कुछ महीने पहले एक भजन पर बहुत विवाद हुआ था और अभिलिप्सा पंडा एवं जीतू शर्मा के उस भजन को फ़रमानी नाज का बता देने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया था, ऐसा क्यों हुआ था, किसने किया था, वह सब अभी तक नहीं पता। परन्तु यह मूल भजन अभिलिप्सा पंडा एवं जीतू शर्मा ने गाया था। जीतू शर्मा के इस भजन को पांच महीने पहले अपलोड किया था और अब तक उसे बारह करोड़ लोग देख चुके हैं। यह तो मात्र जीतू शर्मा के चैनल का आंकड़ा है, शेष जहां जहां भी इसे अपलोड किया है, वहां पर भी लाखों लोग इसे देखते हैं, अभी तक लोग इस भजन के दीवाने हैं!
यहाँ तक कि बीबीसी ने भी अभिलिप्सा पंडा का साक्षात्कार लिया था और यह अब सभी को पता है कि इस भजन के मूल गायक-गायिका कौन हैं। हमने आरम्भ से ही इस भजन के साथ हुए तमाम षड्यंत्रों को अपने पाठकों तक यथा संभव पहुंचाने का प्रयास किया था। क्योंकि यह मीडिया द्वारा की गयी विशुद्ध बेईमानी का मामला था। जब यह भजन इस रूप में सबसे पहले जिन हिन्दू बच्चों ने गाया है, उनकी बात होनी चाहिए या उसका सारा श्रेय छीनकर फ़रमानी नाज को दे देना चाहिए था?
वैसे फ़रमानी नाज का कहना था कि यह गाना दरअसल उन्होंने ही बनाया था, उन्होंने पहले बनाया, फिर डिलीट हो गया, और उसके बाद जब तक दोबारा अपलोड किया तो तब तक जीतू शर्मा का आ गया था, जबकि वास्तविकता क्या थी, यह सभी को ज्ञात थी, फिर भी फ़रमानी खुले आम मीडिया में झूठ बोल रही थीं!
क्या इस भजन की धुन फ़रमानी ने बनाई थी? क्या पूरी संकल्पना उनकी थी? जैसा उन्होंने कथित रूप से दावा किया था? या जैसा मीडिया ने प्रचारित किया और इस गाने को अभिलिप्सा से छीनकर फरमानी नाज का प्रमाणित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी! नहीं! यह पूरी संकल्पना तमाम श्रम जीतू शर्मा का था, जिन्होनें अपनी गाड़ी तक बेच दी थी। जो वीडियो पहले जारी हुआ, जिसे करोड़ों लोग देख चुके थे, वह फ़रमानी के अनुसार उनकी नक़ल था, माने क्या मजाक था!
जीतू ने कहा था कि
“”बेची हुई लोडर गाड़ी को उन्होंने इएमआई पर खरीदा था। उसके लिए मैंने 80 हजार डाउन पेमेंट किया था। उसकी चार साल तक ईएमआई भी भरी। वह कूरियर कंपनी में लगी हुई थी। कोविड के दौरान वह भी छूट गई थी। मैंने वह गाड़ी 60 हजार में बेच दी। रिकार्डिंग के लिए मुझे जमशेदपुर जाना होता था। वहां जाने पर एक बार में 500 का खर्च आता था। उसमें मैं जाता था और अभिलिप्सा को भी ले जाता था।”
उन्होंने यह कहा कि उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है कि फ़रमानी नाज इसे गा सकती हैं, परन्तु उन्हें इस बात का क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि यह गाना उनका है।
इस भजन के बनने की पूरी कहानी बीबीसी के साथ अभिलिप्सा पंडा के साथ किए गए साक्षात्कार से जानी जा सकती है।
अब जब यह पूरी तरह से प्रमाणित हो गया है कि यह मूल भजन किसका है और यह समाचार भी आया था कि फ़रमानी के यूट्यूब चैनल से उस भजन को हटा दिया गया है।
मीडिया और इकोसिस्टम द्वारा पहचान छीनकर कल्चरल या सांस्कृतिक जीनोसाइड करने का कुप्रयास किया गया है जैसा इकोसिस्टम अभी तक करता हुआ आया था। जैसे होली छीन ली गयी, और जैसे रक्षाबंधन छीन लिया और जैसे दीपावली छीन ली, जैसे हमारे सारे प्रतीक छीने जाने का षड्यंत्र रचा गया। और इस बार षड्यंत्र और भी अधिक बड़ा था क्योंकि यह हिन्दुओं के सबसे बड़े बाजार अर्थात भजन के बाजार को भी विधर्मी के हाथों में सौंपने का षड्यंत्र ही प्रतीत हुआ था!
परन्तु यह अब तक भी उन लोगों द्वारा क्यों जारी है जिन लोगों पर राष्ट्रवादी लोग विश्वास करते हैं, जिनका आदर करते हैं? यह एक प्रश्न है! यह प्रश्न और पीड़ा आज इसलिए उभर कर आई है क्योंकि आम राष्ट्रवादी लोगों की प्रिय पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध ने कल एक पोस्ट साझा की थी, कि “कहानी हर-हर शम्भु फेम फ़रमानी नाज की!”
इस पर लोगों ने उनसे संवाद करने का प्रयास किया। उनसे यह कहने का प्रयास किया कि वह मूल गायिका को बुलाएं! यह गाना फ़रमानी नाज का नहीं है। फ़रमानी नाज ने गाया अवश्य है परन्तु इस भजन का मूल कहीं और है। अभिलिप्सा पंडा इस की मूल गायिका हैं। इस पर ऋचा अनिरुद्ध ने अपनी पोस्ट का कमेन्ट सेक्शन बंद कर दिया।
इस पोस्ट पर लोगों की पीड़ा झलक रही थी। उनके प्रशंसक प्रश्न कर रहे थे कि वह उनका आदर करते हैं, परन्तु वह समझ नहीं पा रहे हैं, कि वह ऐसा क्यों कर रही हैं? क्यों वह इस भजन की पहचान बदल रही हैं? परन्तु ऋचा अनिरुद्ध जैसे सेलेब्रिटी पत्रकार संवाद के स्थान पर एकालाप करना चाहते हैं क्या, जो उन्होंने लोगों की बात नहीं सुनी?
जो अभी तक किया जा रहा है, उसे पहचान छीनना कहते हैं, और यह कल्चरल जीनोसाइड का बहुत बड़ा उदाहरण है। इस भजन को कोई भी गाए, इससे कोई भी आपत्ति किसी को नहीं हो सकती, परन्तु जिसने इस भजन को इस रूप में सबसे पहले गाया, मूल गायिका वही है और भजन की पहचान उसी गायिका के साथ जुड़ी होनी चाहिए।
परन्तु जब लोग प्रतिभा को नहीं मार पाते हैं, या पहचान को नष्ट नहीं कर पाते हैं तो वह पहचान भ्रमित कर देते हैं, जैसा अब इस भजन के साथ हो रहा है। जब यह बात पूरी तरह से, हर प्रकार से स्थापित हो चुकी है कि यह भजन मूलत: अभिलिप्सा पंडा एवं जीतू शर्मा का है, तो अब इसे फिर से “फ़रमानी नाज” का बताने का प्रयास क्यों किया जा रहा है?
“हर-हर शम्भु” का हिन्दू स्वरुप छीनकर उसे अब तक “फ़रमानी नाज” के हवाले क्यों किया जा रहा है? यह पीड़ा हर उस हिन्दू की पीड़ा है और प्रश्न है जो धर्म के साथ होते षड्यंत्र को समझ पा रहा है, जो विमर्श की शक्ति को समझता है, जो डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन, डिजिटल रिकार्ड्स, डिजिटल नैरेटिव, नैरेटिव वार आदि जैसे शब्दों को समझता है! जो कल्चरल जीनोसाइड या पहचान की चोरी या पहचान की पुनर्स्थापना, या पहचान की छद्म स्थापना को समझता है!
ऋचा अनिरुद्ध को अपनी वाल पर कमेन्ट पढने चाहिए और समझना चाहिए कि लोग जानते हैं कि सच क्या है? ऋचा अनिरुद्ध ने अब तक क्या अभिलिप्सा पंडा या जीतू शर्मा को बुलाया है, जो वास्तव में “हर-हर शम्भु” फेम हैं और क्या जीतू शर्मा के गाडी बेचे जाने की पीड़ा साझा की है? जो जीतू शर्मा ने इस भजन को बनाने के लिए बेच दी थी?
विमर्श की लड़ाई ऐसे ही हारी जाती है, एवं इसमें सर्वाधिक पीड़ादायक तथ्य यह है कि जिन कन्धों पर कथित राष्ट्रवादी अपने विमर्श को फलते फूलते देखना चाहते हैं, वही उनके विमर्श को नहीं समझते हैं!
ऋचा अनिरुद्ध ने भी अपने प्रशंसकों के प्रश्नों से मुंह फेरकर कहीं यही तो नहीं किया है यह भी एक प्रश्न है! फ़रमानी नाज दूसरों के गाने गाती है, नबी की शान में गाती हैं, मदीने के सफ़र को गाती हैं, तो उसकी गायन शैली पर टिप्पणी नहीं की जा सकती। फ़रमानी की आवाज में एक देशी टोन है, जो लोगों को सहज खींच लेती है, इसलिए गायन पर क्यों टिप्पणी नहीं!
यहाँ पर प्रश्न उस पहचान का है, जो अभिलिप्सा पंडा के साथ ही सदा के लिए सम्बद्ध होनी चाहिए, उसे विमर्श के स्तर पर उस फ़रमानी नाज के हवाले किया जा रहा है, जिसका दूर दूर तक उससे कोई लेना देना नहीं है। लेना देना केवल इतना है कि उसने अभिलिप्सा पंडा का गाया हुआ मूल भजन, एक और गाना समझकर गाया है!