केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य पर आज उच्च न्यायालय ने रोक लगाने से इंकार कर दिया, इतना ही नहीं इस योजना को देश के लिए आवश्यक योजना बताया और याचिकाकर्ता पर एक लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह याचिका दुर्भावना को लेकर थी एवं न्यायालय के समय की बर्बादी थी। यही कारण है कि इस याचिका को रद्द करते हुए जुर्माना लगाया गया है।
Delhi High Court refuses to stay construction work on #CentralVista Redevelopment project stating that as the workers are staying on site, no question of suspending the construction work arises in light of #Covid19.
— Live Law (@LiveLawIndia) May 31, 2021
Order: This is a motivated petition preferred by the petitioner and not a genuine petition. The petition is dismissed with a cost of Rs.1,00,000/-.#CentralVista
— Live Law (@LiveLawIndia) May 31, 2021
सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के आरम्भ होने के साथ ही इसका विरोध आरम्भ हो गया था। सेन्ट्रल विस्टा परियोजना में केंद्र सरकार द्वारा एक नए संसद भवन एवं आवासीय परिसर का निर्माण सम्मिलित है. इस परियोजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री एवं उप राष्ट्रपति के आवासों का निर्माण तो करना ही है बल्कि इसके साथ ही कई नए कार्यालय भवनों का निर्माण सम्मिलित है. इसके साथ ही इसमें केन्द्रीय मंत्रालयों के कार्यालयों के लिए केन्द्रीय सचिवालय का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना को नवम्बर 2021 तक पूर्ण होना है।
इस परियोजना में एक नया संसद भवन भी प्रस्तावित है। यह योजना दिल्ली का चेहरा ही बदल कर रख देगी। इस परियोजना की नींव दिसंबर 2020 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखी गयी थी। इस परियोजना को लेकर विशेषकर कांग्रेस एवं एक्टिविस्ट को बहुत समस्याएं थीं। यदि कांग्रेस टूलकिट को सही माना जाए तो उसमें जिन जिन बिन्दुओं का उल्लेख है, उसी के अनुसार बहुत पहले से इस परियोजना का विरोध लेखक एवं पत्रकार वर्ग करने लगा था एवं जानबूझकर इस परियोजना को प्रधानमंत्री आवास तक ही सीमित कर दिया था।
As thousands of bodies are washed down rivers into the sands, its mining continues to construct the Central Vista project, a Sultan's dream of a grand new home & office! pic.twitter.com/LBQpoGrqxR
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) May 28, 2021
प्रशांत भूषण सहित कई निष्पक्ष कार्यकर्ता इस परियोजना के विरोध में थे। यहाँ तक कि 12मई 2021 को कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कुछ कदम उठाने का अनुरोध किया था। इन सुझावों में कई सुझाव थे जिनमें कुछ बेहद अजीब थे जैसे:
सेन्ट्रल विस्टा परियोजना को रोकना एवं उसके लिए आवंटित धन को ऑक्सीजन एवं वैक्सीन खरीदने के लिए प्रयोग करना
तीनों किसान कानूनों को वापस लेना
Twelve leaders of Opposition parties write a joint letter to PM Narendra Modi suggesting a slew of measures for combating #COVID19 pic.twitter.com/b5HTNB6G6D
— ANI (@ANI) May 12, 2021
इन सुझावों को लेकर निष्पक्ष पत्रकार खिल खिल गए और उन्होंने भी इन सुझावों का अनुमोदन ही किया था। हिंदी के कई लेखकों ने इस परियोजना को सेन्ट्रल विष्ठा परियोजना तक कहा था, एवं कइयों ने इसे पर्यावरण के लिए घातक बताया था तो कई ने इसे दिल्ली की समृद्ध विरासत के विरुद्ध बताया था।
इसके विरोध में अनुवादक आन्या मल्होत्रा एवं इतिहासकार तथा डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता सोहेल हाशमी ने याचिका दायर की थी तथा कहा था कि कोरोना वायरस के इस भीषण संक्रमण के दौर में इस निर्माण कार्य को रोक देना चाहिए क्योंकि इससे संक्रमण फ़ैल सकता है।
राहुल गांधी इस परियोजना को लेकर बहुत हमलावर रहे हैं और सेन्ट्रल विस्टा परियोजना को बार बार प्रधानमंत्री आवास के रूप में ही चिन्हित कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे जनता के दिमाग में बार बार यह छवि बैठाई जा रही थी कि यह सरकार जनता को कोरोना के जबड़ों में फेंक चुकी है और उनका मांस नोचकर विलासिता कर रही है।
और यही कारण था कि कई ऐसे कार्टून बनने आरम्भ हो गए, जिन्होनें पूरी तरह से इस परियोजना को ऐसे प्रस्तुत किया जैसे कि कोरोना काल में यही एक परियोजना है! जैसे चुनावों के दौरान शोर मचाया गया और ऐसे प्रस्तुत किया गया जैसे पश्चिम बंगाल का ही चुनाव है और केवल और केवल भाजपा ही चुनाव लड़ रही है। चुनाव परिणामों के उपरान्त सब ओर शान्ति छा गयी।
उसके उपरान्त कार्टून और रचनाओं की बारी आई। न जाने कितनी अजीबोगरीब रचनाएं लिखी गयी थीं। परन्तु रचनाओं से अधिक घातक यह कार्टून थे, जैसा टूलकिट में बताया गया था, वैसे ही कदम उठाए गए।


अब जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दे दिया है कि यह परियोजना राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है तो क्या हम यह समझें कि यह मामला शांत होगा या फिर अभी और कुछ होना शेष है? एक उत्तर तो इन सभी प्रश्न उठाने वालों को देना ही चाहिए कि कब इन दिनों एक बड़े वर्ग को काम नहीं मिल पा रहा है तो वह उन लोगों के रोजगार को क्यों बंद कराना चाहते हैं, जहां से इन्हें रोजगार मिल रहा है।
और दूसरी बात जो इस निर्णय में गौर किए जाने योग्य है वह न्यायालय की वह टिप्पणी है जिसमें उन्होंने कहा है कि चूंकि सभी मजदूर निर्माण स्थल पर ही रह रहे हैं, तो ऐसे में निर्माण कार्य रुकने का कोई प्रश्न नहीं उठता है। एक और शब्द पर केंद्र का पक्ष रख रहे सोलिसिटर जनरल ने आपत्ति व्यक्त की Auschwitz, अर्थात जिसका अर्थ था जर्मनी में यातना शिविर, अकेले में कैद करना। सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि न्यायालय को ऐसे हमलों के लिए मंच नहीं बनाया जा सकता है।
न्यायालय ने भी इस बात को माना कि यह याचिका “आम जनता के हित में न” होकर किसी विशेष दुर्भावना या राजनीतिक उद्देश्य के चलते की गयी है।
परन्तु अब सेन्ट्रल विष्ठा कहने वाले लेखक क्या कहेंगे, यह एक प्रश्न है?
फीचर्ड छवि: लाइवलॉ ट्विटर से
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