रायटर्स में काम करने वाले फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या के बारे में जो अब नया खुलासा हुआ है, उसने सभी को दहलाकर रख दिया है। हालांकि जिन्हें दहलना चाहिए और शोर मचाना चाहिए, वह शांत हैं। वह हत्यारों की निंदा नहीं कर रहे हैं। जहाँ भी बातें हैं, यही बातें हैं कि दानिश कितना बहादुर पत्रकार था, तभी मारा गया? दानिश कितना मुखर पत्रकार था, तभी मारा गया?
पर यह प्रश्न एक सिरे से गायब है कि आखिर उसे मारा किसने? और क्यों? क्या दानिश सिद्दीकी की मृत्यु ऐसा कुछ कार्य करते हुए, जिससे भारत को अर्थात उसके देश को लाभ होने वाला था? या वह अपने व्यावसायिक असाइंमेंट हेतु अफगानिस्तान गया था। और मजे की बात यह है कि एक बड़ा वर्ग जो तालिबान द्वारा दानिश की मृत्यु पर शोक जताए जाने पर लहालोट हो गया था और भारत के प्रधानमंत्री को यह कहते हुए बार बार ताना देने लगा था कि प्रधानमंत्री मोदी क्यों उस हत्या की निंदा नहीं कर रहे?
मगर यह लोग बार बार यह भूलते रहे कि उनमें से किसी ने भी तालिबान की आलोचना नहीं की थी, बल्कि तालिबान द्वारा यह कहे जाने पर कि उसे नहीं पता कि दानिश कैसे मारा गया, भारत का लिबरल वर्ग एकदम से ऐसे हर्षोल्लास से भर गया था जैसे बहुत कुछ हासिल हो गया हो। और उसके बाद भारत के हिन्दूवादियों पर उन्होंने अपना हमला तेज कर दिया था।
Even Taliban says sorry for #DanishSiddique 's death !!
But In India Sanghis are rejoicing ???
'We are sorry': Taliban denies role in photojournalist Danish Siddiqui’s death, says report https://t.co/d5lclLwlqd
— Augustine Varkey (@logicalindianz) July 17, 2021
और भारत और भारत के प्रधानमंत्री पर ही आक्षेपों की वर्षा कर दी थी
On Record:
Those who offered condolences to our colleague #DanishSiddiqui:1) UN Secretary Genaral
2) Afghanistan President
3) US State department
4) MK Stalin
5) Pinarayi VijayanThose WHO have not:
INDIAN PRIME MINISTER
INDIAN STATE— Shahid Tantray- شاہد تانترے (@shahidtantray) July 18, 2021
लिबरल पत्रकार जैसे टूट पड़े थे प्रधानमंत्री द्वारा शोक व्यक्त न करने पर:
Those who issued statements/offered condolences to #DanishSiddiqui's family:
1) UN Secretary General
2) Afghanistan President
3) US State Department
4) Rahul Gandhi
5) MK Stalin
6) Pinarayi Vijayan
Those who have not:
1) Indian Prime Minister
2) Indian establishment
You know why— RadhakrishnanRK (@RKRadhakrishn) July 17, 2021
जब लिबरल पत्रकार तालिबान को क्लीन चिट दे रहे हों और कांग्रेस पीछे रह जाए, ऐसा तो हो नहीं सकता था। कांग्रेस के समर्थक भी इसी रिपोर्ट को रीट्वीट करते हुए नज़र आए”
Breaking:
We, are, sorry Taliban denies, role in photojournalist Danish Siddiqui death says report https://t.co/szvwNu2fx8
— Thrilok Kumar #MYLEADERRAHULGANDHI JI🙏✊💪🇮🇳 (@Thrilok2308) July 17, 2021
यहाँ तक कि कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीकी रहे जफ़र सरेशवाला भी तालिबान की इस माफी नुमा हरकत से गदगद नजर आए!
The #Taliban has issued a Statement of regret in the unfortunate killing of #DanishSiddqui @dansiddiqui ! They say they are unaware of his Death or May be the tragedy happened in Crossfire between the #Afghanistan Forces and the Taliban
— zafar sareshwala 🇮🇳 (@zafarsareshwala) July 17, 2021
और फिर लगा जैसे मामला शांत हो गया। हो सकता है क्रॉस फायरिंग में मारा गया हो, लिबरल का प्रिय दानिश सिद्दीकी! चूंकि दानिश ने स्वयं ही पहले मुस्लिम होना चुना था और फिर वह भारतीय था। दानिश के लिए मुस्लिम पहचान अधिक महत्वपूर्ण थी बजाय अपने देश के। और वर्तमान नेतृत्व तो कथित रूप से हिंदूवादी नेतृत्व है तो वह शायद और भी इस सरकार से नाराज़ था और उसके कामों में वह दुराग्रह झलकता ही था।
दिल्ली दंगों में एकतरफा तस्वीरें खींची और कोविड की दूसरी लहर में जलती चिताओं की तस्वीरों की खुले आम बिक्री ने तो कई ऐसे लोगों को दुखी कर दिया था जिन्होनें अपने घर वाले इस आपदा में खोए थे। यह बात बेहद ही हैरान करने वाली थी कि अपने लिए निजता का रोने वाली मीडिया ने कोविड 19 में मारे गए लोगों की निजता का तनिक भी ध्यान नहीं रखा था। और उनके रोने बिलखने से लेकर अंतिम संस्कार की भी तस्वीरें लगा दी थीं। कहा तो यह भी गया था कि उन तस्वीरों को बेचा गया।
दानिश क्या केवल इसलिए नायक था कि उसने अपने देश को और विशेषकर हिन्दुओं को और उनके रीति रिवाजों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी? और क्या दानिश केवल इसलिए इन लिबरल का नायक था कि वह इन तस्वीरो के माध्यम से अपना मजहबी एजेंडा चला रहा था? वह बाद की बात है, क्योंकि लोग अपने अपने हिसाब से खोज लेंगे चीज़ें! मगर सबसे महत्वपूर्ण यही प्रश्न है कि मीडिया द्वारा भी यह मांग क्यों नहीं की गए कि उनके साथी को न्याय दिलाया जाए?
कथित रूप से पूरे विश्व में न्याय के ठेकेदार यह लोग इस सरकार से मांग क्यों नहीं कर रहे हैं कि तालिबान से उनके साथी की हत्या का प्रतिशोध लिया जाए, और वह भी तब जब अब यह स्पष्ट हो गया है, कि दानिश को तालिबान ने जिंदा पकड़ा था और फिर उसे तड़पा तड़पा कर केवल इसलिए मारा था क्योंकि वह एक भारतीय मुस्लिम था। आप अपने मुल्क से नफरत करते हैं और वह आपसे!
वाशिंगटन एग्जामिनर में मिशेल रुबिन ने लिखा है कि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि सिद्दीकी अफगान सेना के साथ स्पिन बोल्दक क्षेत्र में तालिबान और अफगान सेनाओं के बीच संघर्ष को कवर करने के लिए गया था। और जब वह घायल होकर एक मस्जिद में गया तो उसे तालिबान ने जिंदा ही पकड़ा। अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीटयूट में सीनियर फेलो रुबिन ने रिपोर्ट में लिखा कि सिद्दीकी का जो वीडियो उन्हें भारत सरकार से प्राप्त हुआ, उसे देखने पर लगता है कि तालिबान ने पहले सिद्दीकी को निर्दयता से मारा और फिर उसके शरीर को बुलेट से छलनी कर दिया।”
वह लिखते हैं कि तालिबान आतंकी हमेशा से ही निर्दयी रहे हैं, मगर दानिश के साथ इसलिए भी निर्दयता की सीमा पार कर दी थी क्योंकि वह भारतीय था। और तालिबान यह भी संदेश देना चाहता था कि पश्चिमी पत्रकारों का उस अफगानिस्तान में स्वागत नहीं है, जहाँ पर तालिबान का नियंत्रण है और यह भी सन्देश देना चाहता था कि जो भी तालिबान कहे उसे ही सच के रूप में स्वीकारा जाए।
रुबिन व्हाइटहाउस द्वारा खबर को दिए गए स्पिन पर भी हैरानी जताते हैं कि आखिर जो बिडेन प्रशासन ऐसा कैसे कर सकता है कि दानिश की मौत को दुर्घटना बता दे!
परन्तु भारत में इस रिपोर्ट के आने के बाद सन्नाटा है, दानिश की हत्या में तालिबान को क्लीन चिट दे चुके कथित लिबरल वाम और इस्लामी बुद्धिजीवी मौन हैं और पत्रकार मौन हैं, एवं इसी के साथ मौन है वह लॉबी जो तालिबान की तारीफों के पुल बांध रही थी!
फिर से प्रश्न यही है कि भारत का लिबरल वाम इस्लामी लेखक और पत्रकार जगत दानिश की हत्या के लिए तालिबान को दोषी क्यों नहीं ठहरा रहा है क्यों दानिश की हत्या की निंदा हत्यारों का नाम लेकर नहीं कर रहा है? यह जानते हुए भी कि दानिश के साथ किस हद तक नृशंसता हुई है? यह चुप्पी बहुत कुछ कहती है!
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