सोमनाथ के मंदिर पर गर्व से लहरा रहा है भगवा! अनस हक्कानी!
हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी का मंगलवार को किया गया ट्वीट हैरान करने वाला ही नहीं, हिन्दुओं के लिए आँखें खोलने वाला होना चाहिए। वह हिन्दू जो तालिबान को सुधरा हुआ बता रहे थे या जिनका दिल कट्टरपंथी मुसलमानों के लिए टूटता रहता है, उन्हें महमूद गजनवी के मकबरे पर गए हुए अनस हक्कानी का वह ट्वीट पढ़ना चाहिए।
अनस हक्कानी ने मंगलवार को महमूद गजनवी के मकबरे का दौरा किया और लिखा कि आज हम सुलतान महमूद गज़नवी के मकबरे पर गए, जो दसवीं शताब्दी का एक महान मुस्लिम लड़ाका और मुजाहिद था। गजनवी (अल्लाह का करम उन पर बना रहे) ने गज़नी के इलाके में एक मजबूत मुस्लिम राज्य बनाया और सोमनाथ के बुत को तोड़ा!”
यह ट्वीट दिखाता है कि अब तक वह अर्थात समुदाय के रूप में वह सभी लोग हिन्दुओं से कितनी नफरत करते हैं और उन लोगों के लिए लिए गजनवी ही आदर्श है क्योंकि उसने मुस्लिमों के शासन ही स्थापना ही नहीं की थी, बल्कि उसने “सोमनाथ के मंदिर को तोड़ा था!”
उसने हिन्दुओं के गर्व के प्रतीक को नेस्तनाबूत किया था, उसने वह सब किया था, जो एक सच्चा मुजाहिदीन करता है।
पर वह गजनवी पर ही घमंड क्यों कर रहा है? क्या उसने कोई विकास का कार्य किया या मोहब्बत फैलाई? जैसा इस्लाम में यह लोग दावा करते हैं या फिर इसलिए कि उसने सोमनाथ का बुत तोड़ा?
उनके लिए बुत ही था, परन्तु हिन्दुओं के लिए वह एक जीवंत प्रतिमा थी। जब भी उन्होंने किसी प्रतिमा को तोडा, तो बेजान समझकर नहीं तोड़ा बल्कि यह समझते बूझते हुए तोड़ा कि इसमें हिन्दू जान मानते हैं। मगर उनके लिए इन प्रतिमाओं को तोड़ा जाना जरूरी था क्योंकि वह चाहते थे सब कुछ नष्ट करना, जो इस्लाम में न आ पाए उसे मार डालना!
फिर भी कल हक्कानी के इस ट्वीट से भारत में वह सभी इतिहासकार झूठे साबित हो गए हैं, जो बार बार यह कहते थे कि गजनवी ने केवल लूट के लिए मन्दिर को तोड़ा था, जैसा उन दिनों प्रचलन था। और इसी पैटर्न पर हमारे बच्चों को यह पढ़ाया गया कि दरअसल गजनवी तो असली मुस्लिम था ही नहीं।
सीता राम गोयल ने अपनी पुस्तक HINDU TEMPLES, WHAT HAPPENED TO THEM में लिखा है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1 जून 1932 को अपनी बेटी इंदिरा गांधी को भेजे गए एक पत्र में लिखा था कि महमूद धार्मिक व्यक्ति नहीं था और यह कि वह मुसलमान तो था, पर उसने जो भी किया और जिस तरीके से किया, वह किसी भी धर्म का होता तो यही करता।
और वह तो बाद में यहाँ तक लिख देते हैं कि महमूद गज़नवी ने तो हिन्दुओं के मंदिरों की प्रशंसा की थी।
भारत एक खोज, अर्थात discovery of India में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने पृष्ठ 235 पर लिखा है कि
महमूद गजनवी दिल्ली के पास मथुरा शहर के मंदिरों से बहुत प्रभावित था। इस विषय में वह लिखते हैं कि मथुरा में हज़ारों मूर्तियाँ और मन्दिर थे और इन्हें बनाने में लाखों दीनार खर्च हुए होंगे, ऐसा कोई भी निर्माण पिछले दो सौ सालों में नहीं हुआ होगा।”
मगर पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत ही सफाई से यह छिपा ले जाते हैं कि महमूद ने उसके बाद सभी मंदिरों में आग लगा दी थी। वामपंथियों और इस्लाम का बचाव करने वालों ने एक सिद्धांत गढ़ा और महमूद गजनवी आदि को ऐसा व्यक्ति बताया जिसके दिल में मजहब के लिए आदर नहीं था, यही लाइन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखी है कि महमूद मजहबी कम था और योद्धा अधिक था और भारत उसके लिए एक ऐसी जगह थी जहाँ से वह लूट कर ले जा सके।
लूट, मन्दिरों के विध्वंस को इस्लाम से अलग किया गया। और इसे बाद में प्रोफ़ेसर हबीब ने भी स्थापित करने का प्रयास किया कि लूट के लिए हवस कभी भी इस्लाम की अवधारणा नहीं थी और न ही मंदिरों को तोड़ना इस्लाम था। और सीताराम गोयल कहते हैं कि यही बाद में मार्क्सवादी इतिहासकारों की पार्टी लाइन बन गयी।
मगर यह बात आज अनस हक्कानी ने प्रमाणित कर दी है कि वह सही है और वाम इतिहासकारों ने इस्लामी एजेंडा फैलाया! वह आज भी मन्दिर तोड़ने वाले को सच्चा मुस्लिम योद्धा मानते हैं, जिसे कथित वाम उदार इतिहासकारों ने मुस्लिम ही नहीं माना!
मजे की बात यह कि यही लाईन लेकर वामपंथी साहित्यकार और वामपंथी इतिहासकार आगे बढ़े, और अब तक बढ़ते रहे। साहित्य में भी इसी सोच के आधार पर कहानी लिखी जाती रही और सोमनाथ के मंदिर के विध्वंस के लिए उस सोच को कभी उत्तरदायी नहीं ठहराया गया, जिस कट्टरपंथी सोच ने महादेव की प्रतिमाओं को ही नष्ट नहीं किया था, बल्कि ऐसा संहार किया था, कि हिन्दुओं के स्थान पर कोई और धर्म होता तो वह कभी खड़ा ही नहीं हो पाता!
पर जिस सोमनाथ के बुतों को नष्ट करने के लिए आज हक्कानी महमूद गजनवी का गुणगान कर रहा है, इस्लाम का आदर्श बना रहा है, वही सोमनाथ हिन्दुओं के बलिदान और त्याग के कारण उनके गौरव के प्रतीक के रूप में जीवंत होकर साँसे ले रहा है। जिस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने करवाया हो, उस मंदिर को नष्ट करने का मात्र स्वप्न देखा जा सकता है।
फिर भी इस मंदिर को तोड़ने के प्रयास हुए, प्रयास क्या हुए, महमूद गजनवी से लेकर औरंगजेब ने अपने हिसाब से तोड़ा, पर हर बार उसका पुनर्निर्माण कराने के लिए भारत में पुण्य आत्माओं ने जन्म लिया।
प्रभास क्षेत्र में बसा हुआ यह मंदिर हिन्दू धर्म के गौरव एवं वैभव का प्रतीक है।
मगर जो आज हिन्दू धर्म का गौरव फिर से लहरा रहा है, वह हक्कानी को पसंद नहीं है! बुद्धिजीवियों के अनुसार वह बदला तालिबान है, मगर इतिहास को देखें तो वह वही इस्लामी कट्टरपंथी आततायी है, जिसे सोमनाथ को तोड़ना पसंद है और साथ ही जो भारत के वाम बुद्धिजीवियों के उस झूठ की पोल पूरी तरह से खोलता है, जो आज तक महमूद गजनवी को “सच्चा मुसलमान” न होने का प्रमाणपत्र हाथ में लेकर खड़े थे।
इतने वर्षों के झूठ पर तालिबानियों ने अपने आचरण से पानी फेर दिया है और कथित बुद्धिजीवी, साहित्यकार और इतिहासकार सभी भीड़ में वस्त्रविहीन से दिख रहे हैं, क्योंकि कुतर्क रूपी उनके वस्त्र आज हक्कानी के इस ट्वीट से नीचे गिर गए हैं!
बहुत उत्तम लेख