केरल में बिशप रह-रह कर यह मुद्दा उठा रहे हैं कि कैसे ईसाई लड़कियों को लव और नारकोटिक्स जिहाद का हिस्सा बनाया जा रहा है। सितम्बर 2021 में केरल के सायरो मालाबार चर्च के बिशप जोसेफ कल्लारंगाट ने दावा किया था कि राज्य की ईसाई लड़कियों को एक शातिराना तरीके से लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा था कि उनका लक्ष्य है अपने मजहब का प्रचार करना और गैर मुस्लिमों को समाप्त करना। उनकी इस बात पर बहुत हंगामा मचा था और कांग्रेस ने कहा था कि ऐसे बयान सामाजिक सौहार्द को नष्ट करते हैं। परन्तु केरल में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसका डर उन बिशप ने व्यक्त किया था। केरल में कोची में बीस वर्षीय ईसाई लड़की ने अपने पति और ससुराल वालों पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने उसे इस्लाम में मतान्तरित कराने के लिए इस्लाम के धार्मिक केंद्र में खुद को कैद कराने का आरोप लगाया।
वर्ष 2016 की एक इंटेलीजेंस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 से 2015 के बीच 5793 के करीब लड़कियों को केरल के दो इस्लामिक मतांतरण केन्द्रों, जिनमें से एक वही केंद्र है जहाँ पर इस लडकी को ले जाया गया था, में मतांतरित किया गया। इनमें से 4719 लड़कियां हिन्दू थीं, तो वहीं 1074 लडकियाँ ईसाई थीं।
यह मामला तब सामने आया जब पीड़िता ने पोथनिककड़ पुलिस थाने में यह आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की कि उसके पति असलम, जिसकी आयु 33 वर्ष है और उसके ससुराल वाले उसे दहेज़ के लिए प्रताड़ित करते हैं, और उसे उन्होंने गलत तरीके से कैद करके रखा और उसे अपमानित किया। पुलिस ने उसकी शिकायत के आधार पर 7 दिसंबर 2021 को मामला दर्ज कर लिया।
न्यूइंडियनएक्सप्रेस के अनुसार गिरफ्तारी से बचने के लिए उसके पति और ससुराल वाले सत्र न्यायालय में अंतरिम जमानत की अर्जी के साथ पहुंचे थे, और उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया जा रहा है, परन्तु न्यायालय ने पति की जमानत की अर्जी निरस्त कर दी और परिवार को जमानत दे दी।
एफआईआर के अनुसार महिला को जबरन पोन्नानी के केंद्र में ले जाया गया और उसे जबरन 40 दिनों तक कैद करके रखा गया था और उसे बाहर जाने की न ही अनुमति थी और न ही वह किसी से संपर्क कर सकती थी। मीडिया के अनुसार महिला ने यह भी कहा कि जब वह किसी तरह से उस कैद से बाहर निकलकर अपने पति के घर पहुँची तो उसे मानसिक और शारीरिक अत्याचार का सामना करना पड़ा था।
पुलिस का कहना है कि जांच जारी है, और महिला ने अपने पति और ससुराल वालों पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए हैं। पुलिस का कहना है कि इन दोनों ने 11 नवम्बर 2019 को पोथनिककड़ में रजिस्ट्रार के ऑफिस में शादी की थी। और इन प्रेमियों ने एक दूसरे को यह आश्वासन दिया था कि वह कभी भी एक दूसरे के मजहबी विचारों में अतिक्रमण नहीं करेंगे।
मीडिया के अनुसार अतिरिक्त स्तर न्यायालय जी गिरीश ने अपने ऑर्डर में कहा कि महिला के पति ने उसके बेडरूम के अन्तरंग पलों का वीडियो बनाकर अपने दोस्तों के साथ साझा किया है और इस बात को कोई भी पत्नी स्वीकार नहीं करेगी। इसके साथ ही शिकायतकर्ता का यह आरोप कि आरोपी ने उसके रिलीजियस विचारों को बदलने का भी कुप्रयास किया, वह यह दिखाता है कि शिकायतकर्ता को मानसिक कष्ट से भी होकर गुजरना पड़ा था।”
इस मामले में लड़की और उसके पति की उम्र में काफी अंतर है। लड़की जहाँ 20 वर्ष की है तो वहीं उसका पति असलम 33 वर्ष का है और दोनों का प्रेम विवाह है। ऑर उनकी शादी भी वर्ष 2019 में हुई थी। अर्थात लड़की जब अट्ठारह वर्ष की हुई होगी, तभी शादी हुई थी। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि परिपक्व असलम ने उसे शायद तब से बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया होगा, तभी अट्ठारह वर्ष के होते ही उन्होने शादी कर ली।
इसे ग्रूमिंग जिहाद का नाम दिया गया है।
दिसंबर 2020 में यूनाइटेड किंगडम में भी ऐसे 32 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था जिन्होनें आठ किशोरियों के खिलाफ यौन अपराध किये थे। और यह अपराध वर्ष 1999 से वर्ष 2012 की अवधि के बीच किए गए थे।
डेली मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी पुरुष ब्रिटिश सिख लड़कियों का यौन उत्पीड़न कर रहे थे। और यह यौन उत्पीड़न बहुत ही सुनियोजित तरीके से किया जा रहा था। वर्ष 2018 में प्रकाशित इस रिपोर्ट की चर्चा सांसदों के बीच हुई थी और इस बात की आवश्यकता व्यक्त की गयी थी कि इस रिपोर्ट की जाँच होनी चाहिए।
भारत में भी हाल ही के दिनों में यही देखा गया है कि कम उम्र की गैर मुस्लिम लड़कियों को इस्लाम की ओर ग्रूम किया गया है। सबसे दुखद पहलू इन मामलों का यह होता है कि जब ऐसी शादियों पर विरोध होता है तो मीडिया यह कहते हुए लड़की के मातापिता के दर्द को पहचानने तक से इंकार कर देता है कि लड़की कानूनन बालिग़ है, और वह अपना निर्णय ले सकती है और बचपन से लेकर अट्ठारह वर्ष तक उसकी हर इच्छा पूरे करने वाले एवं उसे प्यार करने वाले मातापिता को मीडिया और एक बड़ा समूह शत्रु घोषित कर देता है, तो वहीं जब उस लड़की के साथ कुछ गलत होता है, तो मामूली घरेलू विवाद कहकर मूल समस्या को दबाने का प्रयास किया जाता है। और यहाँ तक कि उस मामले की रिपोर्टिंग भी शायद ही होती हो!
जबकि यह उनके मूल अधिकार अर्थात धार्मिक पहचान के अधिकार से जुड़ा हुआ मामला होता है।