दुनिया भर में इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। हर देश में एक्स–मुस्लिम्स की एक फ़ौज तैयार हो रही है। अर्थात पूर्व में मुस्लिम! परन्तु ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें इस्लाम में जाना तो सरल था, परन्तु इस्लाम छोड़ना कठिन। इस्लाम छोड़ने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
केरल में ऐसी ही समस्याओं के समाधान के लिए एक संगठन “केरल के एक्स-मुस्लिम” अर्थात ‘Ex-Muslims of Kerala’, का गठन किया गया है, जिसका उद्देश्य है इस्लाम छोड़ने वालों को हर प्रकार का समर्थन प्रदान करना। यह संगठन उन्हीं लोगों ने बनाया है, जिन्होनें इस्लाम छोड़ दिया है। इस संगठन ने 9 जनवरी को “एक्स-मुस्लिम दिवस” भी मनाया।
इस संगठन के अध्यक्ष लियाकत अली सी एम के अनुसार यह अपनी प्रकार का पहला संगठन है। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने दस सदस्यों की कार्यकारी समिति का गठन किया है और इसके लिए सदस्यता अभियान चल रहा है। आरम्भ में हमने 300 ऐसे मुस्लिमों को खोजा है, जिन्होनें इस्लाम छोड़ा है और जो संगठन के समर्थन में सामने आए हैं।”
संगठन के लक्ष्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य इस्लाम छोड़ने वालों को नैतिक समर्थन देना है। उन्होंने कहा कि कैसे ऐसे मुस्लिम हैं, जिन्होनें अपना मजहब छोड़ तो दिया है, परन्तु वह खुलकर समाज के डर के कारण बोल नहीं पा रहे हैं। कईयों को अपनी पहचान छिपानी पड़ रही है।
9 जनवरी की प्रासंगिकता के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष 9 जनवरी को ही इस्लामिक प्रीचर एम एम अकबर और मल्लामपुरम के ई ए जब्बर के बीच इस्लाम को लेकर बहस हुई थी। और इसे बहुत बड़े पैमाने पर देखा गया था। इस बहस के बाद इस्लाम की मुक्त आलोचना को लेकर जमीन तैयार हुई और कई लोगों को मजहब से बाहर आने की प्रेरणा मिली।
पूरे विश्व में एक्स-मुस्लिम की संख्या बढ़ रही है
भारत में संभवतया ऐसा कोई संगठन पहले नहीं था, परन्तु पूरे विश्व में ऐसे कई संगठन हैं। एक्स-मुस्लिम्स की संख्या इतनी अधिक है कि एक मौलाना को हाल ही में यह कहना पड़ा था कि एक्स-मुस्लिम्स की सुनामी आने वाली है। और pew का सर्वे भी यही कहता है कि इनकी संख्या हर देश में बढ़ रही है।
ऐसा ही एक ग्रुप है Ex-Muslims of India। यह एक ऑनलाइन ग्रुप है, इसकी सह-संस्थापक हिना हैं। हिना का कहना है कि वह पैगम्बर मुहम्मद और आयशा की शादी के प्रकरण से हैरान होती थीं। उनके अनुसार वह इस्लाम की विचारधारा में इसके लिए बहुत ठोस तर्क खोजती थीं, परन्तु उन्हें वह नहीं मिला। और वह और भी कई कट्टरताओं के कारण इस्लाम में चैन नहीं पाती थीं। इसलिए उन्होंने इस्लाम छोड़ दिया। परन्तु ऐसा करना आसान नहीं होता।
हैदराबाद के ही कोहराम ने अपना कैरियर एक यूट्यूब चैनल शुरू करने के लिए छोड़ दिया था। उन्होंने बताया था कि इस्लाम छोड़ने वाले एक परिवार को इतना मानसिक रूप से सताया गया था कि आज वह व्यक्ति पागल खाने में है। वह कहते हैं कि इस्लाम छोड़ने वालों के जीवन में जो अत्याचार होते हैं उनका अंत करने की आवश्यकता है।
कोहराम का कहना है कि “लेफ्ट लिब्रल्स भी उस हिंसा को नहीं समझते हैं, जो हमें अपना शिकार बनाती है। वह कभी भी मजहब में सुधार की बात नहीं करते। फिर ऐसी परिस्थितियों में हमें जो भी चैनल उचित लगता है हम अपनी बात रखने के लिए जाते हैं।”
ऐसा ही एक और समूह है। Ex-Muslims of Tamil Nadu, India। यह भी इस्लाम की कट्टरता के खिलाफ अपनी बात रखता है।
कई लोगों का कहना है कि “उन्हें लेफ्ट लिब्रल्स द्वारा अपना मुंह बंद करने के लिए कहा जाता है। लेफ्ट लिब्रल्स उन्हें यह कहते हैं कि अभी समय नहीं है कि इस्लाम की बुराई की जाए।” दरअसल लेफ्ट लिब्रल्स की यह चाल बहुत पुरानी है। वामपंथी लेखकों और पत्रकारों के कई अपराध मात्र इन लोगों के लिए इसीलिए माफ़ होते हैं क्योंकि यदि आवाज उठाई तो उन्हें लगता है कि भाजपा या हिन्दुओं को फायदा मिल जाएगा। और न जाने कितनी लड़कियों का यौन शोषण होता रहता है।

ऐसा ही वह एक्स मुस्लिम्स से कहते हैं कि “इस्लाम की बुराई का समय भारत में उचित नहीं हैं, नहीं तो हिन्दुओं को फायदा हो जाएगा!” अब प्रश्न यह उठता है कि इस्लाम में सुधार यदि होगा तो हिन्दू और मुस्लिम सहित सभी के लिए लाभकारी नहीं होगा? पर वामपंथी यह कहते हैं कि चूंकि इस्लाम भारत में कथित अल्प्संखयक मजहब है, इसलिए उसकी बुराई नहीं करनी चाहिए!
और इन लोगों पर “संघ परिवार” से पैसे खाने का आरोप लगाया जाता है। जबकि इनलोगों का कहना है कि हम इस्लाम के खिलाफ हैं, हम मुस्लिम के खिलाफ नहीं हैं। हम हिन्दुओं में भी कट्टरपंथियों की आलोचना करते हैं, परन्तु हम हिन्दुओं के खिलाफ नहीं हैं।

यह देखना होगा कि ऐसे संगठन किस दिशा में जाते हैं, हालांकि यह बात सत्य है कि पूरे विश्व में लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं, और यदि इस्लाम छोड़ने पर कट्टरपंथियों से जान का खतरा न हो, तो इनकी संख्या और भी बढ़ जाएगी।