spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
24.7 C
Sringeri
Tuesday, October 8, 2024

जुबैर को मिली जमानत, लुटियन की जीत, भारत पुन: निराश! लोगों की टूटी आस, बोले “यह कैसा न्याय?”

आल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को अंतत: कल उच्चतम न्यायालय द्वारा जमानत मिल गयी और साथ ही उत्तर प्रदेश द्वारा गठित एसआईटी भी भंग कर दी गयी। जस्टिस चन्द्रचूड की बेंच ने स्पष्ट कहा कि ऐसा कोई भी कारण नहीं दिखाई देता, जिससे याचिकाकर्ता को लगातार हिरासत में रखा जाए!”

जब से नुपुर शर्मा के प्रति उच्चतम न्यायालय ने “नर्म रुख” अपनाया था, तभी से सोशल मीडिया पर आम लोग यह कहने लगे थे कि दरअसल नुपुर शर्मा के प्रति अपनाई जा रही नम्रता कहीं जुबैर को आजादी देने की भूमिका तो नहीं है? इस्कॉन के उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता राधारमण दास ने यह कहा था कि नुपुर शर्मा को दी गयी राहत में कहीं न कहीं जुबैर को दी जाने वाली राहत सम्मिलित है:

मोहम्मद जुबैर जिसके भड़काऊ ट्वीट्स ने पूरे भारत में आग लगा दी एवं जिसके भड़काऊ ट्वीट के चलते नुपुर शर्मा, नवीन जिंदल जहाँ अपने जान को कैसे न कैसे बचा रहे हैं, बल्कि साथ ही उदयपुर में कन्हैया लाल एवं उमेश कोल्हे की हत्या हो चुकी है, न जाने कितने लोगों पर हिंसक जानलेवा हमले हो चुके हैं और न जाने कितने लोग अभी भी डरकर रह रहे हैं, कि कहीं उनपर नुपुर शर्मा को समर्थन देने के कारण हमले न हो जाएं!

सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि जुबैर के भड़काऊ ट्वीट्स का इस्तेमाल जुबैर की जुमे की नमाज के बाद मुसलमानों को भड़काने के लिए कैसे किया गया। उन्होंने कहा, ’26 मई, 2022 को टीवी डिबेट के बाद, 5 और 6 जून को, उन्होंने दिखाया है कि दुनिया भर के लोग उनका समर्थन कर रहे हैं, आप विरोध के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं। ये ट्वीट शुक्रवार की नमाज के बाद पैम्फलेट के रूप में प्रसारित किए गए… 6 जून के ट्वीट थे जिनमें कहा गया था कि लोग विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं। उनके ट्वीट्स को पर्चे के रूप में प्रसारित किया गया, और इसके तुरंत बाद, लोग नमाज से बाहर आए और भारी हिंसा हुई।”

फिर भी दुर्भाग्य यह है कि उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि वह कैसे किसी “पत्रकार” को ट्वीट करने से रोक सकते हैं? क्या पत्रकार होने का अर्थ संविधान से ऊपर होता है? क्या पत्रकार होने का अर्थ अपना व्यक्तिगत मत प्रसार करना होता है? उत्तर प्रदेश की ओर से बहस करते हुए गरिमा प्रसाद ने कहा था कि “जुबैर” पत्रकार नहीं है, बल्कि वह एक फैक्ट चेकर है और वह जहर फैलाता है और उसे हर ट्वीट के पैसे मिलते हैं। उसने यह स्वीकार किया है कि जब भी वह कोई भड़काऊ ट्वीट करता है तो उसे पैसे मिलते हैं और उसने खुद स्वीकार किया है कि 12 लाख उसका मासिक कोटा है!

फिर भी यह दुर्भाग्य है कि माननीय न्यायालय ने इन सब तर्कों को नहीं सुना और न ही उस हिंसा को देखा जो जुबैर के जहरीले ट्वीट्स के कारण फ़ैली। इसी बात पर इंडिया टुडे का शिव अरूर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उच्चतम न्यायालय के इस दोहरे रवैये को लेकर मात्र तुलना की गयी है। कि क्या नुपुर शर्मा को लेकर उच्चतम न्यायालय ने कहा और क्या मोहम्मद जुबैर को लेकर कहा!

इसी बात को लेकर कह रहे हैं कि हम दो भारत में रहते हैं, जहाँ पर दो उच्चतम न्यायालय है, एक वह है जो स्वतंत्र है और देश के क़ानून के अनुसार ही सभी को जज करते हैं और दूसरा जो इकोसिस्टम के अनुसार चलते हैं

राधारमण दास ने फिर से एक ट्वीट के माध्यम से कहा कि उच्चतम न्यायालय हिन्दुओं को मोहम्मद जुबैर के माध्यम से औकात दिखाना चाहता था।

उन्होंने उसे उन तमाम अपराधों के लिए जमानत दे दी है, जो वह भविष्य में करेगा, यह आपके साथ विदेशी फंड वाले वकील होने की ताकत है

लोग कह रहे हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने मोहम्मद जुबैर के सभी मामलों को उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया है, क्योंकि उन्हें पता है कि दिल्ली पुलिस जिह्दियों और दंगाइयों से निपटने में विफल रही है और जुबैर केवल दिल्ली में ही बचाया जा सकता है

ऐसा नहीं है कि माननीय न्यायालय के इस निर्णय से हिन्दुओं का यही कथित शिक्षित या कहें प्रभावशाली वर्ग ही आहत है, बल्कि इसे हर वर्ग कह रहा है कि हिन्दुओं के प्रति नफरत फ़ैलाने वाले को आखिर न्यायालय छोड़ कैसे सकता है?

लोगों ने नम्बी नारायण जी का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के शीर्ष वैज्ञानिक दशकों तक जेल में सड़ते रहे, और मुहम्मद जुबैर जो मासूम हिन्दुओं के साथ हाल ही में हुई हिंसा के लिए उत्तरदायी है, उसे छोड़ दिया गया है।

यह अत्यंत हैरानी एवं क्षोभ में भरने वाली बात है कि मोहम्मद जुबैर को वह सब आजादी दे दी गयी, जिसे नुपुर शर्मा को देने से इंकार कर दिया गया था। क्या पत्रकार होने का अर्थ उस धर्म के प्रति घृणा फैलाना होता है जिसे वह मानता नहीं है? क्या फैक्ट चेकर होने का अर्थ यह होता है कि काट छांट कर अपने एजेंडे के अनुसार इस प्रकार से हिन्दू धर्म के नेताओं की वीडियो साझा कि जाए, जिससे मजहब विशेष के लोग भड़कें और फिर हिन्दुओं पर हमले हों?

इससे प्रभाव हिन्दुओं पर ही नहीं पड़ रहा है, बल्कि मुस्लिम जो ऐसी भड़काऊ सामग्री के प्रभाव में आकर गलत कदम उठाते हैं, उनका और उनके परिवार का जीवन भी बर्बाद होता ही है, साथ ही समाज में जो दूरियां बढ़ती हैं वह अलग!

क्या माननीय न्यायालय उसके ट्वीट के चलते फ़ैली हिंसा के बाद उत्पन्न सामाजिक विद्वेष के वातावरण को समझने में विफल रहे हैं? यह प्रश्न इसलिए भी उठता है कि क्योंकि जांच के दौरान पुलिस ने यह पाया था कि जुबैर को पकिस्तान और सीरिया तक से दान मिला था, जो एफसीआरए का इसलिए उल्लंघन है क्योंकि आल्टन्यूज़ के पास एफसीआरए का लाइसेंस नहीं है और साथ ही पाकिस्तान से यदि कोई दान आएगा तो वह भारत में समरसता के लिए नहीं होगा, बल्कि किसी और कारण के लिए ही होगा।

फिर भी उसकी जहरीले ट्वीट्स पर रोक के लिए माननीय न्यायालय ने कोई निर्णय नहीं दिया, बल्कि यह कहा कि हम कैसे किसी पत्रकार को ट्वीट करने से रोक सकते हैं? प्रश्न उठते ही हैं कि क्या कथित पत्रकार, जो स्वयं को पत्रकार मानता ही नहीं है, और जो एक निर्धारित मानसिकता के चलते ही ट्वीट ही नहीं करता है बल्कि साथ ही उन्हें भड़काऊ भी बनाता है, और देश में अशांति फैलाने के लिए जमीन तैयार करता है, क्या उसे पत्रकार होने के नाते यह सब किए जाने की छूट दी जा सकती है? यह सभी प्रश्न आम जनता पूछ रही है!

तभी लोग आहत है, लुटियन जश्न मना रहा है, तो भारत अपने साथ हुए इस अन्याय पर रो रहा है, यह अन्याय सहज अन्याय नहीं है! यह अभिव्यक्ति की आजादी से सम्बंधित है!

अभिव्यक्ति की असीमित आजादी!

मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए न्यायायलय की बेंच ने कहा कि जुबैर को लगातार कस्टडी में रखने का कोई कारण नहीं है और उन्होंने सारी एफआईआर एक साथ करके उत्तरप्रदेश से दिल्ली में स्थानांतरित कर दीं।

परन्तु जब उत्तर प्रदेश की ओर से न्यायायलय के संज्ञान में यह लाया गया कि न्यायालय ने पहले ही यह निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता ट्वीट नहीं करेगा तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह कहा कि यह तो ऐसा ही हुआ कि किसी वकील से कहा जाएगा कि वह बहस न करे? हम एक पत्रकार से कैसे कह सकते हैं कि वह लिखे नहीं? और जब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यह अनुरोध किया गया कि न्यायालय यह भी शर्त रखे कि वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा तो चंद्रचूड़ जी ने उत्तर दिया कि “अगर वह कानून के विरुद्ध कोई ट्वीट करता है तो वह जबाव देह होता और हम कैसे यह आदेश दे सकते हैं कि कोई बोलेगा नहीं! जो भी सबूत है वह सार्वजनिक हैं, हम यह नहीं कह सकते कि वह ट्वीट नहीं करेगा?”

यह भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि जुबैर पर यह भी आरोप थे कि उसने सबूतों को नष्ट करने का प्रयास किया था।

लोग प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की इतनी असीमित आजादी क्यों और हिन्दुओं के साथ ही क्यों?

केतकी चिताले जैसे न जाने कितने दिन जेल में बिना कारण के रहे

अभिव्यक्ति की आजादी का नारा लगाने वाले उन तमाम नामों को भूल जाते हैं, जिन्हें मात्र राजनीतिक व्यक्ति का विरोध करने के नाम पर एक दो नहीं बल्कि पूरे एक महीने तक जेल में रहना पड़ा। न ही मीडिया में उनकी सुनवाई थी और न ही उस विशेष वर्ग में, जो अभी जुबैर को लेकर सक्रिय हो गया था।

केतकी चिताले से लेकर नुपुर शर्मा तक इस सीमित चुप्पी के कई शिकार हैं। यहाँ तक कि कथित रूप से जो बुल्ली बाई और सुल्ली डील एप बनाए गए थे, जो बेहद बचकाने थे और जिन्हें आक्रोश की संज्ञा दी जा सकती थी, और जिनके कारण कोई भी वास्तविक जगत में नुकसान नहीं हुआ था, उनके लिए भी जिन हिन्दू युवकों को हिरासत में लिया गया, उन्हें बहुत मुश्किल से जमानत मिल सकी थी।

यहाँ तक कि एक 19 वर्षीय साद अशफाक अंसारी को भी इस बात पर पीटा गया था और महाराष्ट्र पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया था, क्योंकि कथित रूप से नुपुर शर्मा का समर्थन था, आज 38 दिनों बाद भी संभवतया उनकी रिहाई नहीं हो सकी है:

वहीं नुपुर शर्मा के मामले में तो माननीय न्यायालय ने उन्हें ही देश के जलने का दोषी ठहरा दिया था। नुपुर शर्मा को जो फटकार लगाई थी, उसका समर्थन तालिबान तक ने कर किया था।

उसके उपरान्त जिस प्रकार से देश भर में असंतोष फैला और जिस प्रकार 100 रिटायर्ड जज, अधिकारियों और सैन्य अधिकारियों ने उन दो न्यायाधीशों के व्यक्तिगत मत के विरुद्ध आवाज उठाई थी, यह संभवतया उसी के चलते हुआ है कि नुपुर शर्मा को हाल फिलहाल दस अगस्त तक गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी गयी है और अब वही बेंच सारी एफआईआर एक साथ क्लब करने पर सुनवाई कर रही है!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

1 COMMENT

  1. ये सारा खेल हम हिन्दुओं के जादा सहिष्णुता के कारण हो रहा है !! दुर्भाग्य से ईसका तार्किक उत्तर हमारे मौजूदा धर्मगुरुओं के पास नहीं हैं !! हिन्दु समाज आज नेत्रुत्वहिन हो गया है !! हमें आर्य चाणक्य की सीख पुनः निर्माण के लिये आवश्यक है !! हर हर महादेव !!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.