मुग़ल बादशाह औरंगजेब की कैद से शिवाजी छूटकर तो आ गए थे, फिर भी कुछ कमी प्रतीत होती थी। आगरा से उनके पलायन का समाचार भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की ऐसी घटना थी जो विश्व में कभी न ही देखी गयी थी और न ही सुनी! भारत में व्यापार करने वाली यूरोपीय शक्तियाँ भी हतप्रभ थीं।
फिर भी, कुछ ऐसा था जिसकी कमी का अनुभव सभी को होता था। सूरत पर दोबारा धावा बोलकर उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति तो सुदृढ़ कर दी थी, फिर भी स्वराज्य और सुराज दोनों की ही स्थापना औपचारिक रूप से होनी थी। सैन्य अभियानों में तेजी लाई गयी और शिवाजी सफल होते गए। शिवाजी: द ग्रांड रेबेल में डेनिस किन्कैड लिखते हैं “पुर्तगाली भी अपनी संपत्तियों के लिए शिवाजी से भयभीत हो गए थे।”
उस समय एक फ्रांसीसी फिजिशियन गोवा की सैर पर आए थे डॉ. डेलन। इसी पुस्तक में डेनिस ने उनके हवाले से लिखा है “शिवाजी सबसे संभावनाशील राजकुमार हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में अपने दुश्मनों के बावजूद अपनी सत्ता स्थापित की है, उन्होंने अपने आपको ऐसा बनाया है कि जिससे उनके पड़ोसी उनसे भय खाते हैं और इसी कारण गोवा शहर में उनका आतंक है। उनकी प्रजा वैसे तो देशी है, मगर वह हर धर्म के प्रति सहिष्णु हैं।”
शिवाजी के आगरा की कैद से स्वतंत्र होकर वापस दक्कन लौटने और दुर्ग पर अधिकार स्थापित करने के कारण मुग़ल सेना मानसिक रूप से पराजित हो रही थी। और दक्कन में जो मुग़ल अधिकारी थे, वह यह जानते थे कि वह शिवाजी से पराजित हो जाएंगे तो वह खुद को अपने महलों में ही कैद रखते थे और आरामदायक जीवन जीते थे।”
शिवाजी ने मुग़ल सेना की नीति को केवल आत्मरक्षा में परिवर्तित कर दिया था। और अब समय था शिवाजी के माध्यम से हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने का। वह काल जब हर ओर मुगलों की बादशाहत का ही शोर था, उस समय राज्याभिषेक होना था शिवाजी का! मुग़ल अब उस क्षेत्र में रह नहीं गए थे और अब वहां पर गूंजना था हिन्दू स्वराज्य का नाद!
पूरे भारत से ग्यारह हज़ार पुजारी इस राज्याभिषेक में भाग लेने आए थे। बनारस से गागा भट्ट (गग भट्ट), जो उस समय सबसे प्रकांड पंडित थे, वह विशेष रूप से आए थे। एक माह तक राज्याभिषेक का उत्सव चला था।
शिवाजी प्रतापगढ़ में अपनी कुलदेवी के मंदिर गए, और स्वर्ण छत्र उन्हें चढ़ाया। 6 जून से एक सप्ताह पहले से पुजारियों ने यज्ञ करना आरम्भ कर दिया था, उपवास आरम्भ हो गए थे और प्रार्थनाएं आरम्भ हो गयी थीं।
वह घड़ी थी ही ऐसी। वह घड़ी एक ऐसे स्वप्न के साकार होने की थी, जो जीजाबाई के नेत्रों ने देखा था और जिसे यथार्थ बनाया शिवाजी ने! 6 जून 1674, एक ऐसी तिथि जब एक नई आस का जन्म हुआ। जब दक्कन में भगवा लहराया! श्वेत चोगे में पुष्पों से सुसज्जित शिवाजी उस दिन के बाद से छत्रपति शिवाजी के नाम से जाने गए। स्वर्ण का रत्न जटित मुकुट उनकी प्रतीक्षा में था। वह सिंहासन पर बैठे तथा नगर में हर बन्दूक जैसे उन्हें उन्हें प्रणाम करने लगी। यह हिन्दू गौरव का नाद था जो दूर दूर तक फ़ैल रहा था।
6 जून 1674 जैसे ही गग भट्ट ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्वर्ण, रत्न, मोती जटित मुकुट शिवाजी के शीश पर रखा, इतिहास में वह तिथि ऐसी तिथि बन गयी जिस तिथि को चहुँओर से छत्रपति शिवाजी की गूँज गूंजने लगी। सैनिक प्रसन्न थे तो उपस्थित जन समुदाय हर्ष से उल्लासित होकर नारे लगा रहा था।
शिवाजी का राज्याभिषेक भारत के इतिहास की अनुपम घटना है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिवाजी ने अपने राज्य की स्थापना मुगलों का विरोध करते हुए और उस समय के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति का विरोध करते हुए स्थापित की थी। वह भी तब जब उनके पिता द्वारा भी उन्हें अधिक सहयोग नहीं प्राप्त हुआ था।
शिवाजी का राज्याभिषेक हिन्दुओं के लिए कई प्रकार से महत्वपूर्ण है! पहले तो यह हिन्दू गौरव की तिथि है तथा दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है वामपंथी फेमिनिज्म की काट करने के लिए। क्योंकि हिन्दू राज्य की स्थापना का स्वप्न जीजाबाई का स्वप्न था, एवं उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी को बचपन से ही प्रभु श्री राम, प्रभु श्री कृष्ण, की कहानियाँ सुनानी आरम्भ कर दी थीं। वह उन्हें प्रेरक कथाएँ सुनाती थीं, वह नैतिक शिक्षा प्रदान करती थीं, जिस नैतिक शिक्षा को आज सेक्युलर सरकारें केवल हिन्दू धर्म की शिक्षाएं बताकर बच्चों को स्कूल में नहीं पढ़ाने देती हैं।
6 जून 1674 जब शिवाजी छत्रपति शिवाजी बने उस दिन वह हाथी पर सवार होकर निकले और जनता अपने नेत्रों से जीजाबाई के स्वप्न को साकार होते देख रही थी, पूरे भारत से हज़ारों हिन्दू मात्र इसी क्षण का दर्शन करने के लिए आए थे।
भगवा अपने परम गौरव के साथ लहरा रहा था! 6 जून 1674 को देखने के लिए जैसे जीजाबाई जीवित थीं, फिर जाना था उन्हें परमधाम! एक गौरव जागृत कर, उद्देश्य पूरा कर!
Featured image: Zeenews
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