उच्चतम न्यायालय ने आज बहुचर्चित पेगासस जासूसी मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि “जिन व्यक्तियों के नंबरों की कथित रूप से जासूसी हुई, उन्होंने एफआईआर क्यों दर्ज नहीं कराई?” और साथ ही उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता एमएल शर्मा पर भी काफी तल्ख़ टिप्पणी की। उन्होंने एम एल शर्मा को फटकार लगाते हुए कहा कि न्यायालय केवल अखबार की कटिंग के आधार पर दायर याचिका नहीं सुनेगा।
Bench asks parties to serve copies on the Government of India. Lists the matter next Tuesday.#SupremeCourt #PegasusSpyware
— Live Law (@LiveLawIndia) August 5, 2021
दरअसल पेगासस जासूसी मामले को लेकर पूरा विपक्ष इन दिनों सरकार पर हमलावर है। मीडिया संस्थानों के एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने एक खुलासा पिछले दिनों किया कि इज़रायल का एक सॉफ्टवेयर है पेगासस, जिसके माध्यम से भारत सरकार कई पत्रकारों और चर्चित व्यक्तियों के फोन की जासूसी करा रही है। अब इस पेगासस वाले मामले में यह दावा किया गया कि लगभग 40 पत्रकारों के फ़ोनों की जासूसी की गयी।
इन पत्रकारों में मुख्य नाम वही थे जो सरकार की हर बात पर आलोचना करने के लिए एकदम तैयार रहते हैं। जैसे रोहिणी सिंह- पत्रकार, द वायर, स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी, एसएनएम अब्दी, आउटलुक के पूर्व पत्रकार, परंजॉय गुहा ठाकुरता, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक, एमके वेणु, द वायर के संस्थापक, सिद्धार्थ वरदराजन, द वायर के संस्थापक।
और बाद द प्रिंट में यह भी था कि राहुल गांधी का नाम भी पेगासस घोटाले के अंतर्गत फोन हैंकिंग के निशाने पर रहे व्यक्तियों की सूची में है। राहुल गांधी की प्रशंसा में लिखे गए इस लेख में एक बात महत्वपूर्ण और रोचक थी कि लेख लिखने वाली को भी यह नहीं पता है कि क्या वाकई नरेंद्र मोदी सरकार ने जासूसी करने वाले इस सॉफ्टवेयर के प्रयोग की अनुमति दी है या नहीं।
यह बेहद रोचक और हैरत अंगेज है कि यह पता नहीं कि जासूसी हुई, यह नहीं पता कि सरकार ने सॉफ्टवेयर खरीदा या नहीं या फिर यह भी नहीं पता कि किसने अनुमति दी है, फिर भी राहुल गांधी को एक ऐसा नेता साबित करने का कुप्रयास आरम्भ हो गया, जिसके पास हर समस्या का हल है। एक भ्रामक बात पर कांग्रेस के युवराज की प्रशंसा में इतना बड़ा लेख लिखना, वास्तव में पत्रकारिता की दिशा में एक बहुत ही क्रांतिकारी कदम है। और इसे क्रान्ति की किस परिभाषा में रखा जाएगा, यह नहीं पता!
किसी भी पत्रकार के पास यह प्रमाण नहीं है कि क्या वाकई सरकार ने जासूसी कराई? क्योंकि सरकार इस बात से पहले ही इंकार कर चुकी है, अब मामला न्यायालय में है। न्यायालय ने क्या कहा, यह ध्यान देना आवश्यक है। आज जब उच्चतम न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई हुई तो जस्टिस सूर्य कान्त ने याचिकाकर्ता एम एल शर्मा से कहा कि आपने अखबारों की कटिंग के आधार पर सीबीआई के सामने याचिका दायर की और उसके अगले ही दिन आपने यह याचिका दायर कर दी।
इस पर एम एल शर्मा का कहना था कि उनकी याचिका अख़बारों की कटिंग पर आधारित न होकर, अमेरिका के न्यायालय में एनएसओ द्वारा दायर तथ्यों पर आधारित है।
उसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पहले सिब्बल अपना पक्ष रखेंगे। कपिल सिब्बल ने कहा कि वह एन राम एवं शशि कुमार के लिए उपस्थित हो रहे हैं। और फिर कपिल सिब्बल ने कहा कि पेगासिस एक ऐसी तकनीक है, जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है और यह हमारी हर गतिविधि पर नज़र रखती है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि यदि रिपोर्ट सत्य हैं तो यह बेहद गंभीर मामला है, मगर फिर भी हमारे सामने कुछ प्रश्न हैं। न्यायालय ने यह प्रश्न किये कि यह मामला लगभग दो वर्ष पहले का है। दो वर्ष पहले ही यह रिपोर्ट्स प्रकाश में आई थीं। और उन्होंने कहा कि जो भी सम्माननीय व्यक्ति लिखित याचिकाएं लेकर आए हैं, उनका दावा है कि उनके फोन के साथ छेड़छाड़ हुई।
फिर न्यायालय ने प्रश्न किया कि आप जानते हैं कि टेलीग्राफ अधिनियम के अंतर्गत कई प्रावधान हैं, जिनके अंतर्गत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यही वह चीज़ें हैं, जो हमें परेशान कर रही हैं। न्यायालय ने प्रश्न किया कि क्या केंद्र सरकार से आपने प्रश्न किया, तो उन्होंने इंकार कर दिया। और फिर एम एल शर्मा को भी इस बात के लिए टोका कि याचिका में किसी का नाम क्यों है? एम एल शर्मा की याचिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम था।
हालांकि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को कोई नोटिस नहीं भेजा है, पर मामले पर अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी है।
उच्चतम न्यायालय की इस कार्यवाही से कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं, कि आखिर जिन लोगों ने अपने फोन नंबर पर जासूसी का संदेह व्यक्त किया है उन्होंने कानून का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया? क्यों आईटी अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज नहीं की और क्यों उन्होंने शोर मचाने और लेख लिखने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया?
पेगासस के मामले को लेकर संसद और सड़क दोनों ही जगहों पर शोर हो रहा है, पर कोई भी इस मामले को एक निर्णायक परिणाम पर लेकर जाने के लिए उस प्रक्रिया का पालन करने के लिए तैयार नहीं है, जो वैधानिक है, और जिसका पालन करके ही न्याय प्राप्त हो सकता है।
ऐसे में फिर एक प्रश्न उठता है कि क्या इस शोर का उद्देश्य मात्र संसद ठप्प कर आम जनता के पैसे बर्बाद करना है या फिर एक बार फिर से राहुल गांधी को स्थापित करना है? परन्तु रिपोर्ट न लिखवाना और केवल संसद से लेकर सड़क और न्यायपालिका में जाकर शोर मचाना, एक नितांत ही गैर जिम्मेदार व्यवहार है और भारत का विपक्ष इस मामले पर वास्तव में गैर जिम्मेदार व्यवहार कर रहा है और वास्तविक मुद्दों पर संसद में चर्चा को रोक रहा है! क्या भारत का विपक्ष यह नहीं चाहता कि जनता के वास्तविक मुद्दों पर बात हो, कोविड के कारण जो क्षेत्र रोजगार के अवसर खोते जा रहे हैं, उन पर बातें हों, चर्चा हों, रोजगार के अवसरों पर चर्चा हो, बिना चर्चा के बिल पारित होते जा रहे हैं, उन पर चर्चा हो? आखिर शोर क्यों और समाधान क्यों नहीं? प्रश्न यह भी है और संभवतया न्यायालय का भी यही प्रश्न था कि “आपने रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराई?”
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