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Tuesday, April 23, 2024

शब्दों के गलत अनुवाद के आधार पर बनता नैरेटिव

हिन्दू इतिहास के विकृतीकरण में सबसे बड़ी भूमिका अनुवाद की रही है, जिसने एक बार नहीं बार बार अर्थ का अनर्थ किया है। समस्या यह होती है कि व्यापक अर्थों वाला संस्कृत या हिंदी शब्द पूर्णतया संकुचित हो जाता है। आज ऐसे ही एक शब्द पर उदाहरण सहित बात करेंगे और जानेंगे कि कैसे मात्र एक शब्द पूरे श्लोक का अर्थ परिवर्तित कर सकता है और मात्र श्लोक का ही नहीं बल्कि वह उसके बाद लिखे जाने वाले साहित्य का आधार भी बदल देता है।

क्योंकि संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण अंग्रेजी के शब्द को ही सन्दर्भ रूप में ले लिया जाता है। यज्ञ का अर्थ अंग्रेजी में sacrifice कर दिया गया है। हालांकि कई स्थानों पर yajna का प्रयोग होता है, परन्तु यदि यज्ञ का अर्थ sacrifice लिया जाता है तो वह उस श्लोक का अर्थ ही नहीं परिवर्तित करता है, बल्कि जहाँ जहाँ पर यज्ञ शब्द आएगा, वहां वहां उसका अर्थ बदल जाएगा।

मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में उत्पत्ति वाले श्लोकों में एक श्लोक है में वेदों की उत्पत्ति का उल्लेख है, उससे इस व्याख्या को और बेहतर समझ सकते हैं: (संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी अनुवाद का विश्लेषण)

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् ।

दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थं ऋग्यजुःसामलक्षणम् (मन्त्र 23)

इसका हिंदी अनुवाद प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र कुमार ने इस प्रकार किया है

उस परमात्मा ने (यज्ञसिद्धयर्थम्) जगत् में समस्त धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि व्यवहारों की सिद्धि के लिए अथवा जगत् की सिद्धि अर्थात् जगत् के समस्त रूपों के ज्ञान के लिए (यज्ञे जगति प्राप्तव्या सिद्धिः यज्ञसिद्धिः, अथवा यज्ञस्य सिद्धिः यज्ञसिद्धिः) (अग्नि – वायु – रविभ्यः तु) अग्नि, वायु और रवि से (ऋग्यजुः सामलक्षणं त्रयं सनातनं ब्रह्म) ऋग् – ज्ञान, यजुः – कर्म , साम – उपासना रूप त्रिविध ज्ञान वाले नित्य वेदों को (दुदोह) दुहकर प्रकट किया ।

बहलर ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया है:

But from fire, wind, and the sun he drew forth the threefold eternal Veda, called Rik, Yagus, and Saman, for the due performance of the sacrifice.

और विलियम जोन्स ने किया है:

From fire, from air and from the sun he milked out as it were there three primordial Vedas, name Rigk, Yajush and Saman, for the due performance of Sacrifice.

इसका अर्थ जहाँ हिंदी में पूर्णतया समझ में आ रहा है, वहीं अंग्रेजी में यह थोडा सा भिन्न हो रहा है, और वह एक शब्द यज्ञ के sacrifice के कारण आ रहा है। यह एकदम स्पष्ट है कि यज्ञ सिद्ध अर्थम अर्थात यज्ञ की सिद्धि अर्थात समस्त जगत के ज्ञान के लिए अग्नि, वायु एवं रवि से ऋग् – ज्ञान, यजुः – कर्म , साम – उपासना रूप त्रिविध ज्ञान वाले नित्य वेदों को (दुदोह) दुहकर प्रकट किया।

क्या यज्ञ का अर्थ sacrifice होगा? पाणिनि के अष्टाध्यायी में यज्ञ के विषय में कहा गया है कि

यज् धातु से नङ प्रत्यय जोड़कर यज्ञ शब्द की उत्पत्ति हुई है। पाणिनि अष्टाध्यायी-प्रवचनम में सुदर्शनदेव आचार्य इसकी व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि

कर्ता से भिन्न कारक में और भाव अर्थ में विद्यमान यज, याच, यत, विच्छ, प्रच्छ, रक्ष धातुओं से परे नङ् प्रत्यय होता है।

अर्थात यज के साथ नङ् प्रत्यय लगने पर बनता है यज्ञ अर्थात देव पूजा, संगतिकरण और दान करना

https://archive.org/details/AshtadhyayiBhashyaCollection/031PaniniyaAshtadhyayiPravachanam_part_02/page/n375/mode/2up

इसके अतिरिक्त भी यज्ञ की कई और व्याख्याएं हैं जैसे ऐतेरेय ब्राह्मण में यज्ञ के विषय में लिखा है

“यज्ञौ वै सुतर्मा नौ:”

अर्थात यज्ञ सरलता से भवसागर पार कराने वाली नौका है!

ऋग्वेद में लिखा है

इच्छन्ति देवा: सुन्वनतम (ऋग्वेद 8.2.18)

अर्थात यज्ञ करने वालों से विद्वान् लोग प्रीति रखते हैं

ऋग्वेद में ही आगे लिखा है

यज्ञो वितन्तसाय्य: (ऋग्वेद 8.68.11)

यज्ञ सवर्त्र सुख फैलाने वाला है

मनुस्मृति में भी विश्व शांति एवं मनुष्य तथा समाज के उत्थान के लिए पञ्चमहायज्ञ बताए हैं:

ऋषियज्ञं देवयज्ञं भूतयज्ञं च सर्वदा

नृयज्ञं पितृयज्ञं च यथाशक्ति न हापयेत (4-21 मनुस्मृति)

(अर्थात ऋषियज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, नृयज्ञ, भूतयज्ञ [बलिवैश्वदेव यज्ञ] का पालन दैनिक रूप से करना चाहिए)

और अब आते हैं sacrifice पर?  

यज्ञ का अर्थ sacrifice नहीं होता है, sacrifice का अर्थ मूलत: बलि से लिया जाता है, या त्याग से, जबकि यज्ञ का अर्थ कहीं व्यापक है एवं यहाँ पर यज्ञ सिद्धि दिया गया है। इसलिए जब यज्ञ के लिए sacrifice शब्द का प्रयोग किया गया तो इस पूरे के पूरे मन्त्र का अर्थ विकृत हुआ एवं यही नहीं जो भी उसके आधार पर हिंदी अनुवाद किए गए, वह पूर्णतया विकृत प्राप्त हुए।

sacrifice शब्द के मूल में जाते हैं तो इसका अर्थ britannica में इस प्रकार मिलता है कि

The term sacrifice derives from the Latin sacrificium, which is a combination of the words sacer, meaning something set apart from the secular or profane for the use of supernatural powers, and facere, meaning “to make.” The term has acquired a popular and frequently secular use to describe some sort of renunciation or giving up of something valuable in order that something more valuable might be obtained; e.g., parents make sacrifices for their children, one sacrifices a limb for one’s country. But the original use of the term was peculiarly religious, referring to a cultic act in which objects were set apart or consecrated and offered to a god or some other supernatural power; thus, sacrifice should be understood within a religious, cultic context.

अर्थात अपनी प्राणप्रिय वस्तु का परित्याग करना जिसके परित्याग करने से हम कुछ और बहुमूल्य वस्तु पा सकें!

जबकि यज्ञ सर्वथा भिन्न शब्द है। यज्ञ मात्र sacrifice न होकर सृष्टि प्रक्रिया है। यज्ञ का अर्थ है प्राणरूप देवताओं के पूजा करना अर्थात उनका प्रसादन करना, दो पदार्थों को मिलाकर नवनिर्माण भी यज्ञ है।

तो यह एक बार पुन: स्पष्ट है कि धार्मिक ग्रंथों के अनुवाद में यदि शब्दों का निकटतम समतुल्य शब्द प्राप्त नहीं होता है तो वह उसी शब्द को मूल रूप में लें लें, अन्यथा उस अनुवाद से जब स्रोत लिया जाएगा तो अत्यंत ही विकृत एवं कुरूप कृति का सृजन होगा। त्तथा उस अनुवाद पर आधारित विमर्श भी स्वस्थ नहीं होंगे


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