर्यकाल में मेगस्थनीज ने लिखा है कि हिन्दू समाज की एक विशेषता बहुत ख़ास है कि यहाँ पर वह गुलामी की परम्परा नहीं है, जो ग्रीस और रोमन जगत में बहुत आम थी।

इसमें और एक विशेष बात है कि यदि हरम में राजनीतिक सम्बन्धों के चलते ऐसी लड़की आ जाती थी जो सुन्दर नहीं होती थी तो  बादशाह के बिस्तर तक वह नहीं जा पाती थी, वह ऐसी औरत हो जाती थी, जिसके लिए कोई ठौर ठिकाना नहीं होता था। और हरम की चार दीवारों में ही अपनी अतृप्त इच्छाओं के चलते मर जाती थी, कोई भी उसे देखने वाला नहीं होता था और उसे बचाने वाला भी कोई नहीं होता था।

हिजड़े ही हरम से जुड़े काम कर सकते थे

मुग़ल काल में हिजड़ों की नियुक्ति हरम के निवासों की रखवाली के लिए की जाती थी, और उन्हें भी भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। मगर वह हरम के अधिकारियों और हरम की नौकरानियों के बीच एक कड़ी होते थे। अर्थात हरम की कनीज भी बाहरी मर्द अधिकारियों से बात नहीं कर सकती थीं।

इन अय्याश बादशाहों का औरतों पर इतना नियंत्रण रहता था कि अगर उनके हरम की कोई औरत (कनीज़ ही क्यों न हो) हिजड़ों को ही मातृत्व भाव से चूम नहीं सकती थी। जहाँगीर की एक कनीज का क़त्ल खुद जहांगीर ने इसीलिए करवा दिया था कि उसने एक हिजड़े को सहज वात्सल्य भाव से माथे पर चूम लिया था।

नूरजहाँ एम्प्रेस ऑफ मुग़ल इंडिया में एलिसन बैंक्स फ़िडली एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि नूरजहाँ की एक बूढ़ी कनीज को केवल इसलिए तीन दिनों तक बांधकर एक गड्ढे में धूप में रखा था क्योंकि उसने एक हिजड़े को चुम्बन कर लिया था। उसने आदेश दिया था कि उस औरत को एक गड्ढे में बांहों तक गाढ़ कर रखा जाए, और तीन दिनों तक उसे भूखा प्यासा रखा जाए, अगर वह तीन दिनों तक जिंदा रह जाती है तो उसे माफी मिलेगी” मगर वह डेढ़ ही दिनों में मर गयी थी। और मरने से पहले वह “ओह मेरा सिर, ओह मेरा सिर” चीखती रही थी।

वह जहाँगीर की रखैल भी रह चुकी थी, मगर चूंकि अब उसकी उम्र तीस से अधिक हो गयी थी तो वह दूसरे कामों में लग गयी थी। और उसका अपराध यही था कि उसने एक हिजड़े का चुम्बन ले लिया था।

जो मुग़ल अपनी निजी जिंदगियों में इतने अय्याश थे और हिन्दुओं की स्त्रियों को हर प्रकार से अपनी हवस का शिकार बनाना चाहते थे, वह नसीरुद्दीन शाह की नजर में रिफ्यूजी हैं, और बुद्धिजीवियों की दृष्टि में ज्ञान के सागर और गुणों की खान!

जबकि लिखी गयी पुस्तकें उनकी पोल खोलती हैं, बशर्ते उन्हें कोई पढ़ना चाहे तो!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.