पुणे में एक बच्ची के साथ जो घटना हुई, उसे सुनकर एकबारगी सिहरन होगी और फिर गुस्सा आएगा। एक चौदह साल की बच्ची जिसे 2 दिनों तक अपहृत करके 13 लोग घुमाते रहे और उसे नंगा रखा और भूखा भी। वह बच्ची अपने किसी दोस्त से मिलने के लिए गयी थी और रात को साढ़े दस बजे स्टेशन के करीब खड़ी थी। वहां से उसे एक ऑटोवाला अपने साथ यह कहते हुए ले गया, कि जिस ट्रेन का वह इंतज़ार कर रही है, वह चली गयी है और दूसरी सुबह आएगी।
वहां से वह उसे अपने साथ एक लॉज में ले गया और खुद बलात्कार करने के बाद उसने अपने साथियों को बुलाया और फिर उन सभी ने मिलकर उसके साथ बलात्कार किया और उन जगहों पर बलात्कार किया, जो पेड़ों से ढकी हुईं थीं या फिर रेलवे ऑफिस में कहीं अकेले स्थान पर थीं। आरोपियों ने उसे 2 सितम्बर को पुणे से बाहर फेंक दिया और उसे धमकी दी कि वह यह बात किसी को नहीं बताएगी। दो दिनों तक वह लोग उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाते रहे और उसे नंगा ही रखा था, बस जब केवल उसे कहीं ले जाना होता था तो कपड़े दिए जाते थे!
उसके पिता एक माली का काम करते है और उन्होंने अपनी बेटी को घर पर न पाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। चूंकि बच्ची नाबालिग थी तो पुलिस को अपहरण का मामला दर्ज करना पड़ा।
जब पुलिस ने सीसीटीवी खंगाले तो उस बच्ची को एक ऑटो में जाते हुए देखा। उसके बाद पुलिस ने सभी आसपास के पुलिस स्टेशन के साथ साथ सभी राज्यों की पुलिस से संपर्क किया। उसके बाद चंडीगढ़ पुलिस ने उस बच्ची को वहां से 4 सितम्बर को पकड़ा और फिर सूचना पाने के बाद पुणे की पुलिस टीम अगले ही दिन चंडीगढ़ पहुँची और फिर उसे पुणे लेकर आई।
वहीं जब पुलिस ने सीसीटीवी के आधार पर उस ऑटो वाले को पकड़ा तो उसने उस घटना में शामिल और लोगों के बारे में बताया। फिर उस ऑटो वाले ने अपने साथ लोगों के नाम बताए, कि कैसे वह और उसके साथी उस लड़की के साथ बलात्कार करते रहे। उनके नाम थे:
- मशक अब्दुलमजीद कन्याल (27 वर्ष) ऑटो ड्राइवर
- अकबर उमर शेख (32), एसी रिपेयर मैकेनिक
- ऑटोरिक्शा चालक रफीक मुर्तजा शेख (32)
- अजहरुद्दीन इस्लामुद्दीन अंसारी (27), ऑटोरिक्शा चालक
- प्रशांत सैमुअल गायकवाड़ (32),
- राजकुमार रामांगीना प्रसाद (21),
- नोयब नईम खान (24) ऑटोरिक्शा चालक
- मीरावाली उर्फ मीरा अजीज शेख (24)
- आसिफ फिरोज पठान (36)
- शाहजुर उर्फ सिराज साहेबलाल छपरबंद (28),
- समीर महबूब शेख (19), पेशा- फैब्रिकेशन
- फिरोज उर्फ शाहरुख साहेबलाल शेख (22) बढ़ई
- महबूब उर्फ गौस सतर शेख (23)
- पीड़िता का दोस्त
पुलिस के अनुसार भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है जिनमें अपहरण, अप्राकृतिक सेक्स जैसे कई अपराध शामिल हैं!
अब इस जघन्य अपराध के लगभग सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं। मगर इस घटना को लेकर कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इस घटना के विषय में कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। दिल्ली का मीडिया भी इस घटना से उदासीन है और बुद्धिजीवी वर्ग तो जाहिर है कि नहीं बात करेगा और कोई कदम नहीं उठाएगा। पुणे इतना दूर तो नहीं है कि उसकी आवाज़ यहाँ तक नहीं आ पाए, या फिर वह सिलेक्टिव ही सुनने के आदी है! इस घटना की आलोचना भी नहीं हो रही है! आखिर बुद्धिजीवियों या फेमिनिस्ट को किस बात का डर है? क्या उन्हें यह लगता है कि एक चौदह साल की लड़की घर से अकेली रात में बाहर नहीं निकल सकती, पर रात में निकलने के अभियान तो वही चलाती हैं?
इस घटना में लोग कह सकते हैं कि बच्ची अपने दोस्त के पास क्यों चली गयी आदि आदि! परन्तु क्या यह कहने से उन तेरह लोगों के अपराध धुल सकते हैं, जो उन्होंने उस बच्ची के साथ किये? ऐसा क्यों है कि उस बच्ची के साथ हुए इस जघन्य अपराध के बारे में तब भी कोई खलबली नहीं है जब अपराधियों ने अपने अपराध स्वीकार कर लिए हैं और पुलिस ने सभी तेरह लोगों को हिरासत में ले लिया है?
इस पर दिल्ली और शेष बुद्धिजीवी लोग कह सकते हैं कि पुलिस ने हिरासत में ले तो लिया है, ऐसे में समस्या क्या है? मामला सुलझ गया है! मगर मामला तो ऐसे दिल्ली में राबिया सैफी के मामले में सुलझ गया है, जिसमें आरोपी ने खुद ही आकर समर्पण कर दिया है, जिसमें किसी निजामुद्दीन ने कहा कि उसने अपनी बीवी राबिया सैफी का खून कर दिया था, क्योंकि उसे उसके चरित्र पर शक था। अब घर वाले कह रहे हैं कि उनकी बेटी की शादी नहीं हुई थी, उन्हें नहीं पता है कि ऐसा कुछ हुआ था! पुलिस झूठ बोल रही है।
और सैफी समुदाय आकर सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। राबिया का भाई अपनी बहन के साथ हुए अत्याचार की कहानी सुनाता है तो रोंगटे उसी तरह से खड़े होते हैं जैसे उस बच्ची के साथ हुए हादसे को सुनकर! राबिया को न्याय मिलना चाहिए, मगर क्या बुद्धिजीवी वर्ग केवल इसीलिए आवाज़ उठाएगा कि वह दूसरे समुदाय की है और इस बच्ची के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगे, कम से कम निंदा भी नहीं करेंगे कि आरोपी अधिकतर दूसरे समुदाय अर्थात मुस्लिम हैं?
पीड़ितों में इतना अंतर क्यों है? राबिया के भाई की चीखें उसी तरह परेशान कर रही हैं जैसे बीच सड़क पर गोली मारने से पहले निकिता तोमर की चीखें परेशान कर रही थीं और उसे तो केवल इसी लिए मरना पडा था क्योंकि उसने अपना धर्म छोड़ने से इंकार कर दिया था!
मगर यह बहुत दुःख की बात है कि सुदूर सीरिया या यमन की लड़कियों के लिए न जाने कहाँ कहाँ से कविता लिखने वाला बुद्धिजीवी समुदाय अभी यह कहते हुए सामने आ जाएगा कि लड़की की गलती थी आखिर निकली क्यों इतनी रात? मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि इन लड़कियों को उनके जैसी क्रान्तिकारी औरतें ही “माई रोड माई राइट” जैसे अभियान चलाकर भड़काती हैं और नन्ही नन्ही लड़कियों को “माई बॉडी माई चॉइस” का नारा लगवाती हैं, मगर अपनी चौदह साल की बच्ची को न केवल ताले में बंद रखती हैं बल्कि कपडे भी पूरे पहनाकर सुन्दर और सुशील बनाकर बड़े लोगों की महफ़िलों में शो पीस की तरह ले जाती हैं, और अपने उन संस्कारों की नुमाइश लगाती हैं, जिन संस्कारों को आप अपनी किताबों में कोसती हैं।
आपकी बेटी सारे कपड़ों में रहे, रात को आपके साथ चले और आप जो बड़ी बड़ी सोसाईटी में रहती हैं, सुरक्षित रहती हैं, वह “माई रोड, माई राईट” जैसा अभियान चलवाकर उन बच्चियों के दिलों में उस खतरनाक दुनिया का खूबसूरत चित्र बनाएं, जिससे आप अपनी बेटी को दूर रखे हुए हैं!
खैर, हिन्दी क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का दूसरा नाम ही दोगलापन है!
और जिन्होनें बलात्कार किया, उनमें से अधिकतर वही लोग हैं, जो अपनी औरतों को काली चादर में बंद रखते हैं! और पर्दा जरूरी मानते हैं, मगर अनजान लड़की? भी हो, यह चुप्पी हैरान करने वाली है!
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खाली मुसलमन नहीं दो, ईसाई राक्षसी समुदाय के दो कौड़ी के कन्वर्ट सैमुअल और प्रसाद भी है, चिमटे जो मुल्लो से अपनी बेटियो का रेप करवाकर खुद mastrubate करते हैं। कल अंग्रेज़ो के पालतू कुत्ते थे आ ज िइटालियन के, ििििििििि