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Wednesday, February 19, 2025

कैसे होता है सूक्ष्म स्तर पर नैरेटिव सेट, यह बॉलीवुड से सीखा जाए: फिल्म शेरदिल: द पीलीभीत सागा भी अछूती नहीं है

बॉलीवुड की स्थिति इस समय कैसी चल रही है, यह देखा जा सकता है और इसकी बुरी स्थिति को भांपा भी जा सकता है क्योंकि यह भी समाचार में आ रहा है कि लाल सिंह चड्ढा फ्लॉप तो हुई ही है, साथ ही और भी फिल्मों पर लोगों के गुस्से की तलवार लटकी हुई है। फिर भी फिल्मों के माध्यम से सूक्ष्म जहर भरा जाना जारी है।

जो फ़िल्में हॉल में अपना जहर नहीं फैला पाती हैं, वह ओटीटी पर जहर फैलाती हैं। सामाजिक न्याय या कहें अव्यवस्था के खिलाफ बनी यह फिल्मे कहीं न कहीं हिन्दू-विरोधी एजेंडे को ही हवा देती हैं। ऐसी एक नहीं तमाम फिल्मे देखी जा सकती हैं।

जैसे अभी हाल ही में नेट्फ्लिक्स पर एक फिल्म है शेरदिल: द पीलीभीत सागा, इसमें यह दिखाया गया है कि सरपंच जो हैं आर्थिक कारणों से जंगल के बाघ का शिकार होना चुनता है क्योंकि उस पर मुआवजा मिलेगा और उसके बाद कहानी मोड़ लेती है। इस फिल्म की प्रेरणा पीलीभीत की उस घटना से मिली थी जहाँ पर यह संदेह व्यक्त किया गया था कि कहीं न कहीं लोग अपने बुजुर्गों को मरने के लिए जंगल भेज रहे हैं।

फिल्म धीमी है, और जाहिर है फिल्म है तो सेक्युलरिज्म भी होगा और साथ ही कोई न कोई ऐसा कोण तो होगा ही जारी सेक्युलरिज्म को और मजबूत कर सके। इस फिल्म में सरपंच गंगाराम अर्थात पंकज त्रिपाठी अपने गाँव के लिए बलिदान देने के लिए जाते हैं और फिर उनकी भेंट जंगल में जिम अहमद से होती है। और उसके बाद और कहानी आगे बढ़ती है।

जिम अहमद शिकारी हैं और वह बाघ को मारने आया है और सरपंच गंगाराम उसी बाघ के हाथों मरने के लिए गया है।

फिर गंगाराम के पास खाने के लिए कुछ नहीं होता है तो जिम अहमद “नीलगाय” का मांस खाने के लिए देता है। जिसे सुनकर गंगाराम मना कर देता है। मगर जंगल में चूंकि और कुछ है नहीं और गंगाराम को बाघ के हाथों मारे जाने से पहले जिंदा रहना ही है। तो वह नानुकर करते हुए खाने लगता है।

अब यहीं पर एजेंडा सामने निकलकर आता है। एक शाकाहारी व्यक्ति को जो यह कहता है कि उसका धर्म टूट जाएगा। इस पर जिम अहमद कहता है कि “भोजन का अपमान करना पाप है!”

इस पर गंगाराम का कहना होता है कि उसे बलिदान के बाद स्वर्ग जाना है। फिर जिम अहमद कहता है कि

“स्वर्ग और नर, जन्नत और जहन्नुम ये सब इंसानों के बनाए फलसफे हैं। ये नंगी भूखी दुनिया किसी जहन्नुम से कम है?”

जिसने भी यह संवाद लिखे हैं, वह खेल कर गया है। क्योंकि स्वर्ग और जन्नत की अवधारणा ही एकदम अलग है और इसी प्रकार नरक और जहन्नुम की! हर धार्मिक सम्प्रदाय के शब्दों की अपनी व्याख्या और अवधारणा होती है।

फिर जिम अहमद ने कहा कि भूखे के लिए रोटी से बढ़कर जन्नत नहीं है।

फिर गंगाराम नीलगाय का मांस खा लेता है और फिर जिम अहमद कहता है कि “अगर गाय का होता तो न खाते?”

गंगाराम का कहना होता है कि वह भूखे ही रह जाता! उसके बाद जिम अहमद जो कहता है, उसे ध्यान से सुना जाना चाहिए। वह कहता है कि उसने भी एक बार सुअर खाया था और फिर खाने के बाद डर गया।

गंगाराम कहता है कि आपको डर नहीं लगा मुल्ला जी लोगों का? ये चार दिन की ज़िन्दगी में क्या करना और क्या नहीं ये कोई मौलाना या पंडित क्यों तय करे?

यदि यह संवाद एक बार सुना जाए तो अजीब नहीं लगेगा और लगेगा कि जान बचाने के लिए ही तो बोला जा रहा है, मगर यह गाय को जिसे आज भी आम हिन्दू माँ मानता है, अपने घर के भोजन से पहले रोटी निकालकर खिलाता है, जिसके कारण वह अपने कान्हा से जुड़ा रहता है, वह गौ माता जिसका रूप धरकर पृथ्वी भी अपनी गुहार लेकर पहुँची थीं, एक ऐसी गौ माता को लेखक और निर्देशक ने इस्लाम में सुअर की अवधारणा के सामने लाकर रख दिया!

गाय हिन्दुओं के लिए पवित्र है तो वहीं सुअर मुस्लिमों के लिए अपवित्र! गाय हिन्दुओं के लिए माँ है, और इस समय भी हिन्दू सहज रूप से गाय को प्रणाम कर ही लेता है। गाय के प्रति आदर के हाथ जुड़ ही जाते हैं, मगर फिल्म का एक एक संवाद कैसा नैरेटिव बना सकता है, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। समस्या यह है कि ऐसी फ़िल्में ओटीटी के चलते सुलभ हैं और कभी भी, कहीं भी देखी जा सकती हैं, गुमनाम फ़िल्में होती हैं, फिर भी अपनी कमाई निकालती ही हैं क्योंकि पंकज त्रिपाठी का अपना एक दर्शक आधार है।

और जो उनका दर्शक आधार है, वही गाय को माँ के रूप में पूजता है, उन दर्शकों के सामने यह कहना कि हिन्दुओं के लिए गाय और मुस्लिमों के लिए सुअर का मांस एक समान है, कहीं न कहीं बहुत बड़ा एजेंडा ही लगता है।

क्या यह कहा जाए कि अब चाहे छोटी बजट की फिल्म हो, या बड़ी बजट की, जहर है ही!

कोई लाख यह बोले कि फिल्म का मात्र एक ही संवाद तो विवादित है, तो उनके लिए यह कहा जा सकता है कि यदि छप्पन भोग की थाली के साथ एक बूँद जहर रखकर परोसा जाए और कहा जाए कि पूरा खाना है, तो वह भोजन ग्रहण नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसे विषैला बनाने के लिए एक बूँद जहर ही पर्याप्त है! और दर्शकों के दिल में एजेंडा का जहर भरने के लिए एक ही संवाद पर्पाय्त है, वैसे तो यह भी प्रश्न किया जा सकता है कि ऐसा शिकारी “जिम अहमद” ही क्यों? वह नाम कुछ भी हो सकता था!

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3 COMMENTS

  1. धन्यवाद 🙏 मैंने आपका और आपके वेबसाइट का लिंक विवरण मे उल्लेख कर दिया है..
    वीडियो का लिंक है – https://youtu.be/c4e_PTex_ng

  2. धन्यवाद अंजनी जी, आप इस लेख का और पोर्टल का सन्दर्भ, लिंक और उल्लेख करते हुए वीडियो बना सकते हैं. आप हमें भी लिंक साझा करें! धन्यवाद
    सोनाली मिश्रा

  3. सोनाली जी आपका लेख मैं बराबर पढ़ते रहता हूँ.. अच्छी भी लगती है..और सीधे दिल मे भी उतर जाती है… मैं चाहता हूँ आपका लेख मैं अपने वीडियो के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएं… अगर आपकी इजाजत हो तो.. आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.. 🙏 धन्यवाद

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