धर्मध्वज राजा जनक यह सुनकर स्तब्ध थे। मिथिलानरेश जनक एक स्त्री की बात सुनकर गहन आश्चर्य में डूब गए थे। मिथिलानरेश जनक के विषय में प्रसिद्ध था कि उन्होंने वेदों में, मोक्षशस्त्र में तथा दंडनीति में दक्षता प्राप्त की थी। वह इन्द्रियों को एकाग्र करके इस धरा पर शासन करते थे। वह नरेश्वर के नाम से प्रसिद्ध थे एवं समस्त जगत के पुरुष उन दिनों उन्हीं के जैसा होने का स्वप्न देखा करते थे।
“परन्तु उन्हें यह बोध किसने कराया?” मिथिला नरेश के विषय में सुविचार सुनने के उपरान्त पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने कुरुकुल राजर्षिशिरोमणि भीष्म से पूछा।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, एवं अब पांडव मोक्ष के प्रति ज्ञान प्राप्त करने के लिए भीष्म के पास ज्ञान प्राप्त करने आ रहे थे। इसी क्रम में जब युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा कि मोक्ष तत्व को गृहस्थ आश्रम का त्याग किए बिना किस पुरुष ने प्राप्त किया है।
भीष्म ने युधिष्ठिर की जिज्ञासा का समाधान करते हुए मिथिलानरेश जनक के विषय में बताया। परन्तु मिथिलानरेश की इस प्रसिद्धि की परीक्षा करने का निश्चय किया सुलभा ने।
“सुलभा? यह तो स्त्री प्रतीत होती हैं?” युधिष्ठिर ने प्रश्न किया
“हाँ, पुत्र! वह युग योग का युग था। सुलभा एक सन्यासिनी थी। वह योग धर्म के अनुष्ठान द्वारा सिद्धि प्राप्त कर अकेले ही इस पृथ्वी पर ज्ञान हेतु विचरण करती थी। उसने विवाह नहीं किया था। जनक संग विमर्श में उसने स्वीकार किया कि उसे स्वयं के योग्य इस धरा पर कोई नहीं मिला, इसलिए उसने अविवाहित रहकर ही ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय किया।”
“फिर क्या हुआ? अंतत: ऋषिका श्रेष्ठ सुलभा ने किस प्रकार नरेश्वर को पराजित किया?”
“प्रश्न जय एवं पराजय से कहीं अधिक है युधिष्ठिर! शास्त्रार्थ में जय या पराजय से महत्वपूर्ण होता है तथ्यों को स्थापित करना।”
भीष्म ने पुन: कथा सुनानी आरम्भ की कि किस प्रकार जनक की परीक्षा लेने जब सुलभा एक रमणीय रूप में पहुँची तो जनक ने पहले तो उनका स्वागत किया एवं उनका अभिप्राय जानने के उपरान्त उन पर न केवल प्रश्न किए अपितु उनपर दोषारोपण भी किया। सुलभा के समक्ष जनक ने मोक्ष धर्म का वर्णन किया एवं कहा कि सुकुमारता, सौन्दर्य, मनोहर शरीर तथा यौवनावस्था सभी योग के विरुद्ध हैं, फिर भी मैं चकित हूँ कि अपमे इन सब गुणों के साथ योग एवं नियम भी उपस्थित हैं, फिर यह कैसे संभव हुआ? आपने मेरे शरीर पर बलात अधिकार जमाया है और आप मेरी परीक्षा ले रही हैं, मैं क्या जानूं कि आप यह किसके इशारे पर कर रही हैं?”
सुलभा ने स्वयं पर सभी दोषारोपणों को अत्यंत धैर्य से सुना और फिर ज्ञानी जनक को उत्तर दिए।
भीष्म ने कहा हे युधिष्ठिर यह ज्ञानियों का प्रथम लक्षण होता है कि वह स्वयं पर आरोपित होने वाले सभी दोषों को धैर्य पूर्वक सुने, क्योंकि यदि आप में सुनने का साहस नहीं होता तो आप उत्तर कैसे देंगे? आप अपने तर्क कैसे तैयार करेंगे? सुलभा एक ज्ञानी स्त्री थी। उसे यह ज्ञात था कि किस प्रकार इनका उत्तर करना है। एवं उसने फिर जनक को अत्यंत ही मधुर शब्दों में उत्तर देना आरम्भ किया।
सुलभा ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कि वह कौन है कहा कि जिस प्रकार लाख और धूल के साथ पानी की बूँदें मिलकर एक हो जाती हैं तो उसी प्रकार जगत में प्राणियों का जन्म भी कई तत्वों के मेल से ही होता है। यह कहकर ये युधिष्ठिर सुलभा ने जनक के उस अपरिपक्व प्रश्न का उत्तर दिया कि वह कौन है। सुलभा ने इन्द्रियों एवं चेतना की प्रकृति के विषय में जनक को उत्तर दिए। उसने कहा कि शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध तथा पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ आत्मा से पृथक तो हैं परन्तु काष्ठ में सम्मिलित लाख के जैसे आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं। इनमें चेतना नहीं है। इसके साथ अहंकार के विषय में भी सुलभा ने बताया,
अंत में सुलभा ने जनक के समक्ष यह स्थापित किया कि मोक्ष क्या है एवं मोक्ष प्राप्त करने का अहंकार क्या है? वह कहती हैं कि हे राजन जिस प्रकार आत्मा को इससे मुक्त होना चाहिए कि यह वस्तु मेरी या नहीं, उसी प्रकार आत्मा को इससे भी मुक्त होना चाहिए कि तुम कौन हो और कहाँ से आई हो। आपके लिए इतना पर्याप्त होना चाहिए कि आपको प्रश्नों के उत्तर देने हैं।”
भीष्म युधिष्ठिर को मोक्ष के प्रश्नों के माध्यम से एक स्त्री की कहानी भी सुना रहे थे जिसने उस समय के सबसे महान राजा को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। परन्तु जिस प्रकार भीष्म ने कहा कि शास्त्रार्थ में जय या पराजय नहीं तथ्यों की स्थापना महत्वपूर्ण होती है, यही इतिहास कहता है कि स्त्री ज्ञानी थी, स्वतंत्र थी, चेतन थी।
सुलभा ने जो कहा वह ग्रन्थों के पन्नों में है, परन्तु क्या यह हमारी स्मृति में भी है? या हम पश्चिमी फेमिनिज्म के चलते सब भूल चुके हैं?
(महाभारत में मोक्ष पर्व में वर्णित प्रसंगानुसार)
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