आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आबकारी नीति को लेकर सीबीआई जांच पर अपना गुस्सा दिखाते हुए कहा कि “हम सावरकर की नहीं भगत सिंह की औलाद हैं!” अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि
तुम्हें जेल से डर लगता होगा। तुमलोग सावरकर की औलाद हो, जिसने अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगी थी।
हमें जेल से डर नहीं लगता। हम Bhagat Singh को अपना आदर्श मानते हैं जिन्होंने अंग्रेज़ों के सामने झुकने से मना कर दिया और फांसी पर लटक गए।
इस बात पर लोग भड़क गए और लोगों ने अरविन्द केजरीवाल को बताया कि उन्होंने कब कब लिखित में माफी माँगी: शुभांकर मिश्रा ने लिखा कि
हम ‘सावरकर’ की नहीं ‘भगत सिंह की औलाद’ कहने वाले केजरीवाल कई मौक़े पर ‘लिखित माफ़ी’ मांग चुके हैं
– विक्रम मजीठिया से लिखित माफ़ी मांगी
– कपिल सिब्बल से लिखित माफ़ी मांगी
– नितिन गड़करी से लिखित माफ़ी मांगी
– अरुण जेटली से तो संजय सिंह, राघव चड्ढा आशुतोष, ने लिखित माफ़ी मांगी
सावरकर की बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल खुद कितनी बार माफी मांगकर यूटर्न ले चुके हैं, यह उन्हें भी नहीं पता होगा। भगत सिंह की औलाद खुद को कहने वाले अरविन्द केजरीवाल सब कुछ हो सकते हैं, परन्तु भगत सिंह को मानने वाले नहीं, क्योंकि भगत सिंह ने कभी भी भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर उंगली नहीं उठाई थी और वह कब और कैसे एक दूसरे के विरोधी थे, यह अरविन्द केजरीवाल को भी नहीं पता होगा।
क्या अरविन्द केजरीवाल ने जेल जाने से बचने के लिए माफी नहीं माँगी है? आजतक ने भी उदाहरणों के साथ यह बताया कि कब-कब अरविन्द केजरीवाल ने माफी मांगी है।
यह तो थी अरविन्द केजरीवाल की राजनीति और माफी की बात।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वीर सावरकर एवं भगत सिंह को परस्पर एक दूसरे के सामने खड़ा करने वाले इन विघटनकारी नेताओं ने कभी भगत सिंह को पढ़ा भी है? क्या भगत सिंह जी जो लिख गए हैं, वह उन्होंने पढ़ा भी है? यह प्रश्न इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि अपनी घिनौनी और हिन्दू घृणा वाली राजनीति के चलते वह कितना भी वीर सावरकर और भगत सिंह को आमने सामने खड़ा करें।
ज़ी न्यूज़ ने भगत सिंह जी की डायरी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि अरविन्द केजरीवाल ने जिन भगत सिंह और वीर सावरकर को आमने सामने खड़ा करने का प्रयास किया है, दरअसल वह एक घिनौनी एवं विघटनकारी राजनीति से परे कुछ नहीं है।
इसमें लिखा है कि
“अपनी डायरी के पेज नंबर 103 पर आखिरी पैराग्राफ में सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर की किताब ‘हिंदूपदपादशाही’ के पेज 165 पर सावरकर द्वारा संत रामदास के मुगलों के खिलाफ युद्ध पर लिखे गए वाक्य ‘धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ’ उस समय हिंदुओं के बीच यही पुकार प्रचलित थी। लेकिन रामदास ने खड़े होकर कहा, ‘नहीं, यह सही नहीं है’। धर्मांतरित होने के बजाय मार डाले जाओ- यह काफी अच्छा है लेकिन उससे भी बेहतर है ‘न मारे जाएं और न ही धर्मांतरण किया जाए, हिंसक शक्ति को ही मार दें’ को लिखते हैं।
इसमें लिखा है कि
“सरदार भगत सिंह जब जेल में थे तब डायरी में कथन लिखने से पहले उन्होंने कुछ कागज के पन्नों पर भी कथन लिखे थे। इसी कड़ी में सरदार भगत सिंह के नोट्स के पेज नंबर 7 पर सावकार की इसी किताब ‘हिन्दूपदपादशाही’ के पेज 219 पर कथन लिखा हुआ है, ‘उस बलिदान की सराहना केवल तभी की जाती है जब बलिदान वास्तविक हो या सफलता के लिए अनिवार्य रूप से अनिवार्य हो। लेकिन जो बलिदान अंततः सफलता की ओर नहीं ले जाता है, वह आत्मघाती है और इसलिए मराठा युद्धनीति में उसका कोई स्थान नहीं था।’
इस लेख से स्पष्ट होता है कि जिन भगत सिंह और वीर सावरकर के बहाने अरविन्द केजरीवाल अपने भ्रष्टाचार को छिपाने का कुप्रयास कर रहे है, वह एक निकृष्ट राजनीति से अधिक कुछ नहीं है। अपने राजनीतिक जीवन में तमाम तरह के क़दमों को वापस लेने वाले, अपने किसी वादे पर न टिकने वाले, और प्रभु श्री राम तक को अपनी राजनीति के लिए प्रयोग करने वाले अरविन्द केजरीवाल किस धृष्टता से वीर सावरकर जी का नाम भी ले सकते हैं, यह स्वयं में हैरान करने वाला है।
सावरकर को कोसना हिन्दुओं को दरअसल उस आत्महीनता में घसीटने का प्रयास है, जिसमे वह कभी फंस जाया करते थे, जब संचार के माध्यम कम थे और जब प्रकाशन पर मात्र वाम और इस्लामी कब्जा था, जिन्होनें नायकों के निर्धारण में तमाम तरह के खेल किये और नायकों को एक दूसरे के विरोध में खड़ा कर दिया।
जिन वीर सावरकर को असहनीय यातनाएं दी गईं और जिन्होनें काले पानी की सजा झेली, जिन्होनें जेल की दीवारों पर कविताएँ लिखीं, जिन्होनें अपने देश के लिए कोल्हू में बैल की तरह जुटना स्वीकार किया, उनके विषय में अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग कुछ बोलें, तो क्रोध और आक्रोश हर ओर फैलेगा ही क्योंकि अरविन्द केजरीवाल ने किस तरह मानहानि के मुकदमों में लिखित माफी मांगी है, उसे पूरे देश ने देखा।
इतना ही नहीं अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की निर्लज्जता यहीं समाप्त नहीं होती है। वीर सावरकर पर उंगली उठाने का दुस्साहस करने वाले अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने जामिया नगर में फ्रीडम फाइटर फाउन्टेनके पास लगे बोर्ड में बांग्लादेशी की तस्वीर, स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में थी!
जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ वैसे ही हंगामा मचा और लोगों ने प्रश्न करना आरम्भ किया कि अरविन्द केजरीवाल के अनुसार वह भगत सिंह की औलाद हैं!” तो फिर बंगलादेशी मौलाना, जिसका जन्म 1950 में बांग्लादेश में हुआ था, उसकी तस्वीर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बीच क्यों लगा रखी है?
इस विषय में लोगों का कहना है कि कोई गलती नहीं की गयी है, बल्कि यदि यह बहुत महीनों से है तो शायद इसे जानबूझकर ही किया गया है क्योंकि इस इलाके में और यहाँ तक कि विश्वविद्यालयों तक में कई बांग्लादेशी हैं तो हो सकता है कि यह वोटबैंक के लिए किया गया हो!
वहीं इस मामले के सामने आते ही आम आदमी पार्टी की जामिया इकाई ने उस हिस्से को हटा दिया है
यह इस देश का दुर्भाग्य है कि वीर सावरकर चूंकि हिंदुत्व की बात करते थे, जो अविभाज्य राष्ट्र की बात करते थे, जो यह चाहते थे कि हिन्दुस्थान कश्मीर से लेकर रामेश्वर तक और सिन्धु से लेकर आसाम तक संयुक्त होने के नाते ही नहीं, अपितु अभिन्न राष्ट्र के नाते से एकरस एवं अविभाज्य ही रहना चाहिए, उन्हें इस्लामी तुष्टिकरण एवं वामी राजनीति के चलते अपमानित किया जाता है, वहीं जो सावरकर जी को अपमानित करते हैं वह जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में देश तोड़ने वाले नारे लगाने कि “कश्मीर चाहे आजादी” जैसे नारों के समर्थन में खड़े होते है, बांग्लादेश के मौलवी को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बताते हैं और सावरकर पर उंगली उठाने वाले खुद झूठ से सने खड़े हैं, माफियों की सूची लेकर खड़े हैं, काला पानी नहीं, साधारण जेल से बचने के लिए, हर प्रकार के माफीनामे को दे चुके हैं!
फीचर्ड इमेज- भाजपा नेता एवं केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी से माफी मांगते हुए अरविन्द केजरीवाल