“ऐलोपेथी से डायग्नोसिस; आयुर्वेद के अनुसार खान-पान; और फिर योग का अभ्यास”- एनडीटीवी पर अपने इंटरव्यू में बिहार स्कूल ऑफ़ योग, मुंगेर के श्री निरंजनानंद सरस्वती नें विभिन्न चिकित्सा-पद्धति में समन्वय स्थापित कर किस प्रकार योगिक जीवन शैली अपनाते हुए रोग-मुक्त सुखी जीवन प्राप्त किया जा सकता है इसका मन्त्र देते हुए उक्त बात कही। वैसे अब आधुनिक विज्ञान से जुड़े ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो योग के इस महत्व को स्वीकारने लगे हैं और अपने तरीके से कहने भी लगें हैं।
जनवरी २०१५ में मुंबई में आयोजित ‘विज्ञान कांग्रेस’ में जर्मनी-भारत की संयुक्त परियोजना ‘न्यूरोसाइंस आफ योग’ के वैज्ञानिकों नें अपने शोध-पत्र को प्रस्तुत करते हुए ये दावा किया था कि वो दिन अब दूर नहीं जब हम किस रोग में कौनसा योगासन-प्राणायाम किया जाए’ ये दवाई की ही तरह सुझाते हुए योग-चिकत्सकों के साथ-साथ हर पद्धति के डॉक्टरों को देखेंगें।
सच है पिछले कुछ वर्षों में योग पर हुए अनुसंधानों से मानव-स्वास्थ्य के हित में इस धारणा के टूटने का एक बहुत बड़ा काम हुआ है कि योग केवल अध्यात्मिक अवस्था को पाने का माध्यम है। हरिद्वार स्थित रामदेव की पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन की डॉ. शर्ले टेलस का कहना है कि- ‘मानसिक अवसाद से मुक्ति हो या मस्तिष्कीय गतिविधिया जैसे मेमोरी, एकाग्रता वृद्धी व मेमोरी रिकाल की अवस्था को सशक्त करना- सभी में योगाभ्यास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’ और टेलस की ही तरह इसी बात को निरंजनानंद अपने शब्दों में इस प्रकार कहतें हैं-‘ योग से आरोग्य और प्रतिभा का विकास दोनों ही संभव है।’
योग दर्शन के मर्म को और अधिक स्पष्ट करते हुए ईशा योग (कोइम्बतुर) के सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहतें हैं- ‘योगी सुख-भोग के विरुद्ध नहीं होते. वस्तुतः बात केवल इतनी से है कि वे अल्प-सुख की स्थिति पर ही संतोष कर लेना नहीं चाहते। सदैव शांत बने रहना, अतीव आनंद की अवस्था में स्थिर रहना हर मनुष्य के लिए उपलब्ध है। योग का विज्ञान आपको ये अवसर प्रदान करता है।’
आत्मिक शांति के साथ-साथ शारीरिक-मानसिक आरोग्य प्रदान करने की अपनी इन क्षमताओं के कारण से ही आज दुनिया भर के लोग योग की शरण में जाने के लिए उध्द्र्त हुए हैं। अमेरिका से प्रकाशित ‘योग-जर्नल’ के एक सर्वेक्षण के अनुसार पूरे अमेरिका में लगभग पौने दो करोड़ लोग आज योग करने लगे हैं; और हर पांचवां व्यक्ति योग में रुचि रखता है।
योग की इस बढ़ती लोकप्रियता को देख अपने कार्यकाल के दौरान ओबामा ने विशेष रुचि लेते हुए व्हाइटहाउस में योग गार्डन का निर्माण करवाया था, जिसमें ईस्टर के अवसर पर हुए उद्धघाटन में सेकड़ों लोगों नें भाग लिया। अमेरिका में योग किस स्तर को पा चुका है ये इस घटना से महसूस किया जा सकता है।
योग अब वैश्विक आकार लेते हुए नित्य नए आयामों को ग्रहण का रहा है, जिसके अनेक उज्जवल उदाहरण देखे जा सकते है।. पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन नें योग व आयुर्वेद के दो साझेदारी केंद्र स्थापित किये है। साथ ही यूरोपीय देशों के नामी-गिरामी कॉस्मेटिक कंपनीयां व प्लास्टिक सर्जन भी आयर्वेद और योग की शरण लेने लगे हैं।
मेडिकल टूरिज्म आज लोगों को दुनिया भर के देशों कीऔर आकर्षित करने का एक प्रभावी माध्यम बनकर उभरा है। गर्व की बात ये है कि इस क्षेत्र में भारत शीर्ष पांच देशों में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। कहने की जरूरत नहीं ये प्रतिष्ठा हमे अन्य बातों के साथ-साथ प्रमुख रूप से आयुर्वेद, प्राकृतिक-चिकत्सा व योग के हमारे दुर्लभ ज्ञान के कारण से प्राप्त हुई है।
तीन वर्ष पूर्व चीन, जापान, इंडोनेशिया सहित नौ देशों के एक अध्ययन दल का हरिद्वार स्थित पतंजलि योग केंद्र पर आना हुआ। अपने अध्ययन का उनका ये निष्कर्ष था कि- ‘पतंजलि केंद्र के प्रयोगों से आभास होता है कि भारतीय प्राचीन ज्ञान में समाये वैज्ञानिक सूत्रों से दुनिया शीघ्र ही पारिचित होगी।’
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