भारत अनेकों विरोधाभासों से भरा हुआ देश है, सैंकड़ों वर्षो से आक्रमणकारियों ने हम पर कई हमले किये, हमारी संस्कृति और मंदिरो को तहस नहस करने का प्रयत्न किया, लेकिन इन सबके पश्चात भी हमने पूरी महिमा के साथ हमारी सभ्यता को संरक्षित करके रखा, और साथ ही आधुनिकता के साथ उसका समागम भी करते रहे। आरम्भिक काल से ही भारतीय अपनी संस्कृति का समृद्ध पोषण करने में सक्षम थे, क्योंकि उन्होंने कभी भी अपनी परम्पराओं का पालन बाधित नहीं किया एवं हर उस अवधारणा तथा वस्तु पर विश्वास बनाए रखा जो उनके अनुसार सत्य थी।
हमारी संस्कृति के संचार के सबसे बड़े उत्प्रेरक हमारे मंदिर ही रहे हैं, और यही कारण था कि विदेशी और इस्लामिक आक्रांताओ ने हमेशा हमारे मंदिरो को ही निशाना बनाया। आज भी हजारो ऐसे मंदिर हैं जो टूटे हुए हैं, कई आज तक आक्रांताओ के ‘आधुनिक उत्तराधिकारियों’ के कब्जे में हैं। हजारों मंदिर ऐसे हैं जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में हैं और हिन्दुओ को आज भी उन मंदिरो में पूजा करने का अधिकार नहीं है।
भारतीय सरकार अब इस विषय पर बड़ा कदम उठाने जा रही है, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विभाग द्वारा संरक्षित मंदिरों में धार्मिक गतिविधियां पुन: आरम्भ करने की अनुमति शीघ्र ही मिलने जा रही है। ऐसे संरक्षित मंदिरों में पूजा-पाठ की अनुमति देने के लिए 1958 के कानून में संशोधन किया जा सकता है। सरकार शीतकालीन सत्र में इससे संबंधित संशोधन विधेयक प्रस्तुत कर सकती है। इसके पीछे सरकार की सोच यह है कि इससे हिन्दुओ को उनके प्राचीन मंदिरो में पूजा पाठ करने का अवसर मिलेगा और साथ ही इन मंदिरों का रख-रखाव भी आसान होगा।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस समय देश में एएसआइ के संरक्षण में लगभग 3,800 धरोहर हैं, इनमें एक हजार से अधिक हिन्दुओ के मंदिर हैं। इनमें से उत्तराखंड के जागेश्वर धाम और केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर जैसे बहुत ही सीमित संख्या में मंदिर हैं जहां हिन्दुओ को पूजा अर्चना करने की अनुमति है। अधिकांश मंदिर या तो बंद किये गए हैं, या उनमे किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है ।
पिछले ही दिनों हमने देखा था, जम्मू-कश्मीर में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मार्तण्ड सूर्य मंदिर में 800 वर्षों पश्चात नवगृह पूजन किया गया था। यह पूजन जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा किया गया था, उसके पश्चात एएसआइ ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और बताया था कि पूजन करने के लिए कोई अनुमति नहीं दी गयी थी।
इस घटना के पश्चात ही हिन्दुओ ने इस विषय पर मंत्रणा शुरू कर दी, और यह प्रश्न पूछा जाने लगा कि हिन्दुओं को उनके ही मंदिरों में पूजन करने से क्यों वंचित रखा जा रहा है। मार्तण्ड मंदिर जैसे सैंकड़ों मंदिर हैं, जिनके अब खंडहर के रूप में अवशेष मात्र ही बचे हैं, इनमे पूजा पाठ नहीं होता और ना ही इनका सही तरीके से रख रखाव ही हो पाता है। ऐसे में हमारी प्राचीन धरोहर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, और इन्हे संरक्षित करने के प्रयास हमे करने ही चाहिए।
क्या है प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958?
प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेषों के संरक्षण के लिए, पुरातात्विक खुदाई के विनियमन के लिए और मूर्तियों, नक्काशी और अन्य जैसी वस्तुओं के संरक्षण के लिए प्रदान करता है। इसे 1958 में पारित किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करता है। नियमों के अनुसार किसी भी प्राचीन स्मारक के 100 मीटर आसपास का क्षेत्र निषिद्ध माना जाता है। स्मारक के 200 मीटर के भीतर का क्षेत्र विनियमित श्रेणी में माना जाता है, इस क्षेत्र में किसी भी मरम्मत या संशोधन के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।
क्यों यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल है?
प्राचीन मंदिरों को संरक्षित करने के जिस उद्देश्य से यह कानून लाया गया था, वह पूरा नहीं हो रहा है। उल्टे लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित होने के कारण मंदिरों की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। इन मंदिरों की देखभाल के लिए विभाग के पास उपयुक्त मात्रा में कर्मचारी भी नहीं हैं। कई मंदिर तो ऐसे हैं जहां वर्ष में एक ही बार साफ-सफाई की जाती है, अन्यथा पूरे वर्ष उन पर ताले ही जड़े रहते हैं।
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार एएसआइ संरक्षण में बंद पड़े मंदिरों की स्थिति अलग-अलग है। कई मंदिरों में मूर्तियां हैं ही नहीं, वहीं कई मंदिरों में मूर्तियां खंडित अवस्था में हैं। कई हिंदू शासकों के किलों में ऐसे मंदिर हैं जो अत्यंत ही दयनीय स्थिति में हैं, विभाग ऐसे सभी मंदिरों का वर्गीकरण कर रहा है। जिन मंदिरों में मूर्तियां ठीक स्थिति में हैं और भवन की स्थिति भी ठीक है, वहां तत्काल पूजा-पाठ की अनुमति देने पर विचार चल रहा है। पूजा-पाठ व अन्य धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से न सिर्फ उन स्थानों की देखरेख सुनिश्चित हो सकेगी, बल्कि इनके संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों का जुड़ाव भी बढ़ेगा।
यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि विभाग ने खंडित मूर्तियों वाले मंदिरों में नयी मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करने का भी निर्णय किया है। इसके अतिरिक्त खंडहर में बदल गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कर वहां भी पूजा पाठ करने की अनुमति दी जायेगी, इसका लाभ आम जनता को भी होगा, वहीं मंदिर भी फिर से पुनर्जीवित हो जाएंगे। ऐसा सरकार की योजना बताई गयी है!