इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जिसका गठन वर्ष 1928 में एक स्वैच्छिक संगठन के रूप में हुआ था और जिसका उद्देश्य चिकित्सा एवं संबंद्ध विज्ञान की शाखाओं का प्रचार एवं विकास करना था, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं चिकिसा सेवा में सुधार करना था तथा मेडिकल पेशे का सम्मान बनाए रखना था।
और आज इस संस्था के तीन लाख से अधिक सदस्य डॉक्टर्स हैं और देश में इसकी 1750 से अधिक शाखाएं हैं। वर्ष 1928 से आरम्भ हुई इस संस्था के कई सदस्य स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन के भी सदस्य थे, जिसकी भारत में शाखाएं थीं। इसके उपरान्त इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन से कहा कि वह यहाँ पर काम करना बंद कर दें। तथा उसके उपरान्त ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन ने भारत से अपना काम काज समेट लिया एवं भारत में आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन एक पंजीकृत गैर सरकारी संस्था बन गयी, उन्हीं उद्देश्यों के साथ, जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है।
आईएमए के इतिहास पर दृष्टि डालने से यह प्रतीत होता है कि यह एक गैर सरकारी संस्था है एवं आधुनिक चिकित्सा के लिए कार्य करती है। परन्तु हाल ही में इसके कार्यों को लेकर कई विवाद सामने आए हैं। डॉ. जॉनरोज़ के अध्यक्ष बनने के बाद हालांकि इसमें धर्म का कोण प्रवेश कर गया है, परन्तु पहले इस पर कमर्शियल उत्पादों को प्रमाणीकृत करने के भी आरोप लगे थे। कई बार कहा गया कि क्या यह आईएमए का नया तरीका है पैसे उगाने का?
वर्ष 2019 में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि आईएमए को पैसा उगाहने का नया रास्ता मिला (IMA finds a new way to mint money)
इसमें एक एलईडी बल्ब के इस दावे पर प्रश्न थे कि वह 85% कीटाणुओं को मारता है एवं एक इनडोर पेंट जो 99% तक बैक्टीरिया को मारता है। उसी समय टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह प्रश्न उठाए थे कि आईएमए ने कितनी फीस ली है, इस प्रमाणन के लिए। उस पर आईएमए का यह कहना था कि आईएमए ने केवल इस दावे को प्रमाणित किया है कि यह ख़ास तकनीक या वक्तव्य “हेल्थ फ्रेंडली” है। और उन्होंने कहा कि यह नेशनल एक्रेडीएशन बोर्ड ऑफ हॉस्पिटल्स अर्थात एनएबीएच द्वारा मेडिकल संस्थान के प्री-एंट्री प्रमाणन एवं मान्यता के अनुसार है। हालांकि इसी समाचार के अनुसार आईएमए को इन दावों को प्रमाणित करने के लिए एक प्रोसेसिंग शुल्क मिला है, फिर भी उन्होंने यह बताने से इंकार कर दिया कि ऐसे कितने उत्पादों को आईएमए ने प्रमाणित किया है और उन्होंने कितने पैसे लिए हैं। और इसके साथ ही उन्होंने यह भी नहीं बताया कि उन्होंने यह प्रमाणपत्र कितने वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर किया है। और क्या यह आधार किसे वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित हुआ है या नहीं और किसने इस अध्ययन के लिए पैसे दिए है?
हालांकि इससे पहले वर्ष 2008 में भी आईएमए के इस प्रमाणपत्र के दावे पर प्रश्न उठे थे जब आईएमए ने पेप्सीको के खाद्य उत्पादों को मान्यता दी थी। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली पत्रिका डाउनटूअर्थ ने इस बात पर आपत्ति व्यक्त की थी कि कैसे वह पेप्सीको के हेल्थ ड्रिंक्स को मान्यता प्रदान कर सकते हैं। आईएमए डिटोल साबुन एवं घर साफ़ करने वाले लाइजोल को भी मान्यता प्रदान कर चुकी है।
इस वेबसाईट के अनुसार जब आईएमए से पेप्सीको के हेल्थ ड्रिंक्स को मान्यता देने के विषय में बात की थी तो वहां से उत्तर मिला था कि हालांकि कंपनी ने इस मान्यता के लिए एक भी पैसा नहीं दिया है, पर पेप्सीको तीन वर्षों तक अर्थात अनुबंध की अवधि तक एसोसिएशन की कांफ्रेंस और मीटिंग को प्रायोजित कर सकती हैं। इसी वेबसाईट के अन्सुअर मीडिया रिपोर्ट्स ने कहा था कि कंपनी ने इस डील के लिए 50,00,000 रूपए का भुगतान एसोसिएशन को किया था। जनता के लिए काम करने वाले समूहों ने इस बात पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि ऐसे उत्पादों को मान्यता प्रदान करना गैरकानूनी और अनैतिक है।
इसी वेबसाईट पर लिखा है कि आईएमए ने कहा कि पेप्सीको के उत्पादों को इसलिए मान्यता प्रदान की क्योंकि उन्होंने हमसे संपर्क किया। हम यह जांचने के बाद कि क्या उत्पाद सुरक्षित है, उत्पाद को मान्यता देंगे।
इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह कदम गैर कानूनी है क्योंकि इस मान्यता का अर्थ होगा कि कंपनी अपने विज्ञापनों में एवं पैक्स पर एसोसिएशन का नाम प्रयोग कर सकती है, जबकि प्रेवेंशन ऑफ फ़ूड एडल्टरेशन अधिनियम 1954 ऐसे किसी भी लेबल को प्रदान नहीं करता है। इतना ही नहीं मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया के भी कोड ऑफ़ एथिक्स रेगुलेशन 2002 के अनुसार भी कोई भी फिजिशियन या एसोसिएशन किसी भी प्रकार के उत्पाद को विज्ञापन के लिए अधिकृत नहीं कर सकता था, (परन्तु फरवरी 2014 में इस क़ानून को केवल डॉक्टर्स तक ही सीमित कर दिया गया था और एसोसिएशन ऑफ डॉक्टर्स को हटा दिया गया था।
संशोधन किया गया था
परन्तु वर्ष 2008 में संभवतया ऐसा नहीं था।
हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है आईएमए के अधिकारी के अनुसार उन्होंने केवल घटकों को मान्यता प्रदान की है उत्पाद को नहीं, तो यदि इसके घटक बदलते हैं तो यह प्रमाणपत्र रद्द हो जाएगा।
अत: यह कहा जा सकता है कि आईएमए उत्पादों को नहीं बल्कि तकनीक या घटक को मान्यता प्रदान करती है और साथ ही यह सम्बंधित शोध प्रस्तुत करने में विफल रहती है। फिर भी इसे मान्यता पत्र उपभोक्ताओं में एक भ्रम उत्पन्न करते हैं तथा यह प्रश्न भी खड़ा करते हैं कि क्या कोई गैर सरकारी संगठन किसी उत्पाद को मान्यता प्रदान कर सकता है? एवं उसके क्या कानूनी एवं शोध पहलू हैं?
इसके साथ ही एक रोचक खबर भी प्रकाश में आई थी जब आईएमए ने अपने सदस्यों को यह सलाह दी थी कि वह नॉन-डॉक्टर्स के साथ एल्कोहल का सेवन न करें! इसके पीछे कारण यह बताया गया था कि यह डॉक्टर्स की जिम्मेदारी है कि वह वही अमल में लाएं जो वह अपने मरीजों को बताते हैं, और साथ ही यह भी कहा था कि कितनी मात्रा में शराब पुरुष ले सकते हैं और कितनी मात्रा में महिलाएं।
मगर जब आईएमए का यह कहना है कि वह मरीजों के सामने एक छवि बनाए रखें तो क्या यह संभव नहीं था कि वह सभी के साथ बैठकर पियें और यह बताएं कि इस सीमा से अधिक नहीं पीना है, जिससे मरीज भी पालन कर पाएं!
यह पर्देदारी वाला फतवा किसलिए?
खैर इस मामले में ताजा विवाद जहां योग गुरु बाबा रामदेव के बहाने पूरे आयुर्वेद पर प्रश्न उठाने का है तो वहीं अब यह संज्ञान में आया है कि क्रिश्चियनटी टुडे में मार्च 2021 में साक्षात्कार के बाद निशाने पर आए आईएमए प्रमुख डॉ. जॉन रोज़ के ईसाई मजहबी प्रचार के कारण इस संस्था का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कराने के लिए पत्र लिखा गया है।
Wrote to @HMOIndia seeking cancellation of FCRA License of @IMAIndiaOrg which Organization, under the Presidentship of Mr.John Rose Austin Jayalal is actively promoting conversion of vulnerable people to Christianity, as revealed by its President during an interview.
(1/2) pic.twitter.com/2GI8HCHVIw— Legal Rights Protection Forum (@lawinforce) May 25, 2021
वैसे आयुर्वेद को लेकर विवाद हाल ही में आरम्भ हुआ हो, ऐसा नहीं लगता है. यह पिछले वर्ष से जारी है. और जब से कोरोना को लेकर एलॉपथी में प्रश्न उठ रहे हैं और आयुर्वेद भी इससे बचने के उपाय बता रहा है, तब से यह संघर्ष चल रहा है और समस्या आईएमए को ही सबसे ज्यादा है। पिछले वर्ष जब सरकार ने हल्दी के दूध, काढ़ा और आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों के प्रयोग को लेकर दिशा निर्देश जारी किये थे, तब भी आईएमए ने कोरोनावायरस महामारी के लिए आयुर्वेदिक अनुशंसाओं को जारी किये जाने पर सरकार की निंदा की थी।
एक गैर सरकारी संगठन द्वारा बार बार सरकार एवं विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणाली पर प्रश्न उठाया जाना अपने आप में ही एक बहुत बड़ा प्रश्न है, और अब देखते हैं कि एक समानांतर व्यवस्था चलाने वाली आईएमए प्रश्नों के क्या उत्तर देती है?
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