मुस्लिम बहुल देश में हिंदुओं को निशाना बनाने की ताज़ा घटना उत्तरी बांग्लादेश में घटी, जहाँ इस्लामी आतंकवादियों दवारा हिंदू पुजारी की गला काट कर हत्या कर दी गई, जिसमें दो अन्य भक्त भी घायल हो गये। अधिकारियों के अनुसार, पिस्तौल और मांस काटने वाले बड़े चाकुओं से लैस दो हमलावरों ने, जोगेस्वर रॉय, ४५, जो श्री श्री संत गौरिओ मठ के मुख्य पुजारी थे, पर हमला कर दिया।

उप जिला डेबीगंज, जहां मंदिर स्थित है के एक सरकारी प्रशासक, शफिक़ुल इस्लाम के अनुसार “जब पुजारी मंदिर के अंदर अपने घर के बरामदे में सुबह की पूजा के लिए तैयारी कर रहे थे, तब उन लोगों ने झपट कर हमला किया और उनके सिर को धड़ से अलग कर दिया”।
उनके अनुसार घटनास्थल से खून से सना हुआ एक चाकू बरामद हुआ है। साथ ही इस हमलें मे दो भक्त भी घायल हो गए, जिसमें एक वो हैं जिन पर पुजारी को बचाने के उपक्रम में गोली लगी थी।
पुलिस को हमले के पीछे इस्लामी आतंकी संगठन, जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी), के हाथ होने की आशंका है। हालांकि, सामाजिक मीडिया के माध्यम से एक बयान जारी कर इस्लामिक स्टेट (IS) ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
इस्लामिक स्टेट द्वारा जारी अरबी भाषा में जारी बयान के अनुसार “खलीफा के सैनिकों द्वारी एक जंगी कार्यवाही में पुजारी जोगेश्वर रॉय का खात्मा कर दिया गया, जो काफ़िर हिन्दुओं के देवीगंज मंदिर के संस्थापक थे. उत्तरी बांग्लादेश के पंचगढ़ क्षेत्र में उनके साथियों में से एक को हल्के हथियारों के साथ निशाना बनाया गया जिसमें वो घायल हुआ है, और मुजाहिदीन बिना किसी नुकसान के अपने जगह को लौट आए हैं, जो सब अल्लाह की कृपा है.”
हिंदू मंदिरों और धर्मनिरपेक्ष लेखकों पर हमलों की बाढ़
उत्तरी बांग्लादेश में पिछले ३ महीने के भीतर किसी हिंदू मंदिर या जुलूस पर यह तीसरा आतंकवादी हमला है.
८ दिसम्बर, २०१५: कांताजी मंदिर जो कहरोल उपजिला दिनाजपुर, उत्तरी बांग्लादेश में स्थित है, के जात्रा पंडाल में एक हिंदू धार्मिक सभा पर तीन देसी बम फेंके गये जिसमें १० लोग घायल हो गए।
११ दिसम्बर, २०१५: दिनाजपुर में कहरोल उपजिला में स्थित कृष्ण चेतना मंदिर में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा आयोजित हिंदू धार्मिक समारोह पर शरारती तत्वों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी की गई। इस गोलीबारी में मिथुन रॉय और रणजीत मोहन राय घायल हो गए।
२०१५ में ५ लेखकों की हत्या हुई जिसमें ३ हिंदू थे: अविजित रॉय, अनंत विजय दास और निलोय नील। उग्रवादियों ने धर्मनिरपेक्ष लेखकों पर ऐसे कई हाई प्रोफाइल हमलों को अंजाम दिया है।
जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश(जेएमबी) की उत्पत्ति
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) की यह रिपोर्ट जेएमबी की उत्पत्ति की व्याख्या करती है:
“जमात-ए-इस्लामी(JeI) बांग्लादेश, जमात संगठन की एक शाखा है जो मौलाना अबुल अला मौदुदी द्वारा 1941 में अविभाजित भारत में स्थापित की गई थी। जमात देवबंदी इस्लामिक स्कूल से प्रेरणा लेता है, और इस क्षेत्र द्वारा कई देशों में धार्मिक उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है. इसने मुस्लिम ब्रदरहूड (Muslim Brotherhood) नामक संगठन की तर्ज पर खुद को स्थापित किया। भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान), दोनो जगहों पर अलग-अलग शाखाएँ स्थापित की गईं। जमात बांग्लादेश और उसकी छात्र शाखा, इस्लामी छात्र शिबीर (आईसीएस), देश में मुख्य रूप से देवबंदी मदरसे से ही अपने सदस्यों को आकर्षित करते हैं।
जमात और आईसीएस का कट्टरपंथ और हिंसा में एक लंबा इतिहास है और दोनों ही बांग्लादेश में तालिबान शैली व्यवस्था बनाने के लिए प्रयास करते हैं। जमात देश का सबसे शक्तिशाली इस्लामी गुट है और कई आतंकवादी संगठनों की विचारधारा का केंद्र और भर्ती का मैदान रहा है। इनमें हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी बांग्लादेश (हूजी-बी), जो एक अमेरिकी विदेश विभाग नामित विदेशी आतंकवादी संगठन है , और जमात उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) शामिल हैं. हूजी-बी के मूल संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी पर संयुक्त राष्ट्र, यूनाइटेड किंगडम(UK), और भारत द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है, जबकि हूजी-बी और जेएमबी को ब्रिटिश और बांग्लादेशी सरकारों ने पहले ही गैरकानूनी घोषित कर दिया है.”
तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक संरक्षण के तहत पश्चिम बंगाल में जेएमबी की जड़ें गहराईं
२०१४ के बर्दवान विस्फोटों के बाद स्पष्ट हो गया कि पश्चिम बंगाल में जेएमबी ने गहरी पैठ बना रखी है। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद, अहमद हसन इमरान जिनका शारदा समूह के साथ नज़दीकी ताल्लुक था, पर शारदा के धन को जमात तक पहुंचाने का आरोप है। इमरान सिमी का एक सह-संस्थापक था, लेकिन उसका दावा है कि उसने १९८४ में संस्था को छोड़ दिया था। कथित तौर पर माना जाता है कि १९७०-७१ के दौरान, जब पाकिस्तान से आजादी के लिए पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली लड़ रहे थे, तब इमरान अवैध रूप से भारत में आ बसा था।
बांग्लादेश में हिंदुओं की धार्मिक सफाई

१९४७ में भारत के विभाजन के समय, ३ पूर्वी पाकिस्तानियों की तुलना मे हिन्दुओ का अनुपात १ से थोड़ा कम था। १९७१ में जब पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बना, तब वे पांच में से एक थे; उसके ३० साल बाद, १० में १ से भी कम थे और कुछ अनुमानों के अनुसार आज वे ८% से भी कम हैं। यह आर. बेकिंस द्वारा लिखित A Quiet Case of Ethnic Cleansing – The Murder of Bangladesh’s Hindus (चुपचाप हो रही नस्ली सफाई का एक प्रकरण – बांग्लादेश के हिन्दुओं की हत्या) के अनुसार है।
ये दो लेख (१, २), शेख हसीना सरकार के प्रयासों के बावजूद बांग्लादेश में प्रचलित हिंदुओं के व्यवस्थित रूप से हो रहे उत्पीड़न पर एक गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
(यह लेख निम्नलिखित समाचार स्रोतों से सृजित है – १, २, ३)