कल देश के 13 राज्यों और 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के परिणाम आए। यह सभी चुनाव परिणाम बहुत कुछ संकेत देते हैं। यह आने वाले समय में भाजपा के लिए एक खतरे की घंटी है, जिसमें उसे यह निर्धारित करना है कि उसे किस मार्ग पर चलना है। जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री जहाँ अपने अपने राज्य की सीटों को जिताकर ले गए तो वहीं ऐसे मुख्यमंत्री जिन्हें केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा ऊपर से भेजा गया, और जो जनता का मूड भांपने के स्थान पर अपने वोटर्स को नाराज करते रहे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का दृष्टिकोण स्पष्ट है और उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद भी अपना दृष्टिकोण स्पष्ट रखा और भाजपा जो हिन्दुओं ने जिन मुद्दों पर वोट दिया, उसी पर कदम बढ़ाए हैं। असम में हाल ही में मंदिर की भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर जो हिंसा हुई थी, उस पर विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए विवाद के बाद भी मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अतिक्रमण के नाम पर कदम पीछे नहीं हटाए थे।
इसके साथ ही उन्होंने मदरसों पर कड़ा रुख कायम रखा और गौ वध के नियंत्रण को लेकर वह कदम उठाए, जिनकी यद्यपि एक विशेष वर्ग ने आलोचना की, परन्तु उन्होंने कदम पीछे नहीं हटाए। हर मौके पर उन्होंने स्पष्ट मत रखा, और उनके प्रति निष्ठावान रहे, जिन्होनें उन पर विश्वास रखकर अपना मत उनके दल को दिया था। और इसी का परिणाम है कि एनडीए ने सभी पाँचों सीटों पर जीत दर्ज की।
वहीं मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चार में से तीन सीटों में जीत दर्ज की। खंडवा लोकसभा सीट तो भाजपा के पास आई ही, साथ ही भाजपा ने पृथ्वीपुर और जोबट की सीट भी जीती। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का कार्य करने का तपना तरीका है, और वह जनता के साथ जुड़े हुए हैं। इन परिणामों से उन सभी विचारकों को कुछ दिन आराम लेना चाहिए, जो बार बार मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाने की बात कर रहे थे। इन परिणामों ने यह बताया कि मुख्यमंत्री को बदलना समाधान नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान ने एक ऐसे मुद्दे पर क़ानून बनाने का निर्णय लिया था, जिसे लिबरल समाज अभी भी समस्या नहीं मानता है अर्थात लव जिहाद के विरोध में!
बिहार में भी जनता ने एनडीए की ही जीत हुई! यद्यपि नितीश कुमार के शासन में जनता को कई परेशानियां हैं, परन्तु जब वह सामने लालू प्रसाद यादव को देखती है, तो उसे कुशासन और अत्याचारों का वह युग याद आ जाता है, जिसे बहुत ही मुश्किल से वह पीछे छोड़ आई है!
वहीं हिमाचल प्रदेश में मंडी की सीट भाजपा हार गयी है। मंडी की हार इसलिए चेतावनी दे रही है क्योंकि वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रदेश है। और इसी के साथ भाजपा हिमाचल प्रदेश में दो और सीटें कांग्रेस के हाथों हार गयी है। पश्चिम बंगाल में जो हुआ, वही प्रत्याशित था। तृणमूल कांग्रेस को ऐसी ही एकतरफा जीत मिलनी थी।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों में भाजपा को वोट देने वालों के साथ क्या हुआ था, यह जनता भूली नहीं हुई है। पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा में न जाने कितने भाजपा समर्थक हिन्दुओं की ह्त्या हुई, कितनी भाजपा महिला कार्यकर्ताओं के साथ बलात्कार हुआ, और कितनों को पलायन करना पड़ा, न ही यह सब किसी से छिपा है और न ही यह छिपा है कि भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अपने मरते हुए कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा नहीं हुआ।
लोगों ने देखा कि कैसे जे पी नड्डा ने एसी हॉल में शपथ खाई, जब आवश्यकता थी अपने मतदाताओं का साथ देने की, उन्हें सुरक्षित अनुभव कराने की, तब भारतीय जनता का नेतृत्व शांत हो गया। भारतीय जनता पार्टी को वोट देने वाला वर्ग पिट रहा था, पर शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई नहीं आया!
यही कारण था कि तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा मतदान हुआ। कौन व्यक्ति होगा जो अपने जीवन को खतरे में डालना चाहेगा? कौन व्यक्ति होगा जो वोट देने के अपने अधिकार के बदले में अपने परिवार को खतरे में डालना चाहेगा? तृणमूल कांग्रेस को अपने मतदाताओं का ध्यान रखना आता है, यही कारण है कि वह जीती।
इन उपचुनावों ने एक बार फिर से स्पष्ट किया है कि जो दल अपने मूल मतदाताओं का ध्यान रखेगा, वह ही जीतेगा। असम में हिमंत विस्वा सरमा ने हिन्दू हितों, हिन्दू मुद्दों और हिन्दू समस्याओं के विषय में खुलकर बात की है और खुलकर उन्हें समस्या का भान है, उन्हें यह पता है कि कैसे असम में अवैध अतिक्रमण हो रहे हैं और कैसे बांग्लादेशियों के अतिक्रमण के कारण असम की सनातन संस्कृति पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, और वह इन मुद्दों के लिए कदम उठा रहे हैं, यही कारण है कि एनडीए अपनी सभी सीटें जीतने में सफल रहा।
मध्यप्रदेश में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी हिन्दुओं के उन मुद्दों पर बोल रहे हैं, जिन पर बोलने से भाजपा के ही नेता झिझकते हैं, जैसे उन्होंने अभी डाबर और सब्यसाची के विज्ञापनों का विरोध किया और दंड भुगतने के लिए तैयार रहने के लिए कहा।
यह विधानसभा उपचुनाव परिणाम आने वाले समय के लिए भाजपा के लिए संकेत हैं कि अपने मूल हिन्दू वोट बैंक अर्थात हिन्दुओं के साथ विश्वासघात नहीं चलेगा और एक जिम्मेदार दल की भांति उसे अपने वोटबैंक के साथ खड़ा होना ही होगा।
Bye elections to Assrmblies / parliament is a sort of survey to the politicians/ govt in power, Bengal continues to rig the polls by intimidation booth capturing etc…