spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.2 C
Sringeri
Saturday, April 20, 2024

महारानी अहिल्या बाई होलकर: इस्लामी आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों को नया रूप देने वाली महान रानी

वामपंथ अर्थात लेफ्ट इस्लामिस्ट फेमिनिज्म ने एक एजेंडा चला रखा है, जिसमें बार-बार हिन्दू धर्म का यह कहकर अपमान किया जाता है कि हिन्दू धर्म में स्त्रियों का आदर नहीं होता, उन्हें शिक्षा प्राप्त नहीं थी और उन्हें कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि भारतीय हज़ारों वर्षों से गुलाम रहे, तो किसी ने कहा हिन्दू स्त्रियों की कोई पहचान नहीं थी। उन्हें जला दिया जाता था। पति के साथ ही उनका जीवन था, पति के  देहांत के बाद उन्हें पति की जलती चिता में फेंक सती हो जाना होता था।  बहुपत्नी परम्परा के नीचे स्त्रियाँ दम तोडती रहती थीं। और भी न जाने क्या क्या? एक ऐसी छवि प्रस्तुत की गयी जैसे हिन्दू स्त्री पूर्णतया गुलाम थी!

परन्तु हर कालखंड में ऐसी स्त्रियों ने जन्म लिया है, जिन्होनें बार बार यह स्थापित किया कि वीरता और शौर्य क्या होता है? मूल्य क्या होते हैं? उनकी पहचान वस्त्रों तक सीमित न रही, उनकी पहचान भारत के कोने में फ़ैल गयी एवं विस्तारित हो गयी उनके कार्यों की प्रतिष्ठा।

भारत के लिए वह अत्यंत गौरव के वर्ष हैं, जिनमें महारानी अहिल्याबाई होलकर का शासन था। अर्थात वर्ष 1765-67  से 1795 तक! वह मालवा की महारानी थीं, जिनमें वीरता एवं बुद्धिमत्ता का ऐसा सम्मिश्रण था कि कोई भी उन्हें पराजित नहीं कर सकता था। वह वीरता एवं संवेदना का स्पंदित रूप थीं।

आज जब हम काशी में एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि कैसे मुस्लिम पक्ष थेथरई पर उतरा हुआ है और कैसे झूठ पर झूठ बोला जा रहा है! आज जब हम सोशल मीडिया के युग में हैं, जब सत्य छिप नहीं पा रहा है, तो ऐसे में कल्पना करें ऐसे समय की जब संचार के ऐसे साधन नहीं थे, जब सूचनाओं का आदानप्रदान इतना त्वरित न था, तो ऐसे में क्या होता होगा?

ऐसे में समय में हिन्दू होने की चेतना और अत्याचारों का मौखिक वर्णन ही वह माध्यम था, जो सुदूर मालवा की रानी को बाबा विश्वनाथ की टूटन की पीड़ा से जोड़ता था। मालवा की रानी अहल्या बाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को एक साधारण परिवार में हुआ था।

आज से कई वर्ष पूर्व मालवा के शासक थे मल्हारराव होलकर। वह एक चरवाहे परिवार में पैदा हुए थे और वह वर्ष 1721 में पेशवा की सेवा में कार्य करने लगे थे। शीघ्र ही उन्होंने मध्य भारत में इंदौर में शासन करना आरम्भ कर दिया था। उनके एक ही पुत्र था। वह अपने पुत्र की चंचलता से अत्यंत दुखी रहते थे, उन्हें ऐसा प्रतीत होता था जैसे उनके पुत्र का जीवन नष्ट हुआ जा रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो कौन सम्हालेगा उनका साम्राज्य! कैसे चलेगा वंश? क्या होगा यदि शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया? इन्हीं ऊहापोह में दिन कट रहे थे। फिर उन्होंने उनका विवाह करने का सोचा। परन्तु इसके लिए उन्हें कन्या दिव्य चाहिए होगी। वह चिंतित थे

पर उन्हें नहीं ज्ञात था कि उनकी इस समस्या का समाधान शीघ्र ही होगा। मल्हार राव होलकर को एक दिन चौन्दी गाँव के मानकी जी शिंदे की पुत्री अहिल्या के रूप में समाधान प्राप्त हुआ। उन्होंने उस बालिका के गुणों के विषय में सुना और उसे अपनी वधु बनाकर ले आए। बालिका अहिल्या, मालवा की वधु अहिल्याबाई हो गईं!

अहिल्या को अपने देवतुल्य सास एवं ससुर का प्रेम प्राप्त होने लगा था।  उन्होंने अपने पति को शनै: शनै: हर विलासिता से मुक्त कराया एवं उनके पति अपने पिता के साथ युद्ध में भाग लेने जाने लगे। मल्हार राव होलकर अपनी वधु से अत्यंत प्रसन्न थे, अब उन्होंने युद्ध पर जाते समय शासन के कार्यों का उत्तरदायित्व भी अपनी वधु के कन्धों पर सौंपना आरम्भ कर दिया।

जटिल कार्यों को चुटकी में हल निकालते देखकर मल्हर राव चकित रह जाते और उन्हें अपने निर्णय पर गर्व होता! परन्तु नियति में कुछ और ही लिखवाकर लाईं थी अहिल्या बाई! वर्ष 1754 में 29 बरस की आयु में उनके पति खंडेराव का निधन हो गया एवं उन्होंने सती होने का निर्णय लिया!

परन्तु उनके श्वसुर ने उन्हें सती न होने दिया! अहिल्याबाई ने पुत्र बनकर उनकी सेवा का प्रण लिया! उसके उपरान्त अहिल्याबाई ने राजकाज का कार्य अपने कन्धों पर ले लिया! और अपने पुत्र का राजतिलक किया! परन्तु सच्चे व्यक्तियों के जीवन में परीक्षा अधिक होती हैं और उनके पुत्र का भी निधन हो गया! गद्दी पर कोई उत्तराधिकारी न देखकर शत्रुओं की नज़र शीघ्र ही मालवा पर जम गयी!

उनके समक्ष आतंरिक एवं बाहरी सभी शत्रु सिर उठाने लगे। पर अहिल्याबाई ने हार न मानी। क्योंकि उन पर एक नहीं, कई संतानों का भार था। उनकी एक ही तो सन्तान गयी थी, प्रजा तो थी। परन्तु यह तलवार म्यान में रखने के लिए नहीं थी, अहिल्याबाई का स्वर अवश्य मधुर था, परन्तु हाथी की सवारी उन्होंने महल की शोभा के लिए नहीं सीखी थी। तुकोजी होलकर को सेनापति नियुक्त किया एवं गद्दी पर स्वयं बैठीं।

अहिल्याबाई का शासन जब था, उस समय ऐसा कोई सहज युग नहीं था बल्कि साथ ही वह युग था जब अशांति थी, लुटेरे थे और उस पर उन्हें प्रतीत होता था कि एक स्त्री कर ही क्या लेगी? अहिल्याबाई ने तुकोजी राव होलकर के हाथों में राज्य के कठिन कार्यों को सौंप दिया था।  वह उनके साथ मिलकर ही कार्य करती थीं।

वह पूर्णतया धार्मिक परम्पराओं से शासन को संचालित करती थीं। वह ब्राह्मणों एवं हर ऐसे व्यक्ति को मनचाहा धन देती थीं, जिन्हें आवश्यकता होती थी। उन्होंने संवाद की महत्ता को समझा था। इसीलिए उन्होंने अपने शासनकाल में कई दुर्गों एवं सड़कों का निर्माण कराया। जनता से प्रत्यक्ष संवाद किया। उनके लिए उनका कर्म ही उनका ईश्वर था, जैसे गीता के कर्मयोग को आत्मसात कर लिया हो। उन्होंने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। मात्र मालवा के ही नहीं बल्कि उनके लिए हर तीर्थ स्थान पूज्य था, उन्होंने काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या आदि के मंदिरों को भी दान दिए! साहित्य के प्रति उनके ह्रदय में अनुराग था।

वह सादा जीवन जीती थीं। उनका भोजन साधारण था। उन्होंने परमार्थ के लिए राज्य करना स्वीकार किया था। भोग सुख को छोड़कर जनता एवं धर्म के लिए शासन करना, ऐसे उदाहरण इतिहास में अत्यंत कम प्राप्त होते हैं।

उन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, कई मंदिरों तथा घाटों का निर्माण कराया, धर्मशालाएं बनवाईं, जिनमें सोमनाथ, त्रयम्बक, गया, विष्णुपाद मंदिर, काशी, बद्रीनाथ, हरिद्वार, केदारनाथ, देवप्रयाग, गंगोत्री आदि मुख्य हैं। उन्होंने धर्म को आचरण में धारण किया, तभी वह पूज्य हैं। उन्होंने उन आदर्शों की स्थापना की जिन पर आज की हर स्त्री को चलना चाहिए। उन्होंने हर स्थिति में कर्तव्य को ही सर्वोच्च माना। धर्म एवं कर्तव्यों से उन्होंने कभी मुख नहीं मोड़ा एवं आज के परिवार तोड़ो स्त्री विमर्श के विपरीत उन्होंने हिन्दू स्त्री के विमर्श को वहां पहुंचाया, जहाँ पर सहज कोई पहुँच नहीं सकता।

यही कारण है कि काशी में उनकी भी प्रतिमा लगाई गई है!

13 अगस्त 1795 को जब उनका देहांत हुआ, तब तक वह स्वतंत्र स्त्री, स्वतंत्र शासिका के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुकी थीं! बार बार उन्होंने हंस कर कहा भारत की स्त्री कभी गुलाम नहीं होती!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.