मीडीया में इन दिनों कोरोना को लेकर शान्ति है, और कई और मुद्दों पर बात हो रही है। परन्तु प्रश्न यह होना चाहिए कि आखिर मीडिया में इन दिनों कोरोना का शोर कम क्यों है? ऐसा तो है नहीं कि देश में कोरोना के मामले कम हो गए हैं या फिर शेष नहीं रह गए हैं? कोरोना के मामले बढ़ ही रहे हैं। कल ही 43 हजार से अधिक मरीजों की खबर आई है। तो क्या मीडिया के लिए यह अब कोई खबर नहीं रह गयी है?
दरअसल मीडिया से इसलिए खबर गायब है क्योंकि यह मामले अब उनके प्रिय प्रदेश और जिस प्रदेश को सफलता का मॉडल बनाकर प्रस्तुत किया था, उस केरल से आ रहे हैं। वही केरल, जिसमें होने वाले अपराधों की ओर से मीडिया आँखें मूंदे रहता है, वही केरल जहाँ पर होने वाले बलात्कारों पर आँखें मूंदे रहता है मीडिया। मीडिया और लेखकों का प्रिय प्रदेश केरल, ऐसा प्रदेश था, जिसने बकरीद पर विशेष छूट दी थी और एक ओर जहाँ पूरा मीडिया इस बात को स्थापित करने में लगा हुआ था कि कैसे कांवड़ से कोरोना बढ़ सकता है, वह बकरीद पर मिली छूट पर शांत था।
मीडिया का हिन्दू विरोध कोरोना की रिपोर्टिंग से भी पता चला था और अब धीरे धीरे और स्पष्ट होता जा रहा है। कैसे बिना किसी प्रमाण के कुम्भ को दोषी ठहराया था और अब कांवड़ यात्रा को रद्द कराने के लिए डराने वाले आंकड़े प्रस्तुत करने लगे थे।
यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी कांवड़ यात्रा पर स्वत: संज्ञान लिया था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा को अनुमति दी थी। न्यायालय ने इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर स्वत: संज्ञान लिया था कि जहाँ उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को अनुमति नहीं दी है तो उत्तर प्रदेश सरकार कैसे अनुमति दे सकती है? इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी चिंता व्यक्त की थी। मगर केरल सरकार ने बकरीद पर तीन दिनों के लिए अर्थात 18 से 20 जुलाई तक लॉक डाउन से छूट दी गयी थी, इस पर न ही न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया और न ही मीडिया ने इस पर कुछ कहा।
हालांकि जब समय बीत गया तो न्यायालय की ओर से केवल राज्य सरकार को फटकार लगाई गयी। पर उसका कोई अर्थ नहीं था क्योंकि समय बीत गया था।
मीडिया और लेखकों का एक बड़ा वर्ग अपनी सेक्युलर सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से इतना अभिभूत था कि जैसे बकरीद मनाने के लिए यह छूट देकर सरकार कोई गलत कार्य नहीं कर रही है। लेखको का एक बड़ा वर्ग है जो हर वर्ष कांवड़ यात्रा को कोसता है, कांवड़ यात्रा को न होने देने के लिए हर सम्भव प्रयास करता है, परन्तु अब्राहमिक रिलिजन में जो मजहब के नाम पर जो खून खराबा होता है उस पर शांत रहता है। खैर,
बकरीद पर दी गयी छूट पर एक बड़ा वर्ग मौन रहा था। और वही मौन अब तक जारी है क्योंकि उनका प्रिय केरल ही पूरे देश में कोरोना के मामलों में वृद्धि कर रहा है। 43 हज़ार से ज्यादा नए मरीज कल आए हैं, और उनमें से 50% से ज्यादा मामले केवल केरल में हैं। मंगलवार को केरल में कोविड-19 के 22 हज़ार से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
COVID19 | Kerala reports 22,129 new cases and 156 deaths today; active caseload reaches 1,45,371. Positivity rate rises to 12.35% pic.twitter.com/5ylArinqx2
— ANI (@ANI) July 27, 2021
वामपंथियों के प्रिय देश बांग्लादेश में भी बकरीद के बाद अचानक से ही कोरोना के मामले और मृत्यु के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं। परन्तु हर मामले में बांग्लादेश और केरल का उदाहरण देकर हिन्दुओं और भारत को नीचा दिखाने वाला मीडिया इन दोनों की स्थानों पर न ही कोरोना के आंकड़ों और न ही उसके कारणों पर मुंह खोल रहा है। ट्विटर पर मीडिया द्वारा केरल में कोरोना के मामले बढने और उसके कारण पर चुप रहने पर मीडिया से प्रश्न पूछे जा रहे हैं। प्रशांत उमराव ने भी कहा है कि केरल और बांग्लादेश दोनों ही राष्ट्रीय मीडिया के विमर्श से गायब हैं:
बांग्लादेश में बकरीद की छुट्टी के बाद कोरोना के मामले और मृत्यु के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं।
यहां रविवार को कोरोना के 11,291 नए मामले आये।
जबकि केरल में भी बकरीद के बाद से कोरोना के 17,000+ मामले प्रतिदिन आ रहे हैं पर मॉडल स्टेट केरल राष्ट्रीय मीडिया के विमर्श से गायब है।
— Prashant Umrao (@ippatel) July 26, 2021
वहीं चर्च की प्राथमिकता पर प्रश्न उठाते हुए पंकज पाराशर कहते हैं:
इस वक्त देश के 75% कोरोना मामले केरल से आ रहे हैं।
केरल का चर्च 5 से ज्यादा बच्चों वाले पिता को भत्ता देगा।
क्या मजाक बनाकर रखा है?
इस वक्त देश के 75% कोरोना मामले केरल से आ रहे हैं।
केरल का चर्च 5 से ज्यादा बच्चों वाले पिता को भत्ता देगा।
क्या मजाक बनाकर रखा है?— Pankaj Parashar (@PANKAJPARASHAR_) July 28, 2021
इसी बात पर पत्रकार अमन चोपड़ा ने प्रश्न पूछा है कि यदि
50% corona cases कावड़ यात्रा के बाद यूपी से होते तो ?
50% corona cases कावड़ यात्रा के बाद यूपी से होते तो ?
— Aman Chopra (@AmanChopra_) July 28, 2021
यदि ऐसा होता तो अब तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया हिन्दू धर्म को हर स्थान से प्रतिबंधित करने के लिए उतारू हो गया होता, भारत का इस्लाम और ईसाई परस्त वाम मीडिया हिन्दुओं को सबसे पिछड़ा, रेग्रेसिव और कसाई धर्म बता चुकी होती, न्यायालय भी तरह तरह की याचिकाओं को स्वीकार कर चुके होते। और हिन्दुओं पर इस महामारी का बोझ डाल दिया जाता, जो सर्वाधिक सहिष्णु धर्म है।
खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ, है तभी मीडिया शांत है। वाम, इस्लाम और ईसाई गठजोड़ वाली मीडिया केरल और कोरोना दोनों पर मौन है, हाँ, जब उत्तर प्रदेश में कुछ होगा तो देखा जाएगा? तब शोर मचाने के लिए जाया जाएगा!
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।