वसीम रिजवी ने 6 दिसंबर 2021 को मुस्लिम धर्म त्याग कर हिन्दू धर्म में वापसी की है तभी से कई लोग उनके इस कदम की आलोचना कर रहे हैं। परन्तु यह तो एक मामला है, परन्तु चूंकि वसीम रिजवी शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं और वह खुलकर उस पर बात करते हैं, जिस पर लोग सहज बात करने से डरते हैं। उन्होंने उस मूल पर प्रहार किया है, जिस पर भारत में लोग प्रहार करने से डरते हैं। उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के कृत्यों पर सीधा प्रहार किया है। इससे लोग तिलमिलाए हैं।
परन्तु क्या यह केवल भारत में हो रहा है कि किसी वसीम रिजवी ने पैगम्बर मोहम्मद के चरित्र पर कुछ लिखा है? या फिर यह पूरी दुनिया में हो रहा है? आइये देखते हैं! इस बार के पांचजन्य में नीरज अत्री ने भी इसे बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है और उन्होंने एक बेहद रोचक संदर्भ दिया है। उन्होंने फिलिस्तीन में जन्मे हसन मोसाब यूसुफ़ का उल्लेख किया है, जिन्होनें कुछ समय तक कुख्यात आतंकी संगठन हमास के लिए लिए काम किया था, परन्तु अब वह इस्लाम के खिलाफ हो चुके हैं और वह इजरायल के लिए काम करते हैं। टाइम्स ऑफ इजरायल के अनुसार हसन मोसाब युसूफ कहते हैं कि इस्लाम शांति का नहीं बल्कि युद्ध का मजहब है। और फिर वह कहते हैं कि मुस्लिम अपने मजहब के बारे में नहीं जानते हैं।

सबसे रोचक बात यह है कि हसन मोसाब युसूफ और किसी के नहीं बल्कि हमास के संस्थापक सदस्य के बेटे हैं और अपने पिता के कारण ही वह भी हमास के लिए काम करते थे पर अब वह कहते हैं कि अपने पिता को यही संदेश देंगे कि हमास छोड़ दें, क्योंकि उन्होंने शैतान बना दिया है। समय के साथ उन्होंने इस हिंसा से किनारा कर लिया और इजरायल के साथ हमास के खिलाफ काम किया। उन्हें गद्दार की संज्ञा दी जाती है। उन्होंने भी वसीम रिजवी की तरह ही पैगम्बर मोहम्मद पर वार किया।
किताब के बाद फिल्म है लक्ष्य
हसन मोसाद युसूफ अपनी किताब पर ही नहीं रुके हैं, जिसमें उन्होंने हमास की करतूतें बताई हैं, और मजहबी राजनीति बताई है, बल्कि अब उनकी अगली योजना “पैगम्बर मोहम्मद” पर फिल्म बनानी है। उनका कहना है कि मोहम्मद पर अभी भी कोई फिल्म नहीं बनाना चाहता है। वह तो यह तक कहते हैं कि यह फिल्म इसलिए विशेष होगी कि क्योंकि इसमें या तो सभी मुस्लिम होंगे या फिर मुस्लिम रह चुके होंगे।
हमास के लोग उन्हें गद्दार कहते हैं, यही यहाँ पर वसीम रिजवी के साथ है। हसन ईसाई धर्म अपना चुके हैं और वसीम रिजवी ने 6 दिसंबर को ही घर वापसी की है, अर्थात वह हिन्दू बने हैं!
भारत में भी लगातार लोग कर रहे हैं घर वापसी
हाल ही में धर्मान्तरण रैकेट में हमने देखा था कि कैसे तरह तरह का लालच देकर लोगों को मुसलमान बनाया जा रहा है, और ऐसा अभी से नहीं हो रहा है, ऐसा न जाने कब से हो रहा है। परन्तु धीरे धीरे कम ही सही लोग वापस आ रहे हैं और छुटपुट समाचार हमें देखने को मिलते रहते हैं जैसे राजस्थान में अगस्त 2020 में 250 मुस्लिमों ने घरवापसी की थी। हरियाणा में मुस्लिम बने 200 लोगों ने 350 वर्ष बाद की थी हिन्दू धर्म में वापसी। तो हाल ही में उत्तर प्रदेश में शामली में ही 19 लोगों ने हिन्दू धर्म में वापसी कर ली थी। 23 नवम्बर को ही मुजफ्फरनगर में ऐसे 26 लोगों ने मुस्लिम धर्म से हिन्दू धर्म में वापसी कर ली थी, जिन्होनें सपा शासनकाल में पैसों के लालच या फिर जबरन मौलवियों द्वारा धर्म बदल लिया था। और अब वह वापस आए।
ऐसे ही रोहतक में गाँव खेवड़ा में कई मुस्लिम धोबी परिवारों ने फिर से हिन्दू धर्म में आस्था दिखाते हुए हिन्दू धर्म अपना लिया था।

पूरे विश्व में लोग छोड़ रहे हैं इस्लाम को
हाल ही में एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कैसे इस्लाम अपने ही गढ़ में कमजोर पड़ रहा है। उसमें लिखा था कि मध्य पूर्व और ईरान में कराए गए एक सर्वे में यह निकल कर आया है कि इन देशों में आबादी का बड़ा हिस्सा धर्मनिरपेक्षता की तरफ बढ़ रहा है और धार्मिक राजनीतिक संस्थाओं में सुधारों की मांग तेज हो रही है।
“अरब बैरोमीटर मध्य पूर्व के सबसे बड़े सर्वेकर्ताओं में एक है। यह अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और मिशिगन यूनिवर्सिटी का रिसर्च नेटवर्क है। अरब बैरोमीटर ने अपने सर्वे के लिए लेबनान में 25,000 इंटरव्यू किए। नतीजे बताते हैं, “एक दशक से ज्यादा समय के भीतर धर्म के प्रति निजी आस्था में करीब 43 फीसदी कमी आई है। संकेत मिल रहे हैं कि एक तिहाई से भी कम आबादी ही अब खुद को धार्मिक इंसान समझती है।”
डीडब्ल्यू की इस रिपोर्ट में ईरान के विषय में लिखा है कि
“ग्रुप फॉर एनालाइजिंग एंड मेजरिंग एटीट्यूड्स इन ईरान (गामान) ने 50,000 लोगों को इंटरव्यू किया। इस सर्वे के नतीजे कहते हैं कि ईरान में 47 फीसदी लोग “मजहबी से गैर मजहबी” हो चुके हैं। नीदरलैंड्स की उटरेष्ट यूनिवर्सिटी में धार्मिक शोध विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पूयान तमिनी सर्वे के सह लेखक हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, “ईरान का समाज एक बड़े व्यापक बदलाव से गुजर चुका है, वहां सारक्षता दर जबरदस्त तेजी से बढ़ी है, देश व्यापक शहरीकरण का अनुभव कर चुका है, आर्थिक बदलावों ने पारंपरिक पारिवारिक ढांचे पर असर डाला है, इंटरनेट की पहुंच यूरोपीय संघ जितनी रफ्तार से बढ़ी है और प्रजनन की दर गिर चुकी है।”
ईरान में सर्वे में हिस्सा लेने वाले 99.5 फीसदी लोग शिया थे। उनमें से 80 फीसदी ने कहा कि वे ईश्वर पर विश्वास करते हैं। लेकिन खुद को शिया मुसलमान कहने वालों की संख्या सिर्फ 32.2 फीसदी थी। नौ फीसदी ने खुद को नास्तिक बताया। इन नतीजों का विश्लेषण करते हुए तमिनी कहते हैं, “आस्था और विश्वास के मामले में हम बढ़ती धर्मनिरपेक्षता और विविधता देख रहे हैं।” तमिनी के अनुसार सबसे निर्णायक तत्व है, “शासन और धर्म का मिश्रण, इसी की वजह से ईश्वर पर यकीन रखने के बावजूद धार्मिक संस्थानों से ज्यादातर आबादी का मोहभंग हुआ है।”
ट्विटर पर ट्रेंड चलाया गया था:
5 दिसंबर को, जब वसीम रिजवी ने इस्लाम छोड़ा नहीं था, तभी एक ट्वीट था कि #AwesomeWithoutAllah पूरे अमेरिका में ट्रेंड कर रहा है जहाँ पर हर चौथा मुस्लिम इस्लाम छोड़ रहा है।
लोगों ने तस्वीरें साझा कीं:
एक यूजर ने लिखा कि उस महिला से बहादुर और कोई नहीं हो सकता है जिसने इस्लाम छोड़ा:
एक्स-मुस्लिम ऑफ नार्थ अमेरिका ट्वीट करते हुए लिखता है कि “जो आपका गला दबाए, उसे हटा दो!”
पर हटाना इतना आसान है क्या? क्योंकि इस्लाम में आना तो सरल है, परन्तु जाना गुनाह और उस गुनाह की एक सजा है मौत, जिसके लिए फतवे जारी किए जाते हैं।
क्या आईएसआईएस इसी से डरा हुआ है?
हाल ही में आईएसआईएस ने अपनी वौइस् ऑफ हिन्द पत्रिका में “हिन्दुओं के आराध्य महादेव” की प्रतिमा को विकृत दिखाते हुए लिखा कि फाल्स गॉड के नष्ट होने का समय है। यह दरअसल उस पूरे वर्ग की बौखलाहट का परिणाम है, जो पूरे विश्व को एक ही रंग में रहना चाहते हैं। एक ओर जहाँ युवा पीढ़ी इस्लाम को छोड़ रही है और वह इसी कारण छोड़ रही है क्योंकि उन पर आतंकी का ठप्पा लगता है और उनके नाम के कारण उन्हें अतिरिक्त जांच का सामना करना पड़ता है, जो गाहे बगाहे पाकिस्तान के मुस्लिम भी कहते हैं कि “इंडिया के लोगों को नाम देखकर तो उन्हें नहीं रोका जाता!” पर वह यह नहीं कह पाते कि “हिन्दू होने के कारण उन्हें नहीं रोका जाता!”
हर ओर से इस्लाम की क्रूरता और कट्टरता के खिलाफ आवाज उठ रही है। अलीसीना लिख रहे हैं “अंडरस्टैंडिंग मोहम्मद” और हसन मोसाद युसूफ न केवल किताब लिख चुके हैं, बल्कि पैगम्बर मोहम्मद पर फिल्म बनाने की घोषणा कर रहे हैं, भारत में वसीम रिजवी भी पैगम्बर मोहम्मद के जीवन और चरित्र पर किताब लिख ही नहीं चुके हैं, बल्कि इस्लाम भी छोड़कर नया नाम ले चुके हैं, वह अपनी हिन्दू पहचान के साथ वापस आ चुके हैं। ‘
पूरे विश्व में लोग बिना किसी लालच और दबाव के हिन्दू धर्म की ओर आ रहे हैं! कुछ अपना रहे हैं तो कुछ हिन्दू धर्म को आचरण में सम्मिलित कर चुके हैं। भारत में भी धीरे धीरे लोग वापस आ रहे हैं। इस्लाम छोड़ चुके लोग अपने अनुभव लिख रहे हैं.
पूरे विश्व से लोग लिख रहे हैं:

इसलिए आईएसआईएस सही कहता है कि फाल्स गॉड के नष्ट होने का समय है, परन्तु यह सोचना होगा कि फाल्स गॉड कौन से हैं?
फाल्स गॉड तो नष्ट होंगे ही, उन्हें ढहना ही है! तलवार का डर दिखाकर बने हुए मुस्लिम कब तक मुस्लिम बने रहेंगे? क्या कभी उनकी अंतरात्मा यह प्रश्न नहीं करेगी कि क्यों किसी ऐसे व्यक्ति को जीवित रहने का अधिकार नहीं है, जो इस्लाम को नहीं मानता? क्यों काफिर की लडकियां उनके लिए गनीमत का माल हैं? क्यों उनके यहाँ लड़कियों को हमेशा बंद रहना है?
पर अब लोग आवाज उठा रहे हैं, वह पूछते हैं कि काफिर पर हमला क्यों?
लोग कुरआन पर प्रहार कर रहे हैं!
इसी लिए आईएसआईएस सहित हर संगठन डरा हुआ है, क्योंकि फाल्स गॉड तो ढह रहे हैं। पूर्व में मुस्लिम रही अमीना सरदार कहती हैं कि इस्लाम छोड़ने वालों की सुनामी आने वाली है! अमीना के अनुसार लोग छिप छिपकर इस्लाम छोड़ रहे हैं!“
अब हमारा प्रश्न यही है कि क्या तभी आईएसआईएस डरा हुआ है और हिन्दुओं को डरा रहा है! उसकी इसी हिंसा से डरकर लोग जा रहे हैं और वह हिन्दुओं को डरा रहा है!