पिछले दिनों एक ऐसा समाचार आया जिसने लिबरल और ब्राह्मणों से घृणा करने वाली लॉबी के चेहरे पर मुस्कान ला दी, जिसने उन अंग्रेजी प्रेमियों के चेहरे पर मुस्कान ला दी, जिनकी सारी आजीविका हिन्दी और हिन्दुओं से घृणा करने पर ही टिकी है। जिनका सारा एक्टिविज्म या क्रान्ति केवल और केवल हिन्दू धर्म की घृणा पर ही टिका है। घटना थी कि एक उड़ान में किसी व्यक्ति ने नशे में एक महिला पर मूत्र विसर्जन कर दिया।
जब यह घटना मीडिया में वायरल हुई तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया! यह स्वाभाविक ही था परन्तु मिश्रा सरनेम के चलते समस्त हिन्दुओं को बदनाम किया गया, उसके परिवार को घसीटा गया और सामाजिक रूप से परिवार को अपमानित भी कहीं न कहीं किया गया। जबकि देखा जाए तो परिवार की गलती उसमें कुछ नहीं थी? परन्तु यह ‘इंडिया’ है, जहां पर आतंकवादियों के परिवारों के तो अधिकार होते हैं, परन्तु हिन्दू परिवारों के नहीं! हिन्दू और वह भी ब्राह्मण, वह तो विमर्श में सबसे बड़ा अपराधी है। इसलिए मीडिया टूट पड़ा, परिवार पर भी! उसे सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया।
सागरिका घोष ने तो इसे ऐसा प्रमाणित किया कि ऐसा अपराध आज तक नहीं हुआ था और विदेशी धरती पर यदि अपमान किसी ने किया है तो मिश्रा ने और वह भी बीमारू हिन्दी हार्टलैंड से!
हिन्दी और हिन्दुओं से इतनी घृणा क्यों है सागरिका को? और ऐसे लोग वर्षों तक पत्रकार बने रहे? हिन्दुओं से और हिन्दी से घृणा करने वाले, हिन्दी पट्टी को गोबर पट्टी कहने वाले लोगों को कांग्रेस ने बुद्धिजीवी घोषित करवाया, यह कांग्रेस के सबसे बड़े पापों में से एक है क्योंकि सागरिका जैसे लोग इस प्रकार की घृणा से भरकर पत्रकारिता करते थे तो वह किस सीमा तक हिन्दी बोलने वालों को अपमानित करते होंगे यह अनुमान ही लगाना असंभव है!
सागरिका के इस ट्वीट से भी बढ़कर राजदीप सरदेसाई का ट्वीट था। जहां एक ओर सागरिका ने हिन्दी और हिन्दुओं के प्रति घृणा का परिचय दिया तो राजदीप ने इसे यह कहकर साम्प्रदायिक रंग देना आरम्भ किया कि यदि इसमें खान होता तो कैसा हाल होता। हालांकि इस प्रोपोगैंडा का जमकर विवेक अग्निहोत्री ने उत्तर दिया और लिखा कि, डियर राजदीप क़ानून सभी के लिए बराबर है, फिर चाहे वह आरफा हो या राजदीप! यह मीडिया है जो भेदभाव करता है, मुझे विश्वास है कि यदि यह व्यक्ति खान होता तो आप उसे अब तक बेचारा घोषित कर चुके होते!
राजदीप के लिए खान को बेचारा प्रमाणित करने के लिए अवसर आ गया है। क्योंकि आज ही हवाई अड्डे पर एक जौहर अली खान को न केवल खुले में पेशाब करते हुए पकड़ा गया बल्कि वह सहयात्रियों को गाली भी दे रहा था। बाद में पाया गया कि वह नशे में भी था!
उसने न केवल खुले में हवाई अड्डे पर पेशाब की, बल्कि उसने आने जाने वाले लोगों को गाली भी दीं! अब ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि खान का खुल्ला खेल खेलने वाले राजदीप कैसा ट्वीट करेंगे और क्या सागरिका यह कहेंगी कि भारत की बदनामी करने में “खान” का हाथ है? अब क्या होगा? क्या हर बात पर जाति और धर्म देखकर पत्रकारिता करने वाले कथित सेक्युलर पत्रकार या लेखक जौहर अली खान एवं उसके परिवार को उसी प्रकार परेशान करेगी जैसा उसने मिश्रा के पिता को किया था?
इतनी बड़ी घटना हुई, क्या किसी मीडिया ने जौहर अली खान के परिवार को कैमरा लेकर परेशान किया? भारत के मीडिया को हिन्दू और वह भी ब्राह्मण और वह भी हिन्दी पट्टी के ब्राह्मणों से इस सीमा तक घृणा है कि वह अवसर तलाशती है कि इस बहाने उसे अवसर मिले, घृणा के विमर्श को रचने का! यह घृणा क्यों है? इस सीमा तक हिन्दी पट्टी से घृणा क्यों है? हिन्दी से घृणा क्यों है?
ऐसा भी नहीं है कि नशे में शराब की घटना किसी भी फ्लाईट में पहली बार हुई थी? मगर चूंकि इसमें मिश्रा सरनेम था तो घृणा बरसाने का अवसर सागरिका जैसे लोगों के साथ साथ सामाजिक विमर्श करने वाले लोगों को मिल गया! जिसने गलत किया उसे सजा मिले, परन्तु उसके परिवार को क्यों आतंकवादियों के जैसे मान कर व्यवहार किया जाता है? यह प्रश्न तो उठाया ही जाएगा!
अभी बहुत दूर न जाते हुए वर्ष 2020 में ही जाएंगे तो पाएंगे कि एक नॉर्थ कैरोलिना पास्टर ने एक हवाई जहाज में सोती हुई महिला पर पेशाब कर दी थी। वह महिला वेगास से डेट्रॉइट वापस आ रही थी।
ऐसी ही और घटनाएं गाहे बगाहे सुनने में आती हैं, परन्तु वह व्यक्तिगत घटनाएं होती हैं। उनके आधार पर परिवार को और पूरे समुदाय को बदनाम करने का षड्यंत्र नहीं किया जाता! पास्टर ने वही घटना की, मगर उसके आधार पर भारत में एक बार भी यह विमर्श नहीं हुआ कि पास्टर ने ऐसा किया, पास्टर ऐसा करते हैं। आज “खान” ने वही हरकत की, मगर यह नहीं कहा जा रहा कि खान ऐसा करते हैं, मगर जो मिश्रा सरनेम वाले ने किया, वह तमाम हिन्दुओं का स्वभाव है, उसके कारण भारत का सिर शर्म से झुक गया आदि आदि का विमर्श बन गया!
इतनी घृणा क्यों? और यही बात आज सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं कि इतनी घृणा हिन्दी और हिन्दुओं से क्यों?
परन्तु दुःख की बात यही है कि भारत में हिन्दुओं को विमर्श के स्तर पर नीचा दिखाने का कार्य कथित अंग्रेजी एवं उर्दू प्रेमी औपनिवेशिक एवं गुलाम मानसिकता वाले कथित लिबरल ही नहीं बल्कि कथित रूप से अपने ही धर्म में हर बात में कमी खोजने वाले आत्महीनता वाले राष्ट्रवादी विमर्श के पैरोकार भी कर रहे हैं, एवं हिन्दू विमर्श पर हर ओर से प्रहार हो रहा है!
एक और बात कि जहां मीडिया ने मिश्रा सरनेम वाले की तस्वीरों से पूरा नेट भर दिया था वहीं, जौहर खान वाले मामले में केवल प्रतिनिधि छवि लगाई हुई है! इसी से पता चलता है कि हिन्दुओं का विमर्श में क्या स्थान है!