दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को माइक्रो ब्लॉग्गिंग वेबसाईट ट्विटर को यह कहते हुए फटकार लगाई कि वह हिन्दू धर्म के देवी देवताओं के प्रति अपमानजनक कंटेंट उतनी तत्परता से क्यों नहीं हटाता है, जितनी तत्परता से वह दूसरे रिलिजन और मजहबों के कंटेंट हटाता है? उच्च न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि वह हिन्दू धर्म की भावनाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है। न्यायालय का कहना है कि twitter की संवेदनशीलता बहुत ही सीमित है।
एथीस्ट रिपब्लिक” नामक यूजर द्वारा माँ काली पर कथित रूप से अपमानजनक पोस्ट लिखे जाने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए पीठ के जज न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने ट्विटर से यह जबाव माँगा कि आखिर उनकी ब्लॉक करने की नीति क्या है और वह किस प्रकार से किसी कंटेंट को हटाने का कार्य करते है क्योंकि यदि ऐसा ही कुछ समान मामला किसी और मजहब का होता, तो ट्विटर का व्यवहार कुछ और होता।
इस मामले में ट्विटर का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा के उत्तर पर भी कोर्ट ने नाराजगी जताई। जब सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि ट्विटर ने वह आपत्तिजनक कंटेंट हटा दिया है और इस पोस्ट के सम्बन्ध में एफआईआर दर्ज हो गयी है।
उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को ब्लॉक करने की नीति ट्विटर की नहीं है और वह तब तक कोई भी कदम नहीं उठा सकते हैं, जब तक कि उनके पास न्यायालय का कोई आदेश न हो। इस पर न्यायालय ने फटकार लगाते हुए कहा कि “यदि यही तर्क है तो आपने मिस्टर ट्रंप को क्यों ब्लॉक किया?” और साथ ही कहा कि ट्विटर का यह स्टैंड कि वह अपने आप खाते नहीं ब्लॉक करता, “पूरी तरह से सही नहीं है!”
न्यायालय ने कहा कि ट्विटर को उस कंटेंट को मिटाने का जो कार्य है, वह अपने आप भी किया जा सकता था, बजाय आज के दिन का इंतज़ार करने का। इसे 9 दिसंबर 2021 को ही हटाया जा सकता था, जब याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि हमने इस तथ्य को संज्ञान में लिया है कि ट्विटर ने समय समय कुछ लोगों के खातों को ब्लॉक किया है तथा साथ ही हम ट्विटर को आदेश देते हैं कि वह न्यायालय के सामने वह सभी नीतियाँ प्रस्तुत करें और साथ ही यह भी बताए कि किन परिस्थितयों के अंतर्गत इसने ऐसे कार्यों को रीस्टोर किया। सरल शब्दों में कहें तो न्यायालय ने कहा कि जिन कंटेंट के विषय में ट्विटर यह मानेगा कि संवेदनशील है, तो वह उसे तो ब्लॉक करेगा, परन्तु दूसरों की भावनाओं के विषय में ट्विटर उतना संवेदनशील नहीं है। या कहें सीमित है।
वहीं इस मामले में केंद्र सरकार का भी पक्ष आया और केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले वकील हरीश वैधनाथन ने कहा कि जिन ट्विटर खातों के खिलाफ शिकायत आती है, उन्हें ब्लॉक करने की एक प्रक्रिया होती है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि वह देखें कि इस मामले में क्या प्रक्रिया की जानी चाहिए।
इतना ही नहीं न्यायालय ने अपमानजनक टिप्पणी करने वाले एथीस्ट रिपब्लिक के वकील के माध्यम से यह कहा कि वह एक एफिडेविट पर यह विवरण थे कि उसका स्टेटस क्या है, वह कहाँ पर रहता है, कहाँ काम करता है और भारत में कौन आधिकारिक प्रतिनिधि है।
हालांकि एथीस्ट रिपब्लिक के वकील ने कहा कि जब तक उन्हें सुना नहीं जाएगा, तब तक खाता कैसे ब्लॉक किया जा सकता है?
आज उच्च न्यायालय का यह रुख बहुत ही संतोषजनक है क्योंकि यह देखा गया है कि ट्विटर हिंदूवादी लोगों के खाते बिना किसी कारण के ब्लॉक करता है, या उन्हें प्रतिबंधित करता है. भारत में हिन्दुओं की आवाज़ उठाने वाले कई लोगों के खाते जहाँ twitter ने ब्लॉक कर दिए, जैसे कंगना रनावत आदि, तो वहीं सोमनाथ तोड़ने वाले की महिमामंडन वाला ट्वीट नहीं मिटाया.
इसके साथ ही कई बार ट्विटर पर हिन्दू विरोधी होने के आरोप लगे हैं। हाल ही में 25 मार्च को ही एक यूजर ने ट्वीट करते हुए twitter से प्रश्न किया था कि वह ऐसा हिन्दू विरोधी ट्वीट कैसे अनुमत कर देता है?
पाठकों को याद होगा कि कैसे twitter ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के प्रति जो हिंसा हुई थी, उसकी सही रिपोर्टिंग करने वाले #StoriesOfBengaliHindus के अकाउंट को सस्पेंड कर दिया था
ऐसी एक नहीं कई घटनाएं हैं, जब twitter ने हिन्दुओं के विरोध में कदम उठाए हैं। कभी आरती टिक्कू का खाता केवल कश्मीर में इस्लामी आतंक की बात उठाने पर सस्पेंड किया तो विवेक अग्निहोत्री का भी खाता सस्पेंड कर दिया था।
यह कदम भी कश्मीरी हिन्दुओं की आवाज उठाने पर उठाया गया था।
देखना होगा कि क्या ट्विटर दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हुए हिन्दुओं के देवी देवताओं के प्रति अपना दोहरा रवैया त्यागता है या फिर इसे जारी रखता है?