‘ये मानकर चलते हुए कि भारत की ही तरह सर्वश्रेष्ठ स्कूल ‘कान्वेंट स्कूल’ होते हैं, मेरे माता-पिता नें निकट के कैथोलिक स्कूल में भर्ती करा दिया, जहां में प्रथम अल्पसंख्यकों में से एक था l यहाँ मेरे शिक्षकों में से एक मुझे ‘पगान’ कहकर बुलाया करते थेl’ – अमेरिका 1980 के दशक के दौर में अपने विद्यार्थी जीवन का अनुभव साझा करते हुए ये कहना है सुकेतु मेहता का अपनी किताब, ‘दिस लैंड इस अवर लैंड- ऐन इमिग्रेंट्स मैनिफेस्टो’ में l
ईसाई मत में अपमान -सूचक ‘पगान’ के रूप में उनको संबोधित किया जाता है जो मूर्ती पूजक, प्रकृति-पूजक, बहु-देवता वादी होते है; या संक्षिप्त में असभ्य और घृणा के योग्य (Deutronomy 12: 30-31) l इस विश्वास के कारण चलने वाले छल-कपट, संघर्षों, अत्याचारों के किस्से-कहानियों से इतिहास भरा पड़ा l
भारत की ही बात करें तो यहाँ अंग्रेजी-शिक्षा पद्धति तैयार करने की जिम्मेदारी जब मैकाले को मिली तब उसने पूरे भरोसे के साथ ये दावा किया था कि- ‘जरा सी पश्चिमी-शिक्षा के प्रचार-प्रसार से बंगाल मूर्ती-पूजकों से विहीन हो जायेगा l’ और इस आधार पर भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव १८१३ में पड़ी, और कलकत्ता [कोलकोता] में बिशप कॉलेज और डफ कॉलेज अस्तित्व में आये l अगले ७०-८० वर्षों में इसका प्रभाव क्या पड़ा, इसको लेकर विवेकानंद कहते है- ‘बच्चा जब भी पढ़ने को [ईसाई मिशन] स्कूल भेजा जाता है, पहली बात वो ये सीखता है कि उसका बाप बेवकूफ है l दूसरी बात ये कि उसका दादा दीवाना है, तीसरी बात ये कि उसके सभी गुरु पाखंडी है और चौथी ये कि सारे के सारे धर्म-ग्रन्थ झूठे और बेकार है l’
ध्यान रहे, आज की स्थिति में ब्रिटेन के शिक्षा सुधार अधिनियम 1988 तथा नयी शिक्षा नीति की एक परिनियमावली के अनुसार जितने भी राजकीय विद्यालय हैं उनमें धार्मिक शिक्षा तथा सामूहिक प्रार्थना पूर्ण रूप से ईसाई धर्म के अनुसार अनिवार्य कर दिया गया है l दूसरी और 7,390 स्वयंसेवी विद्यालय रोमन कैथोलिक, यहूदी व मेथोडिस्ट चर्च द्वारा पहले से ही संचालित हो रहे हैं l ये आंकड़े 2010 के पहले के हैं l शिक्षा को लेकर धर्म के प्रति कितना आग्रह है ये इन तथ्यों से खूब लगाया जा सकता है l ईसाई प्रभाव के खतरे को भांपकर ब्रिटेन, यूरोप व अमेरिका में रह रहे सिख- समाज नें कदम उठाना शुरू कर दिए हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे l
चर्च का ये प्रभाव कभी कितना गहरा रहा होगा इसका अंदाज़ा आज की स्थति में लगाना कठिन ही नहीं असम्भव है l ‘पृथ्वी सूर्य की प्रदक्षिणा करती है’ ये कहने पर गैलीलियो के साथ ; ‘ब्रह्माण्ड के भू-केंद्रिता (Geo-centrism)’ को अमान्य कर देने पर गियरडानों ब्रूनों और ‘गणित की शिक्षा पुरुष विद्यार्थी को देने पर’ महिला गणितज्ञ हिपशिया के साथ क्या किया गया इसको दोहराने की जरूरत नहीं l 1840 में जब पहली बार ऐनस्थिसिया का प्रसव के समय प्रयोग किया गया तो चर्च नें कड़ा विरोध किया l क्यूंकि बाइबिल के अनुसार ईव (मनुष्य की जननी) नें इश्वर की आज्ञा की अवहेलना करी, इसलिए दंडस्वरूप कहा गया – ‘पीढ़ा को उठाते हुए ही वह अपने बच्चों को जन्म देगी l’ वो तो 1853 में महारानी विक्टोरिया ने प्रसव के लिए जब इसका प्रयोग किया तो मामला शांत हुआ, क्यूंकि चर्च के पास महारानी को दण्डित करने का साहस नहीं था l
सुकेतु मेहता के साथ उनके विद्यार्थी- जीवन में जो घटा उसकी पृष्ठ भूमि में कुछ और नहीं बल्कि वही काल-बाह्म्य अंधविश्वास है जिससे आज भी चर्च प्रेरित संस्थाएं मुक्त नहीं हो पायी हैं l
नोट- उपरोक्त तथ्यों के लिए देखें ‘ हिंदू प्रतिभा के दर्शन’ , रवि कुमार; ‘ संस्कृति के चार अध्याय’ , राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर l