गांधी परिवार को अनाधिकारिक रूप से भारत का प्रथम राजनीतिक परिवार कहा जाता है । स्वतंत्रता के पश्चात इस परिवार ने ही लगभग 6 दशक तक सीधे या परदे के पीछे से भारत पर शासन किया है। कांग्रेस भारत की सबसे पुराना राजनीतिक दल है, लेकिन यह गाँधी परिवार के प्रभाव से खुद को दूर नहीं रख पायी है, यही कारण है कि इस दल ने गाँधी परिवार को घोषित रूप से पार्टी का सर्वेसर्वा बना दिया है। हो ना हो, यही कारण है कि कहीं ना कहीं गाँधी परिवार को यह लगने लगा है जैसे वही इस देश के स्वामी हैं।
गाँधी परिवार के लिए एक धारणा बन गयी थी, कि यह किसी भी तरह की जांच और संशय से ऊपर हैं, इन पर कानून कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। हालांकि 2014 के बाद यह धारणा बदलने लगी है , 5000 करोड़ के नेशनल हेराल्ड घोटाले में सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का नाम सामने आया, उसके पश्चात न्यायलय ने उनके विरुद्ध मुकदमा चलाने की आज्ञा दी । उन पर लगे हुए आरोपों को प्रथम दृष्टया सही माना गया, और दोनों माँ-बेटे को 50,000 रूपए की जमानत पर छोड़ा गया है।
पिछले दिनों दोनों माँ बेटे को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया, जो इस प्रकार के आर्थिक धोखाधड़ी के मामलों में एक सामान्य प्रक्रिया है, सभी के साथ होती है। लेकिन बात जहां गाँधी परिवार की हो वहां सब सामान्य कैसे हो सकता है? कांग्रेस ने इस विषय पर देश भर में हिंसक आंदोलन करने का प्रयास किया, गाड़ियां जलाई, सरकारी संपत्ति को हानि पहुंचाई। हालांकि उसे किसी अन्य राजनीतिक दल का उतना समर्थन नहीं मिला जितनी उन्हें आशा थी।
ईडी की पूछताछ पर देशभर में हिंसक सत्याग्रह
जब सोनिया गाँधी को ईडी का बुलावा आया, तो वह बीमार पढ़ गयीं, कुछ हफ़्तों के बाद जब वह पूछताछ के लिए गयीं तो उनकी भावभंगिमाएं बड़ी ही आक्रामक थीं। वहीं कांग्रेस पार्टी ने तो इसे बहुत बड़ा अत्याचार ही बता दिया, उन्होंने सरकार की कथित दबाव बनाने की नीति के विरोध में देश भर में सत्याग्रह शुरू कर दिया। हालाँकि इस प्रक्रिया का नाम उन्होंने सत्याग्रह तो रख दिया, लेकिन इसमें भी देशभर में सरकारी और निजी सम्पत्तियों को तोडा फोड़ा गया।
कांग्रेस ने इस पूछताछ का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया। बेंगलुरू में ईडी कार्यालय के बाहर एक कार में और हैदराबाद में एक बाइक में आग लगा दी गई। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने संसद से सड़क तक मार्च किया, सब कुछ सत्याग्रह के नाम पर। इसमें तो कोई संशय हो नहीं हो सकता, कि कांग्रेस पार्टी जो भी करती है, उसकी सहमति नेतृत्व से ही दी जाती है।
कांग्रेस के नेताओं ने सरकार और भाजपा पर आरोप लगाया कि वह राजनीतिक बदले की भावना के तहत कार्रवाई कर रही है। उन्होंने सरकार पर विपक्ष की आवाज दबाने एवं सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप लगाया। कांग्रेस के इन आरोपों का जवाब सरकार के मंत्रियों एवं नेताओं ने दिया। कांग्रेस के बड़बोले वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने ईडी पर आपत्तिजनक टिप्पणी की, उन्होंने ईडी को ‘इडियट‘ तक कह डाला। वहीं कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरन रीजीजू ने पूछा कि क्या कांग्रेस खुद को कानून से ऊपर समझती है? केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि दाल में यदि कुछ काला नहीं है तो कांग्रेस को इतनी तकलीफ क्यों हो रही है?
राष्ट्रपति मुर्मू पर अमर्यादित टिप्पणी पर सोनिया गाँधी का क्रुद्ध आचरण
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर बड़ी ही अमर्यादित टिप्पणी की और उन्हें ‘राष्ट्रपत्नी’ कहा, इस विषय पर ससंद और सड़क पर जमकर हंगामा हो रहा है। भाजपा ने इस विषय पर कांग्रेस पर हमला किया है और स्मृति ईरानी ने सोनिया गांधी के विरुद्ध नारेबाजी भी की। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सोनिया गांधी से इस विषय पर देश से माफी मांगने के लिए भी कहा।
इसके बाद जब सदन की कार्यवाही स्थगित हुई तो सोनिया गांधी बाहर जा रही थीं, इसी बीच वह सांसद रमा देवी के पास आईं और कहा कि आप लोग मेरा नाम क्यों ले रहे हैं, जबकि अधीर रंजन चौधरी ने तो माफी मांग ली है। यह सुन कर रमा देवी के पास खड़ी स्मृति ईरानी ने सोनिया गांधी से कहा कि “मैम मैंने आपका नाम लिया था”। इसपर सोनिया गाँधी भड़क गईं और स्मृति को डांट लगाते हुए कहा कि Don’t talk to me, इसके बाद स्मृति और सोनिया गांधी के बीच तीखी बहस हुई।
स्मृति ईरानी ने कहा कि जब से द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया है, तब से ही कांग्रेस पार्टी ने उनके प्रति घृणा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ा है । कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कठपुतली कहा और वह अभी तक यह स्वीकार नहीं कर पा रही कि एक आदिवासी महिला इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद को सुशोभित कर रही हैं। सोनिया गांधी द्वारा नियुक्त नेता सदन अधीर रंजन और अन्य नेता पिछले कई दिनों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के विरुद्ध अशोभनीय टिप्पणियां कर रहे हैं, और यह आज तक कांग्रेस नेतृत्व से इन नेताओं को संयम रखने का सन्देश नहीं दिया गया है, इसे क्या समझा जाए?
सोनिया गाँधी अपने संयत व्यवहार के लिए जानी जाती थी, कम से कम सार्वजनिक जीवन में तो ऐसा ही प्रतीत होता है, लेकिन अब यह छद्म आवरण टूट रहा है। इसमें कोई संशय नहीं है कि गाँधी परिवार अभी भी इस छलावे में है कि उनका देश के नेतृत्व पर जन्मजात अधिकार है। उन्हें लगता है कि उनकी निंदा नहीं की जा सकती, वह कानूनी समीक्षा से परे हैं, उन पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता। लेकिन अब समय बदल गया है, और एकाएक उनका राजनीतिक समर्थन भी सिकुड़ रहा है, गाँधी परिवार के आह्वान के बाद भी उनके कथित सत्याग्रह को समर्थन नहीं मिला। वहीं राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी कांग्रेस को सहयोगी दलों ने अकेला छोड़ दिया।
इसके अतिरिक्त पिछले 8 वर्षों से कांग्रेस लोकसभा और राज्य चुनावों में एक के बाद एक हारती जा रही है। गाँधी परिवार के विरुद्ध कांग्रेस के अंदर से ही आवाजें उठने लगी हैं, ऊपर से राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा भी कोई जादू नहीं कर पा रहे हैं। हो सकता है यही कारण हों कि सोनिया गाँधी इतनी क्षुब्ध हो गयी हैं, कि वह अपने गुस्से को छुपा नहीं पाती हैं। या और भी कोई कारण हो सकता है, पता नहीं!