फेमिनिस्ट आन्दोलन के साथ एक समस्या है। उन्हें अपने अनुसार तो हर प्रकार की स्वतंत्रता चाहिए, परन्तु जैसे ही पुरुष कोई अपनी बात या अपनी चॉइस या स्वतंत्रता की बात करता है तो उसे अपराधी घोषित करती हैं। लिबरल और फेमिनिस्ट ब्रिगेड इस शिकार इस समय बने हैं श्री शिवप्रतिष्ठान के एक्टिविस्ट नेता संभाजी भिडे गुरूजी। यह हर व्यक्ति की अपनी स्वतंत्रता है कि वह कैसे लोगों के साथ बात करना चाहता है या नहीं? परन्तु संभा जी भिडे के पास यह अधिकार नहीं है कि वह यह निर्धारित कर सकें!
यह घटना तब हुई जब वह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से भेंट करके लौट रहे थे।
इस वीडियो में एक पत्रकार कुछ प्रश्न पूछती है तो गुरुजी कहते हैं, “जब आप बिंदी लगाएंगे तो मैं आपसे बात करूंगा। मेरा मानना है कि हर महिला भारतमाता का एक रूप है। भारतमाता विधवा नहीं है। तो एक बिंदी लगाओ और मैं तुमसे बात करूंगा”।
इसे लेकर अब लोग विवाद कर रहे हैं? यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसमें क्या विवादास्पद है? क्या भारत माता के साथ तुलना विवादास्पद है या फिर क्या? संभा जी ने यदि हर महिला को भारत माता कहा है और तो इसमें किसी महिला का अपमान कैसे हो गया? हां, भारतमाता का अनादर करने वालों की दृष्टि में ही ऐसा होगा।
और इसमें तनिक भी आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस-सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) रूपाली चाकणकर की अध्यक्षता में राज्य महिला आयोग ने तुरंत ही संभाजी भिडे को नोटिस जारी कर दिया। नोटिस में यह कहा गया है, ‘आपने एक महिला रिपोर्टर को इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह बिंदी नहीं लगाए हुए थी। एक महिला को उसका काम ही परिभाषित करता है न कि वह क्या पहनती है! आपने अपनी टिप्पणी से महाराष्ट्र की जनता को आहत किया है।”
हालांकि उन्होंने अपने अनुसार यह दिखाने का प्रयास किया कि दरअसल उन्होंने कितना बड़ा महान कार्य किया है और वह उस कथित अपमान से कुपित हैं जो उस पत्रकार का हुआ है। मगर यह लिबरल ब्रिगेड का दुर्भाग्य है कि सोशल मीडिया के इस जमाने में लोग उनके दोहरे मापदंडों पर प्रश्न बहुत ही तेजी से लगा देते हैं। एक यूजर ने एक वीडियो साझा करते हुए कहा कि कैसे शिव सेना के नेता संजय राउत द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में दी गयी गाली पर आयोग मौन रहा था
इस विषय को लेकर लिब्रल्स को समस्या क्या है यह समझ से परे है? महिला आयोग को भी इसमें क्या अपमानजनक लग रहा है? क्या भारत माता से तुलना अपमानजनक है? या फिर क्या? उसके बाद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस से भी मीडिया की ओर से यह प्रश्न पूछ लिया गया कि वह इस विषय में क्या सोचती हैं। तो इस विषय में उन्होंने कहा कि गुरु जी को महिलाओं का आदर करना चाहिए!
आजतक के अनुसार गुरुवार को भगवान विठ्ठल की महापूजा करने के लिये पंढरपूर में देवेंद्र फडणवीस के साथ आईं अमृता ने कहा कि भिडे गुरुजी का मैं आदर करती हूं। वे हिंदुत्व के स्तम्भ हैं। लेकिन मेरा निजी तौर पर यह कहना है कि महिलाओं को कैसे बरताव करना है, ये कोई न सिखाये, उनका आदर करें।
परन्तु यह बात अमृता भी नहीं बता पाईं कि इसमें क्या आपत्तिजनक है?
उनके इस वक्तव्य में कहाँ से अनादर झलक रहा है? अमृता को यह नहीं दिखाई दिया कि जैसे एक महिला के लिए यह स्वतंत्रता है कि वह बिंदी लगाती है या नहीं, वैसे ही जिससे वह प्रश्न पूछ रही है, उसके पास भी यह अधिकार है कि वह ऐसे किसी को उत्तर न देना चुने, जिसे वह पसंद नहीं कर रहा है? क्या भारत माता के पवित्र रूप को ध्यान में रखकर बात करना अपराध है? क्या यह स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आता? यदि हाँ, तो इसमें अमृता को या फिर महाराष्ट्र महिला आयोग को क्या समस्या है?
वहीं इस पूरे विवाद के बहाने एक बार फिर से संभाजी भिडे पर मीडिया ने निशाना साधने का कार्य आरम्भ कर दिया। इंडियन एक्सप्रेस ने यह विशेष रूप से लिखा कि उन्हें भीमाकोरे गाँव हिंसा मामले में नामजद किया गया, परन्तु “कभी गिरफ्तार नहीं किया गया!”
तो वहीं फ्रीप्रेस जनरल ने उन्हें “सेक्सिस्ट” नेता के रूप में लिखा। और उन पर निशाना साधा जाने लगा है। उन पर इसलिए निशाना नहीं साधा जा रहा है क्योंकि उन्होंने कुछ गलत कहा है, क्योंकि उन्होंने गलत कहा ही नहीं है। यह व्यक्ति की स्वतंत्रता है कि वह कैसे लोगों को साक्षात्कार दे, परन्तु अब उनके बहाने हिन्दू धर्म को निशाना बनाने के लिए कार्य आरम्भ हो गए हैं।
यह मामला जानबूझकर उठाया जा रहा है, जिससे उस छवि पर प्रहार किया जा सके, जो संभा जी भिडे ने अपने कार्यों से निर्मित की है। उनकी छवि कट्टर एवं पिछड़े व्यक्ति की बनाई जा रही है, जिसकी सीमा मात्र बिंदी या बाहरी आवरण तक है, परन्तु ऐसा करके क्या वह उनके प्रशंसकों के दिल में बसा हुआ आदर कम कर पाएँगे? नहीं!
तथा इसके साथ यह भी सत्य है कि जो ब्रिगेड कल तक हिजाब को लेकर व्यक्तिगत चॉइस के पक्ष में थी, अचानक से ही संभा जी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष का विरोध करने लगी?
यह एक बार फिर से उनकी छवि धूमिल करने का कथित प्रगतिशील षड्यंत्र है क्योंकि यही मार्ग है जिसके चलते वह उनके उस जूनून को विषाद में बदल पाएंगे जिसके चलते उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्गों के संरक्षण के कारण अपनी प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ दी थी? जबकि जो लोग छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम अपने राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग करते हैं, उन्होंने भी क्या ऐसा बलिदान किया होगा?
अब कदम उनकी छवि को नष्ट करने के लिए और तेजी से उठाए जाएंगे क्या? यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उन पर पहले भी उनके प्रखर धार्मिक विचारों के चलते लिब्रल्स कई आरोप लगा चुके हैं! तो क्या यह मामला उनके लिए एक ऐसे अवसर के रूप में सामने आया है, जहाँ पर वह संभाजी भिडे को अपने एजेंडे का शिकार बना सकते हैं? और हिन्दू धर्म की छवि धूमिल कर सकते हैं? या फिर एक बार फिर उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी?