१९९९ में अटल बिहारी वाजपई की एनडीए की सरकार के दौरान जब परमाणु परीक्षण हुआ तो इसकी आलोचना करने वाले कम ना थे | वामपंथी और ‘सेक्युलर’ दलों का तर्क था कि ये कदम दुनिया में देश की ‘शांतिप्रिय’ छवि को नुकसान पहुंचनें वाला है | लेकिन इस सबके बीच बड़े ही अप्रत्याशित रूप से परमाणु-परीक्षण का जिसने स्वागत किया वो कोई और नहीं बल्कि ‘शांति का नोबल पुरूस्कार’ पाने वाले बोद्ध धर्म-गुरु दलाई लामा थे |
चीन के हाथों तिब्बत में अपने असहाय बोद्ध अनुयाइयों की दुर्दशा देख उन्हें शक्ति के महत्व का अंदाज़ा हो चला था | वैसे आज सीमा पर भारत-चीन के बीच युद्ध की स्थिति को देख सभी देशवासियों को भी पता चल चुका है कि उस समय उठाया गया वो कदम कितना दूरदर्शी था | सच तो ये है कि ‘अहिंसा’ के सिद्धांत पर एकान्तिक दृष्टि जमाये रखने के कारण इतने दिनों हमारी सर्वसमावेशक-जीवन परंपरा की अनदेखी ही हुई है | हमारे ग्रंथों में प्रतिपादित समग्र जीवन की कल्पना महाभारत के एक प्रसंग में देखने को मिलती है :
प्रसंग ऐसा है कि महाभारत का युद्ध शुरू होने को ही था कि श्री कृष्णा को लगा क्यूँ न एक और अंतिम बार इस महाविनाश को टालने की कोशिश कर ली जाये | समझोते का कोई मार्ग ढूँढ निकलने की दृष्टि से वो दुर्योधन से मिलने का निश्चय करते हैं | परन्तु ये जानकर युधिष्ठिर चिंतित हो उठते है | उनको लगता है कि दुष्ट-बुद्धि दुर्योधन कहीं कृष्ण को अकेला पाकर उन्हें कोई हानि न पहुंचा दे | वे अपनी भवना कृष्ण से व्यक्त करते हुए अनुरोध करते हैं कि वोअपने साथ कुछ सेना लेते जाएँ |
इस पर कृष्ण जो उत्तर देतें हैं, वो बड़ा ही उद् बोधक है | वो कहते हैं, ‘युधिष्ठिर तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं. दुर्योधन ऐसा कुछ करेगा इसकी उम्मीद नहीं |और फिर भी वो दुस्साहस कर ही बैठता है, तो फिर तो तुम्हें बिना युद्ध किये ही सब राजपाट मिल जाने वाला है |क्यूंकि फिर में अकेला ही दुर्योधन और उसकी सारी का सेना का विनाश कर डालूँगा |’
स्वभाविक है कि यदि शांति से रहना हो या प्रतिपक्षी से समन्वय भी बिठाना हो तो भी शक्तिशाली होने की जरूरत है, नहीं तो आपके शांति के प्रस्ताव को कमजोरी और आपकी कायरता भी समझी जा सकती है | ये वो बात है जो हमें कृष्ण के चरित्र से उपरोक्त प्रसंग में सीखने को मिलती है | दुनिया की इस रीत का विचार कर जिससे की शक्ति अर्जन की भावना से जन-जन ओत-प्रोत हों हमारे ऋषी-मुनियों नें विजयदशमी के दिन शौर्य-पराक्रम के प्रतीक शास्त्र के पूजन की परंपरा डाली |
हमारे समस्त देवी-देवताओं के एक हाथ में शस्त्र और दूसरे हाथ में शास्त्र के दर्शन होते हैं | और तो और भगवान् गणेश ज्ञान के देवता हैं, तो देवी सरस्वती बुद्धि-विवेक की फिर भी वे शस्त्र धारण किये दिखते है — ये सन्देश देते हुए कि धर्म और समाज की रक्षा बिना शक्ति के संभव नहीं |
इसके साथ ही महा पुरुषों के जीवन से एक और महत्त्वपूर्ण सन्देश मिलता है कि सामाजिक रूप से सक्षम और शक्ति-सम्पन्नता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य शर्त है कि लोक संगठन खड़ा हो | रामचन्द्र जी के जीवनकाल में इसका उज्जवल रूप देखने को मिलता है | स्त्री,पुरुष, हरिजन, गिरिजन सभी का स्नेह और विश्वास अर्जित करते हुए उन्होंने संगठन खडा करके रावण का अंत करने में सफलता पायी थी |
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