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Tuesday, October 15, 2024

विश्व कविता दिवस पर हिन्दू कवयित्रियों के स्वर

हर वर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) मनाया जाता है। वर्ष 1999 में यूनेस्को ने अपने 30वें सम्मलेन के दौरान कवियों और कविता की सृजनात्मक क्षमता को सम्मानित करने के लिए यह सम्मान देने की घोषणा की थी। भारत प्राचीन काल से ही हर कला का केंद्र रहा है। भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र से लेकर कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम और जयशंकर प्रसाद की कामायनी तक रचनाओं ने एक लम्बी यात्रा की है।

परन्तु इस यात्रा में जब भक्ति काल था तो क्या स्त्रियाँ भी रचनाएँ कर रही थीं? क्या यह कथन कि हिन्दू स्त्रियों में चेतना और प्रतिभा नहीं थी, सत्य है या फिर यह भी अंग्रेजों द्वारा फैलाया गया एक मिथक है। आइये आज ऐसी ही कुछ रचनाकारों की कविताओं संग मनाते हैं, विश्व कविता दिवस, यह जानने के लिए कि चेतना का प्रस्फुटन आज का नहीं है, बल्कि यह युगों युगों से है:

अक्क महादेवी: महादेव की भक्त

महादेव शिव की महान भक्त अक्क महादेवी का जीवन अत्यंत प्रेरणाप्रद है।  उन्होंने महादेव की भक्ति में यह संसार के सुख ही नहीं अपितु समस्त साधन भी त्याग दिए थे। उन्होंने वस्त्र आदि का भी त्याग कर दिया था। और महादेव की भक्ति में कविताएँ लिखी थीं। उनकी कविताओं का हिन्दी में अनुवाद किया है, यतीन्द्र मिश्र ने।

तुम्हारे साथ एकाकार
कैसे हुआ जाये,
शीघ्र बताओ मुझे,
मुझे अपने से दूर न करो,
मैं केवल तुम्हारी दासी हूँ,
पास आ गयी हूँ तुम्हारे
मुझे अपने से दूर न करो,
हे मल्लिकाशुभ्र स्वामी,
तुम्हारे भरोसे बहुत
निकट आ गयी हूँ मैं,
मुझे अविलम्ब
स्वयं में समाहित करो!
***********

सुनो मधुमक्खियों,
सुनो आम्र वृक्षों,
सुनो चाँदनी
सुनो कोयल
मैं तुम सभी से
सहायता की भीख माँगती हूँ,
अगर तुमने देखा हो
मेरे स्वामी को
मेरे मल्लिकाशुभ्र स्वामी को कहीं,
पुकारो!
जिससे मैं देख लूँ उन्हें।
****************************

नील पर्वतों पर सवार,
पैरों में चन्द्रशिला पहनकर,
लम्बे श्रृंगों को बजाते हुए,
हे शिव!
मैं कब तुम्हें अपने पयोधरों के प्रति
आसक्त करूँ?

हे मल्लिकाशुभ्र स्वामी!

देह की लाज,
और मर्यादा हृदय की उतारकर,
मैं तुमसे कब मिलूँ?

Hindu Saint Poetess
अक्क महादेवी (बाएं); लल्लेश्वरी देवी (दाएं)

कश्मीर की लल्लेश्वरी देवी

ऐसी ही महान रचनाकार हुईं हैं, कश्मीर की लल्लेश्वरी देवी। उन्होंने भी भक्ति की ऐसी रचनाएं रचीं कि जिनकी कोई तुलना नहीं दिखती।  फूल चन्द्रा ने लल्लेश्वरी के कुछ वाखों का अनुवाद किया है, जो निम्न प्रकार हैं:

1.) प्रेम की ओखली में हृदय कूटा
प्रकृति पवित्र की पवन से।
जलायी भूनी स्वयं चूसी
शंकर पाया उसी से।।

2.) हम ही थे, हम ही होंगे
हम ही ने चिरकाल से दौर किये
सूर्योदय और अस्त का कभी अन्त नहीं होगा
शिव की उपासना कभी समाप्त नहीं होगी।

मीराकांत ने कुछ वाखों का अनुवाद किया है जो इस प्रकार है:

1.) रस्सी  कच्चे  धागे  की,  खींच  रही  मैं  नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।

2.) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर  बनेगा  अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।

3.) आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई?

कर्म से वैश्या, प्रवीण राय: बुंदेलखंड की मुखर आवाज

एक और रचनाकार प्रवीण राय थीं। यह कर्म से वैश्या थीं। यह ओढ़छा (बुन्देलखण्ड) के महाराज इन्द्रजीत सिंह के यहाँ रहती थीं। महाकवि केशवदास की यह शिष्या थीं। प्रवीण राय के विषय में अकबर ने सुना तो वह मोहित हो गया और उसने प्रवीण राय को बुलवा भेजा। प्रवीण राय ने इन्द्रजीत के पास जाकर निम्न पंक्तियों को पढ़ा:

आई हौं बूझन मन्त्र तुम्हैं निज स्वासन सों सिगरी मति गोई
देह तजौं कि तजौं कुल कानि हिए न लजों लजि हैं सब कोई।
स्वारथ औ परमारथ को पथ चित्त बिचारि कहौ तुम सोई,
जामे रहै प्रभु की प्रभुता अरु मोर पतिव्रत भंग न होई!

इन्द्रजीत सिंह ने प्रवीण राय को अकबर के पास नहीं जाने दिया।  अकबर इस बात को लेकर बहुत कुपित हो गया और उसने नाराज होकर इन्द्रजीत सिंह पर एक करोड़ का जुर्माना किया और प्रवीण राय को जबरदस्ती बुलवा भेजा। प्रवीण राय की सुन्दरता और कविता पर अकबर मोहित हो गया, और प्रवीण राय ने बादशाह से यह कहा

“बिनती राय प्रवीन की सुनिए, साह सुजान
जूठी पतरी भखत हैं, वारी बायस स्वान!”

यह सुनकर अकबर लज्जित हुआ और उसने प्रवीण राय को ससम्मान वापस भेज दिया। और इन्द्रजीत सिंह का एक करोड़ रूपए का जुर्माना माफ़ कर दिया।

छत्रकुँवरि बाई: ब्रज भाषा की अनुपम रचनाकार

रूपनगर नृप राजसी, नित सुत नागरीदास,
तिनके सुत सरदार सी, हौ तनया मैं तास,
छत्रकुँवरि मम नाम है, कहिबे को जग मांहि
प्रिया सरन दासत्व तें, हौं हित चूर सदाहिं
सरन सलेमाबाद की, पाई तासु प्रताप,
आश्रम ह्वे जिन रहसि के, बरन्यो ध्यान सजाप

यह प्रेम विनोद नामक ग्रन्थ में छत्रकुँवरि बाई का परिचय है। इनका समय संवत 1715 के आसपास माना जाता है। इन्हें बाल्यकाल से ही कृष्ण भक्ति का चस्का लगा हुआ था। वह उन्हीं के गुणों में खोई रहती थीं।

उनकी कुछ कुण्डलियाँ हैं:

श्याम सखी हँसि कुँवरि दिसि, बोली मधुरी बैन,
सुमन लेन चलिए अबै, यह बिरियाँ सुख दैन
यह बिरियाँ सुख दैन, जान मुसुकाय चली जब,
नवल सखी करि कुँवरि, रंग सहचरि बिथुरी सब,
प्रेम भरी सब सुमन चुनत, जित तित साँझी हित,
ये दुहूँ बेबस अंग फिरत, निज गति मति मिस्रित

विश्व कविता दिवस के अवसर पर कुछ अन्य कवियों की रचनाओं पर बात अगले लेख में करेंगे, परन्तु यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि जब भी कोई प्रगतिशील (वामपंथी) रचनाकार यह कहे कि स्त्रियों में चेतना तब से आई जब से एक आयातित स्त्रीवाद आरम्भ होता है तो आपके पास अक्क महादेवी, लल्लेश्वरी और प्रवीण राय जैसी स्त्रियों के उदाहरण होने चाहिए।


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